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9.2.09

छुपे हुए चांद को ढूंढती फिजा

कब चांद पूरी तरह से आकाश में दिखेगा। कब चांद छुप जाएगा। कब अमावस्या होगी। सारा कुछ जानने के लिए अभी तक पंचांग का सहारा लिया जाता रहा है। जब पूर्णिमा होती है तो चांद पूरी तरह से आकाश में छाया होता है। ये रातें कुछ ऐसी होती कि शायद आपको नींद न आए। सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय ने कभी लिखा था पूर्णिमा की चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती। शायद आज अज्ञेय जिंदा होते तो फिजा का दर्द समझते। पिछले कुछ दिनों से चांद सामने आकर उतना दुख नहीं दे पाए जितना अब छुप कर दुख दे रहे है। चांद छुप गए है। पता नहीं कहां। आगरे के किले में छुपे है या लंदन के टेमस नदी के किनारे बने बंगले में आराम फरमा रहे है। हालांकि फिजा आज भी अखबार में छायी हुई है।
सोमवार को छुट्टी है और छुट्टी के दिन लोग अपने घरों में आराम से अखबार पढ़ रहे है। रविदास जयंती की छुट्टी का पूरा लुफत उठाया जा रहा है। लोग चांद और फिजा की कहानी पढ़ रहे है। आज भी फिजा अखबारों के पहले पन्नों पर छायी है। जागरण सिटी के पहले पेज पर खबर है-फिजा ने और बढ़ाई मोहलत।वहीं दैनिक हिंदुसतान ने लिखा है-चांद को चार दिन की और मोहलत। चंडीगढ़ भासकर ने अपने पहले पेज पर लिखा है फिजा ने फिर दी चांद को मोहलत। इसे फिजा की पापुलरटी कहें या अखबारों के संपादकों का मानिसक दिवालियापन। हर संपादक भी इस खबर में रस ले रहा है। उसका रस भी काफी हद तक सिंगार का रस है। आखिर कहीं न कहीं उसमें भी चांद तो छिपा ही है। अब उनकी किस्मत खराब है कि वे चांद नहीं हो पाए। नहीं तो चांद बनने की ख्वाहिश किसे नहीं होती। अखबार के दफ्तरों में भी कई सुंदर फिजा काम करती हैं औऱ उसे भेड़िए के नजर से संपादक देखते हैं। बस चले तो खा जाएं। कई संपादक इसमें सफल भी हो जाते हैं।

आप कह ही सकते हैं कि चांद हर जगह है। चाहे वो अखबार का दफतर हो या प्राइवेट कंपनी का फाइव स्टार दफ्तर। भेडि़ए तो हर जगह ही घूमते हैं। अब इसमें आप कया कर सकते हैं। हालांकि अखबार चांद मोहम्मद का पक्ष फिलहाल नहीं छाप रहे हैं। शायद चांद गुम है इसिलए उनका पक्ष नहीं छापा जा रहा है। उनके पिता जी भजनलाल जरुर दो दिन पहले हिरयाणा विधानसभा लाबी में पत्रकारों से मिले। जब उनसे चांद मोहममद के बारे में पूछा गया तो उनहोंने कहा कि चांद आएगा, आप बेकरार न हों। इससे आगे उन्होंने भी कुछ बोलने से इंकार कर दिया। फिलहाल ऐसा लगता है कि भजनलाल का परिवार इन बातों पर अब ज्यादा गौर नहीं कर रहा है। शायद चुप्पी ही उनके लिए बेहतर है। शायद उन्होंने कानूनी दावपेंच की जानकारी ले ली है। कानूनी दावपेंच में शायद फिजा का पक्ष कमजोर पड़े। जब इस्लाम अपना कर शादी दोनों ने किया तो ऐसे में मुस्लिम पर्सनल ला चांद और फिजा पर लागू होता है। ऐसे में चांद अभी दो शादी और कर सकते हैं। फिर इस्लाम में तलाक का सिस्टम आसान है। जुबान से ही तलाक दिया जा सकता है। फिर अगर चांद दो शादी औऱ कर लेते हैं तो भी फिजा कानूनी तौर पर उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती है। अगर वो जुबान से तलाक भी देता है तो शायद मेहर की राशि देकर ही उन्हें छुटकारा मिल जाए। अब मेहर की राशि कितनी है यह खुलासा तो चांद या फिजा ही कर सकते हैं। हालांकि कानूनिवदों की राय यह है कि फिजा कानूनिवद होते हुए भी कई गलती कर गई है। उनहें चाहिए था कि पहले चांद से उनकी पहली पत्नी सीमा विश्नोई को तलाक दिलवातीं। फिर हिंदू मैरेज एक्ट के हिसाब से चांद नहीं बल्कि चंद्रमोहन से शादी करतीं। लेकिन चांद बनने से पहले चंद्रमोहन ने कई समझदारी दिखायी। अपनी संपित्त अपने बेटे और पत्नी के नाम कर गए। राजनीति के जानकार बताते हैं कि अपने तेज तर्रार पिता भजनलाल की सलाह पर ही चांद ने सारा कुछ किया। भजनलाल राजनीति के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। पूरा दल लेकर ही दूसरे दल में शामिल होने का तजुर्बा उनके पास है। हरियाणा की राजनीति में कई लालों को पटखनी उनहोंने दी,चाहे वो देवीलाल हो या बंसीलाल। ऐसे में फिजा की पटखनी देने में शायद उन्हें ज्यादा परेशानी न हो। क्योंकि राजनीति का सारा दावपेंच वो जानते है।
एक बात की औऱ चरचा है। फिजा कुलदीप विश्नोई को टारगेट करती है। कुलदीप विश्नोई हरियाणा की राजनीति में उभरते सितारे हैं। आखिर क्या कारण है कि कुलदीप विश्नोई को उन्होंने हर जगह टारगेट किया। जब चांद के साथ वो घूम रही थी तो भी कुलदीप विश्नोई को उन्होंने टारगेट किया था। हरियाणा में आने वाले समय में लोकसभा चुनाव है। निश्चित तौर पर इस घटना का नुकसान कुलदीप विश्नोई और उनके परिवार को हो सकता है। कांग्रेस के लिए चुनौती भजनलाल अभी भी हैं। भजनलाल के बेटे कुलदीप काफी कुशल खिलाड़ी हैं। रैलियों में उनकी भीड़ भी हो रही है। हरियाणा में तिकोना संघर्ष की स्थिति है। ऐसे भी हरियाणा की राजीति से लालों का खात्मा उनकी मौत के बाद ही हुआ है। बंसीलाल जब तक जिंदा थे राजनीति की एक धुरी बने रहे। जब मरे तो बेशक धुरी खत्म हो गई। ऐसी ही भजनलाल की स्थिति है। जब तक वो जिंदा हैं एक धुरी कांग्रेस और ओमप्रकाश चौटाला से अलग बनी रहेगी। अगर जिंदा रहते वे कुलदीप को स्टैंड करवा गए तो ये धुरी आगे भी चलेगी। यह कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है। भजनलाल हरियाणा में नॉन जाट वोट बैंक के सेंटर है। कम से कम अभी भी वो कांग्रेस और चौटाला जैसे जाट लीडरों के लिए चुनौती तो हैं ही।

2 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

बढिया लिखा है भाई आपने। हिंदी लिखने में काफी गल्तियां थीं, जिसे ठीक किया है। आप जो छोटी ई की मात्रा लगा रहे हैं, वो शब्द के आगे जाकर लगाएं तो सही बैठेगे। मतसलन, किताब लिखना है तो आप िकताब लिख रहे हैं, मतलब, ि की मात्रा क के पहले लगा दे रहे हैं। इसी मात्रा को क के बाद लगाएंगे तो कि हो जाएगा। एक बार ट्राई करिए। इसी तरह की अन्य गल्तियों को भी दुरुस्त कर सकते हैं। आपके लिखे से एक पैरा हटाया है। किसी को टारगेट करके लिखने की बजाय अपनी बात प्रभावशाली शब्दों के जरिए जोरदार तरीके से रखने की परंपरा अपनाएं तो ज्यादा मारक होगा।
अगर आप कुछ कहना चाहते हैं तो मुझे मेल कर सकते हैं।
शुभकामनाएं।
यशवंत
yashwantdelhi@gmail.com

musaffir said...

bahoot hi sahi likha hai. kuch khichri ho gai hai, lekin samjhne wale samjh gaye jo na samjhe wo anari hain. panday ji aise hi likhte rahein achacha lagta hai
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yashwant ji bhadas to bhadasion ke liye hi hai. to nikal lene dein sabhi ko apni bhadas
kunal