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13.2.09

वेलेंटाइन डे,दूसरों की बहिन बेटियों के साथ

कोई भी आदमी ये तो पसंद करताहै कि वो किसी सुंदर सी लड़की/महिला के साथ इधर उधर मटर गश्ती करे,फ़िल्म देखने जाए, होटल में बतियाए,ऐश मरे। लेकिन ऐसा करने वालों में से कोई ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि कोई उसकी बहिन बेटी के साथ ऐसा करे। मतलब साफ़ है कि इस मामले में सभी के पास दो तराजू होते है। लेने के लिए अलग देने के लिए अलग। यही मानसिकता वेलेंटाइन डे का समर्थन करने वालों की है। वेलेंटाइन डे के हिमायती अगर इसको इतना गरिमामय मानते हैं तो वे अपनी बेटियों और बहिनों को आगे करे। लड़कों को पीले चावल देकर बुलाएँ कि आओ भई मनाओ वेलेंटाइन डे, हाजिर हैं हमारी बहिन बेटियाँ। फ़िर उनको पता लगेगा कि इसका क्या मतलब होता है। जो आजादी तुम दूसरों के लिए मांग रहे हो वह अपनी लड़कियों और बेटियों को क्यों नहीं देते? कौन रोकता है तुमको वेलेंटाइन डे मनाने से मगर शरुआत घर से हो तो लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। कथनी और करनी में अन्तर तो नही होना चाहिए। भारत की गरिमा को कम करने में लगे ये मक्कार लोग वेलेंटाइन डे के बहाने दूसरों की बहिन बेटियों को निशाना बनाते है। मीडिया से जुड़े वो लोग जो ऐसे लोगों को कवर करतें हैं उनसे सीधे शब्दों में पूछे कि क्या उनकी लड़की भी वेलेंटाइन डे मनाने अपने घर से निकली है। या उसको ऐसा करने की इजाजत दी गई है। सच तो ये है कि " जाके पैर न फटी बेवाई,वो क्या जाने पीर पराई" जब वेलेंटाइन डे के समर्थक लोगों की लड़कियां अपने यारों के साथ ऐश करती हुई उनको दिखेगी तब उनको पता चलेगा कि ये क्या है। आज मिडिल क्लास परिवारों में वेलेंटाइन डे को लेकर चिंता रहती है कि पता नहीं कौन क्या कर दे। छोटे शहरों के अभिभावकों को फ़िक्र अधिक रहता है।

3 comments:

Anonymous said...

sorry for this but i think you only see the only wrong aspect of velentine day this is not festivel of characterless people. it is the festivel of true love.
if you do not like western culture so why not you start first by leaving "pant-shirt" and just wear every day only "dhoti and kurta"

आलोक सिंह said...

एकदम सही बात कही है आपने लोगो ने दोहरे नियम बना रक्खे है एक दुसरो के लिए और एक अपने लिए .
मैं दीप जी की बात से सहमत नही हूँ "धोती कुर्ता से ज्यादा आराम हमें पैंट शर्ट में आता है तो हमने उसे अपनाया पर जो वास्तु सही नही है हम उसे क्यों अपनाए , पाश्चयात सभ्यता से हम वही ले जो सही है वो जो सही नही है हमें उसे नही लेना चाहिए पर क्या करेगे आज हम अच्छी आदतों को छोड़ कर बुरी चीजो के पीछे भाग रहे है . मैं नही कहता की वैलेंटाइन दे ग़लत है लेकिन इस का सही अर्थ क्या है कितनो को पता है .असली प्यार की बात कही लेकिन प्यार आज कहाँ है आज तो वासना है प्यार खत्म हो गया है . आज लोग आपने माँ - बाप से प्रेम नही करते ,किसी पराई लड़की से क्या करेगे, बस वैलेंटाइन का मतलब मौज और मस्ती से रहा गया है "
धन्वाद

Unknown said...

jab ye bajrangdal or shivsena valientine day pr drama krte hain. to ye seede seede ek baat ko darshate hain ki inka sangthan abhi band nhin hua hai kyonki ye sangthan samaj main koi bhala kaam to krte jisse ye surkhiyon main aye ye log kch ni kar sakte siwaye kisi ko pareshan ke.agar itne hee hinduvadi bante hain to kyon nhin gaye mumbai atankiyon ki goli khane, kitne asamajik tatv aaj tak inhone pakadkar police hirast main diye hain.kya bhala kiya hai aaj tak samaj ka kuch hai batane ko inke paas.ye log apne sngthan ka wajood or sangthan main kaam kar rahe logon ki naphunskta dikhane ki koshish karte hain.in logon ki mansikta hee gandi ho gayi hai jisse in logon ko bhai bhen ke rishte ko bhi galat samajh lete hain or unhi k sath maar peet kar dete hain is baar aisa hee kch hua. pichli baar to in logon ne neechta ki had par kar di ti.pichle valintien day pr inhone bhai bhen ko pakad kr unki zabardasti shadi kra di thi.ye inki naphunskta hee darshati hai bahaduri nahin.agar itna western culture or bhen betiyon ko rokne ka nhone jimma uthaya hai to har roz kyon nahin karte ye aisa roz roz jisse kch asar ho.saal main ek baar valintienday per drama krke kya kisi pr koi asar pad sakta hai.ye ek sawal hai.