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5.2.09

मंथन

भाई आप भले आदमी हैं, ऐसा तो होता ही है ये सब वो बातें होती हैं जिनको सुनकर हम अपने आप को कुछ जरुरत से ज्यादा ही महत्त्व देने लगते हैं,जो किसी भी कर्मठ को शोभा नही देता है, एक पते की बात बता रहा हूँ. रही बात विरोधियों की तो जो आदमी अपने दुश्मन नही बना सकता वो दोस्त भी नही बना सकता ये मेरा मानना है. उसकी शत्रुता का स्तर ही बताता है की वो दोस्ती में कितना सफल होगा. ध्यान देने बात है की मित्रता की सीमायें हैं पर शत्रुता की नही. शायद इसीलिए स्तरहीन शत्रुता हमें उस निम्न स्तर पर छोड़ देते है जिसपर मित्रता आ भी नही पाती. अतः शत्रुता को छोड सिर्फ़ मित्रता का स्तर बनायें रखें. जितना समय आपने पोस्ट को लिखने में जाया किया है मैं जानता हूँ उससे कई गुना समय आपने इस विषय पर सोचा होगा. आपका लक्ष्य बड़ा है सोच भी. इस तरह समय जाया करेंगे तो फिर हो चुकी क्रांति. बाकी आपकी मर्जी.

1 comment:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

शुक्रिया दोस्त। आपकी बातें दमदार हैं। जरूर विचार करूंगा।