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8.2.09

कल्याण विचारधारा नहीं, एक व्यक्ति

नागपुर में भाजपा की राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद मुस्लिम वोटरों के सामने स्थिति स्पष्ट हो चुकी है। कल्याण सिंह को लेकर हाय तौबा मचाने वाली कांग्रेस और कुछ मुस्लिम नेताओं की नींद भी खुल चुकी होगी। हवा में राजनीति कर वोट बटोरने की राजनीति में शायद ही कल्याण सिंह विरोधियों को कोई सफलता मिले। हम कल्याण के पक्ष में कुछ नहीं बोल रहे हैं क्योंकि कल्याण सिंह मुसमलानों के लिए खतरा नहीं हैं। कल्याण सिंह एक व्यक्ति हैं जो राजनीतिक अवसान के निकट है। मुलायम सिंह से दोस्ती इस राजनीतिक अवसान को बचाने के लिए है। फायदा शायद दोनों को हो। कल्याण सिंह के विरोध करने वाले कांग्रेसी नेता और कई और मुस्लिम नेता तर्कों के आधार पर लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं। सिर्फ बाबरी मस्जिद को गिराने की बात कर कल्याण सिंह को दोषी ठहराना और सारे मुस्लिम वोटरों को अपने तरफ रिझाना एक भ्रमजाल है। इससे शायद इस देश की मुस्लिम जनता वाकिफ है।
एक बार फिर भाजपा ने राम मंदिर का राग अलाप दिया है। नागपुर में भाजपा ने साफ कहा कि सता में आएंगे तो राम मंदिर बनेगा। अब बताए इस देश के मुस्लिम मतदाता के लिए कल्याण सिंह खतरनाक हैं या भाजपा। इस देश के मुसलमान कई बातों को समझते हैं। पर शायद इस देश के नेता नहीं समझते हैं। यह सच्चाई है कि मुसलमानों की लड़ाई एक विचारधारा से है।
इस देश में सदियों से दो विचारधारा के बीच संघर्ष होता रहा है। जिस विचारधारा को लेकर आरएएस चलती रही है, उसका राजनीतिक आपरेशन भाजपा कर रही है। इस देश के मुसलमान इस बात को समझते हैं कि खतरा कलयाण सिंह से नहीं, खतरा भाजपा से है। भाजपा की कमान आरएसएस से है। आरएसएएस इस देश मे एक विचारधारा लेकर चल रही है जो हिंदू राष्ट्र की वकालत करता है। फिर ऐसे मे एक विचारधारा के विरोध के बजाए मुसलमान कलयाण सिंह का विरोध करेंगे, शायद सबसे बड़ा झूठ होगा।
मुलायम सिंह से दोस्ती कर कल्याण सिंह ने भाजपा को कमजोर किया है। मुसलमान इस बात को समझता है कि भाजपा को कमजोर कर कल्याण सिंह ने हिंदू विचारधारा संबंधित आरएसएस की फिलासफी को कमजोर किया है। यह सही है कि कलयाण सिंह के सीएम रहते बाबरी मस्जिद गिरायी गई। यह भी सच्चाई है कि कल्याण सिंह उस समय उस विचारधारा के एक कठपुतली थे। वो कुछ नहीं कर सकते थे। इसके लिए सामूहिक फैसले लिए गए थे जिसमें डा. मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता भी शामिल थे जो फिलहाल मायावती के गठजोड़ से चुनाव जीत रहे हैं। इस सच्चाई को मुसलमान समझते हैं।
कल्याण सिंह ने काफी लंबे समय तक इस विचारधारा से संबंध जोड़े रखा। एक बार पहले भी मुलायम सिंह के साथ थे और उस समय मुसलमानों ने मुलायम को वोट दिया। कुसुम राय मंत्री बनीं राजवीर मंत्री बने। कल्याण के विरोध करने वाले देश के अंदर नए राजनीतिक गठजोड़ का खयाल नहीं कर रहे हैं। अगर एक और मायावती ने सर्व जन हिताय की बात कर कांग्रेस को पूरे देश में चुनौती दी है तो उसकी काट के रुप में देश में पिछड़ा राजनीति का स्वरुप बनाया जा रहा है। इस स्वरुप की शुरूआत यूपी से हो चुकी है। कल्याण और मुलायम के गठजोड़ के पीछे यह खेल है। इसका असर पूरे यूपी में है और इसकी जमीनी हकीकत कांग्रेस को नहीं मालूम। पूरे प्रदेश में पिछड़ी राजनीति के स्वरुप को हवा दिया गया है और इसे अन्य दलों के साथ मिलकर दूसरे राज्यों में भी देने की कोशिश की जाएगी।
समझ में नहीं आता कि कल्याण सिंह के विरोध करने वाले पुराने राजनीतिक गठबंधनों पर चुप्पी क्यों साधते हैं। इस देश में हिंदू विचारधारा की वकालत करने वाली भाजपा पहले भी सेक्यूलर लोगों के साथ मिली रही। १९७७ में जब जनता पाटी की सरकार बनी तो सारे भाजपाई जनता पार्टी में थे। जबकि १९८९ में इसी हिंदू विचारधारा ने कम्युनस्टों के साथ मिलकर वीपी सिंह की सरकार बनायी। और तो और, एक समय में मायावती के साथ भाजपा की सरकार बनी। इसी मायावती को बाद में मुसलमानों ने कई जगहों पर वोट किया है। आज भी मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग मायावती के साथ जा रहा है जबकि उसे पता है कि यही मायावती गुजरात में नरेंद्र मोदी का प्रचार कर चुकी हैं। नरेंद्र मोदी से बड़ा मुसलमानों का दुश्मन तो शायद ही इस देश में कोई हो। इस देश में किसी व्यक्ति के खिलाफ लड़ाई का कोई फायदा नहीं। लड़ाई विचारधारा से होनी चाहिए। कांग्रेस ने यही गलती हमेशा की है। व्यक्ति को टारगेट किया। पहले नरेंद्र मोदी को गुजरात में टारगेट किया। हार गए। अब कल्याण सिंह को टारगेट कर रहे है। कल्याण सिंह को टारगेट कर भाजपा को मजबूत किया जा रहा है।
कई भाजपा विरोधी दल इस सच्चाई को समझते हैं कि कल्याण सिंह और उमा भारती सरीखे पिछड़े नेताओं के भाजपा छोड़ने से भाजपा के उस सोशल इंजीनियरिंग को झटका लगा है जो अखिल हिंदुत्व में विश्वास रखता है। जिसमें अगड़ों के साथ पिछड़ों को जोड़ने की कवायद थी। आज भाजपा फिर एक बार मध्यवर्गीय बनियों और उंची जातियों की पार्टी रह गई है। यह सच्चाई है कि कल्याण सिंह ने बाबरी मसिजद गिरवायी लेकिन यह भी सच्चाई है कि आज उनके कदम से एक विचारधारा भी कमजोर हुई है। अब मुसलमानों को यह फैसला लेना होगा कि वे विचारधारा को सबसे बड़ा दुश्मन मानते है या एक व्यक्ति को जो कल्याण सिंह नाम का है।

2 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

भई, गजब विश्लेषण करते हैं आप। आपके तर्क प्रभावित कर रहे हैं।

इसमें भी करेक्शन कर दिया।

sachkasach said...

aap mahir kalakar hea isme koi shak nahi magar rajnit ka aur rajn eta ka koi dharm ya jat nahi hota agar hota to rajnit me nahi hota