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11.6.09

क्यूँ बदल गया इंसान...?


आज की इस भीड़ भाड़ वाली जिंदगी में हर आदमी व्यस्त है...!किसी के पास वक्त नहीं है ,हर कोई भागा जा रहा है..!लोग क्यूँ भाग रहे है?कहाँ जा रहे है?किसी को कुछ नही पता..!सड़क पार करने के लिए इंतजार करना पड़ता है ..!सड़क पर गाड़ियों का बहाव देख कर ऐसा लगता है जैसे पूरा शहर आज खाली हो जाएगा...!अस्पताल में देखो तो ऐसे लगता है जैसे पूरा शहर ही बीमार हो गया है !चारों और दर्द से कराहते लोग,रोते,चीखते लोग....लगता है जैसे दुनिया में दर्द ही बचा है...!रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड पर बहुत ज्यादा भीड़ है ,दम घुटने लगता है..!कभी मन बहलाने पार्क में चला जाऊँ तो लगता है ..सारा शहर मेरे .पीछे वहीँ आ गया है....!मैं अक्सर भीड़ देख कर चिंता में पड़ जाता हूँ....जब संसार में इतनी भीड़ है तो भी फ़िर इंसान अकेला क्यूँ है?अकेलापन अन्दर ही अन्दर क्यूँ ..खाने को आता है?आज इस भरी भीड़ में भी हमें कोई अपना सा क्यूँ नहीं लगता.....~!अभी कुछ समय पहले की तो बात है जब शहर जाते थे तो पूरा गाँव स्टेशन पर छोड़ने आता था ..बहुत होंसला होता था...लगता ही नहीं था की हम अकेले है...!फ़िर गाड़ी में भी लोग अपनत्व की बातें करते थे !कब शहर आ जाता था...महसूस ही नहीं होता था...!फ़िर .शहर में किराये के कमरे में रहते हुए कभी नहीं लगा की मैं बाहर रह रहा हूँ...!पूरा मोह्ह्ल्ला मेरे साथ था..सब लोगों के घर आना जाना था...!कोई .चाचा...... कोई ताऊ और कोई बाबा होते थे....जो अपनों से ज्यादा प्यार करते थे...!मैं भी भाग भाग कर सबके काम कर देता था....!स्कूल हो या कालेज सभी जगह कोई ...ना कोई जानकार मिल जाता था या बन जाता था........! कुल मिला कर बड़ी मस्ती से दिन निकल जाते थे ...! फ़िर अब इस शहर को क्या हो गया ?किसकी नज़र लग गई?क्यूँ सभी अजनबी से हो गए?अब किसी को देख कर क्यूँ मुंह फेरने लग गए ?इस भीड़ भाड़ वाली दुनिया में हम अकेले क्यूँ पड़ गए?अब दूसरो के दर्द में दर्द और खुशी में खुशी क्यूँ नहीं .महसूस...होती..?क्या .सच में इंसान बदल गया या रिश्ते बदल गए...?

2 comments:

Unknown said...

bahut umda
bahut badhiya
bahut bahut mubaraq !

kshama said...

sahi kaha insaan badal gya hai aur yahi wajah hai ki rishte bhi badal gye hain.