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13.8.09

मिड-डे-मील खाकर मोटे हो रहें हैं चूहे



पिछले दिनों मैं अपने एक दोस्त जो ग्रामीण इलाके के एक सरकारी स्कूल मैं प्रध्नाचार्य हैं के स्कूल जाने का मौका मिला। मौका था बच्चो की सुलेख प्रतियोगिता का। हमारी संस्था स्स्फा- एस्फी की तरफ से वहां पर पुरुस्कार वितरण किया जाना था। कार्यक्रम दिन मैं ११बजे रक्खा गया था.सो हम भी पहुँच गए ग्रामीण भारत के दर्शन को जहाँ देश का लगभग ७०% युवा आधुनिक भारत की कमान सँभालने के लिये तैयारकिया जरहा है,जहाँ सरकार करोरो रुपये की अनेको योजनायें चला रही है देश के इन युवा सपूंतों के लिये,जिन से देश की सरकार ये उम्मीद करती है की इन सुविधाओं का इस्तेमाल कर के ये वीर आधुनिक भारत को अपने कंधे पर उठाने के लिये तैयार हो रहें हैं। कुछ दिन पहले ''मुफ्त अवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार''विधेयक पर हमारी मास्टर साहेब से बात हो ही रही थी की एक महीला टीचर की आवाज़ आयी ,सर जी खाना तैयार है.हम भी कौतुहल वश चल पड़े बावर्चीखाने (किचिन) मे। चूँकि आज कार्यक्रम था हम और हमारे जैसे बहार से आए हुए कुछ मेहमानों की वहीँ पर खाने की वेअवस्था की गयी थी इसलिये दाल मैं तरका लगाने को देशी घी और मिर्च भी बच्चो के घर से ही मंगवाए गए थी। बस मैं बविर्चिखाने खाने मैं मास्टर जी से बात कर ही रहा था की एक छोटी बिल्ली के akar ka mota सा चूहा लगभग mere जूते के उप्पर से होकर उच्हल कर भागा। hउम चौक गए,बल्कि डर से गए। हमने कहा ये क्या है मास्टर साहेब जवाब था ये तो कुछ भी नही है डॉक्टर साहेब इस से भी मोटे मोटे हैं यहाँ तो,और कभी कभी तो इनकी संख्या बच्चो से भी अधिक हो जाती है। मैंने पुछा ऐसा क्यूँ?जवाब था सरकार का भी जवाब नही है डॉक्टर साहेब बच्चो के साथ -साथ चूहों की भी वेअवस्था कर रक्खी है गोया एक दूसरे के पूरक हों। मिड डे मील का भोजन खा खा कर मोटे हो रहें हैं। पूछने पर की इस से तो बच्चो को बीमारी हो सकती है ?जवाब मिला ,डॉक्टर साहेब खाने के लालच मैं बड़ी मुश्किल से तो बच्चे जुटें हैं स्कूल मैं,भूखे रहने से तो बेहतर है की ख़ुद भी खाएं और चूहों को भी खिलाएं। जिन नौनिहालों के लिए सरकार ये मिड डे मील भेज रही है वो तो मोटाने से रहे अलबत्ता चूहे ज़रूर मोटा रहें हैं.''मेरा भारत महान'' स्वतंत्रता दिवस मुबारक हो।

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