Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.11.09

हमेशा याद आयेंगे वो !

हिन्दी पत्रकारिता के एक युग का अंत हो गया ,मानो विश्वास ही नही हो रहा है |पत्रकारिता को नई दिशा देकर जब उसे और शशक्त बनाने की जरूरत थी तो वो हम सब को अकेले छोर गए एस क्यों लगता है | हिन्दी पत्रकारिता को सबसे बड़ा नुकसान हुआ है|यूं कहू तो मुझे तो विश्वास ही नही हुआ की वो हमारे बिच नही है लेकिन जब टीवी खोला तो पता चला की अब तो बस उनकी यादों के साथ जीना होगा और उनके बताये मार्गो पर चलने की ठान्नी होगी अपनी बेवाक राय और हिन्दी के नए मुहावरों और देशी शब्दों के प्रयोग ने उन्हें सबसे अलग स्थापित किया |
पत्रकारिता के पेशे में उन्हें सुनना पढ़ना और जानना दिल को अजीब तरह की संतुष्टि देता था |अब तहलका में "शून्यकाल" में कौन लिखेगा ,जनसत्ता के "कागद कारे" को पढने की बेसब्री से इंतज़ार ख़त्म हो जाएगा |जिन्दगी और मौत तो एक चिरंतन सत्य है,इसे सभी को स्वीकार करना होता है किसी की बारी पहले तो किसी की बाद में आती है |हम अपेक्षाएं तो बहुत सजोते है लेकिन सारे पूरे तो नही हो पाते है |हम जैसे नवोदित पत्रकारों ने उनसे बहुत सी आशाएं बंधा राखी थी क्सिसी भी विषय पर उनके अभिभाषण को सुनने जरूर जाते और नई सीख लेकर आते के उन्होंने जैसा जीवन जिया है क्या हमलोग भी कर पायेंगे |
कौन कहता है की वो हमारे बीच नही है , अगर हम उनके द्वारा की गई पत्रकारिता का एक अंश भी अपने जीवन में उतार लें तो शायद हम उन्हें अपने बीच हमेश जीवित रख सकते है |भगवान से मेरी एक ही प्रार्थना है की उनकी आत्मा को शान्ति मिले और उनके सभी सम्बन्धी सुख एवं शान्ति से जीवन जियें |

1 comment:

mukesh said...

वेशक आदरणीय प्रभाष जोशी जी हिन्दी पत्रकारिता के युग पुरूष थे और भविष्य मे कहलायेगे भी. चाटूकारिता करने वाले की बात मै नही करता लेकिन,यह मै निश्चित तौर पर कहता हू कि कम से कम हिन्दी पत्रकारिता का निरंतर विकास जोशी जी के नजरिये के वगैर सम्भव नही है.