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13.12.09

लो क सं घ र्ष !: लड़ो वोट की चोट दो

यह लोकतंत्र है मजबूत और सुदृढ़ लोकतंत्र। इसको और सुदृढ़ बनाने के लिए वोट का हथियार उठाना बहुत जरूरी है। हम आये दिन रोते हैं रोना अपनी गरीबी का, अपनी कमजोरी का, साधन विहीनता का, बेरोजगारी का, जमाखोरी का, महंगाई का, गुंडागर्दी का, गुंडाराज का, माफिया राज का, चोरी-डकैती का, घूसखोरी का, सरकारी कामों में कमीशन का और लूट का - कहां तक गिनाऊं, गिनाना आसान नहीं है।
कुछ ने कहा दाल में काला है, कुछ ने कहा पूरी दाल काली है। सच है जिसने जो भी कहा पर इसका इलाज, शायद लाइलाज है यह मर्ज। अभी चन्द दिनों पहले बात हो रही थी एक अधिकारी से जो मुझसे बोले एक मामले जनहित याचिका करने के लिए, मैंने कहा अगर वो याचिका मैं करता हूं तो वह जनहित याचिका न होकर मेरी स्वहित याचिका बनकर रह जायेगी क्योंकि उसमें लोग मुझे हितबद्ध व्यक्ति समझकर निशाना मुझ पर साधेगें इसलिए मैंने इसके लिए नाम सुझाया सामाजिक हितों को रखकर एक सामाजिक कार्यकर्ता का। जाने-माने कार्यकर्ता हैं वो नाम लेते ही बोले- अच्छा आप संदीप पाण्डे को बता रहे हैं, जो सभी अधिकारियों को भ्रष्ट बताते हैं। भ्रष्टाचार हम करते नहीं बल्कि वह तो हमारी मजबूरी है। हम अपने वेतन में कैसे चला पायेंगे अपनी जिंदगी, गिनाना शुरू किया हर चीज की महंगाई का। मैंने उनको समर्थन देते हुए कहा-हम देश के लगभग सब लोग बेईमान हैं। अपने को बेईमान बताते हुए उन्होंने खुशी से मुझे बेईमान होना मान लिया। मैंने बात फिर आगे बढ़ाई, हां, हम सब बेईमान हैं लेकिन ईमानदार है वह व्यक्ति जिसको बेईमानी का मौका नहीं मिलता। वह बोले आपने तो मेरी बात कह दी, लेकिन मैंने उनकी बात में एक बात और जोड़ी, लेकिन यह तो सिद्धान्त है और हर सिद्धान्त का अपवाद भी होता है अगर कोई ईमानदार है तो अपवाद स्वरूप।

लगता है मैं बहक गया अपनी बात कहते-कहते विषय से हट गया, विषय तो सिर्फ इस वक्त है-लोकतंत्र में वोट की चोट का। हमने तो लोकतंत्र को भी राजशाही में बदल रखा है। राजा का बेटा राजा, उसका बेटा राजकुमार, आगे चलकर राजा। आजकल मीडिया ने एक राजकुमार को बहुत ही बढ़ा रखा है, खबरों में चढ़ा रखा है। कभी खबर आती है-राजकुमार ने दलित के साथ भोजन किया, कभी खबर आयी-राजकुमार ने दलित के घर में रात बितायी। राजकुमार ने दलित के साथ भोजन किया दस रूपये का, दलित के घर तक पहुंचने का खर्च आया, लाख में, दलित के घर तक चलकर सोने में खर्च आया, लाखों का और कुल मिलाकर राजकुमार पर प्रतिदिन खर्च आता है लगभग करोड़ का। फिर छोटे राजकुंवर पीछे क्यों रहें उन्होंने भी सिर उठाया, साम्प्रदायिक उन्माद फैलाया, साम्प्रदायिकता की सीढ़ी पर चढ़कर आकाश छूने का प्रयास किया, वो अलग बात है धराशायी रहे। इस लोकतंत्र ने बहुत सारे छोटे-छोटे राजा पैदा किये हैं जिनके अपने-अपने राज हैं, अपना-अपना ताल्लुका है और अपने दरबारी हैं। गोण्डा के गजेटियर में पढ़ा है कि अली खान के बेटे शेखान खान ने अपने बाप को मारकर उनका सिर मुगल दरबार में पेश किया जो अजमेर गेट पर लटकाया गया और मुगल शासक ने शेखान खान को खुश होकर खान-ए-आजम मसनत अली का खिताब देकर उसे जमींदारी का अधिकार दिया। यही हाल आज के लोकतांत्रिक राजशाही में है-भाई-भाई से लड़ता है, बाप-बेटे से लड़ता है, चाचा-भतीजे से लड़ता है, भतीजा-चाचा से लड़ता है। कोटा और परमिट तक के लिए हम नेताओं की चापलूसी करते हैं, उस चापलूसी में चाहे हमें उनका हथियार ही क्यों न बनना पड़े और हमें हथियार बनाकर लोकतंत्र के ये राजा आगे बढ़ते हैं और वंशवाद फल-फूल रहा है और हम चाटुकारिता करके ही अपने को बहुत बड़ा आदमी मान बैठते हैं। कभी कहते हैं भइया ने मुझे पहचान लिया, नेता जी ने मुझे नाम लेकर बुलाया, देखो कितनी अच्छी याददाश्त है, मंत्री जी ने सभा मेरे नाम का ऐलान किया बहुत मानते हैं मुझे, कहां जाते हैं किसी के घर नेताजी हमारे घर आये थे, सिक्योरिटी के साथ चलते हैं, बहुत बड़े आदमी हैं, देखो सिक्योरिटी छोड़कर और उसे चकमा देकर मेरे घर पहुंच गये, लेकिन यह नहीं सोचा सिक्योरिटी किससे हम जिसके प्रतिनिधि हैं उसके डर से सिक्योरिटी या फिर जिसके प्रतिनिधि हैं उसको डराने के लिए सिक्योरिटी, जितनी बड़ी फोर्स चलेगी जिसके साथ, उतना ही बड़ा स्टेटस माना जाएगा उसका, यह मान्यता दे रखी है हमारे समाज ने।

इन मान्यताओं को समाप्त करना होगा, लोकतंत्र में रहकर लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लोकतंत्र में भागीदार बनना बहुत जरूरी है, अगर हम हर काम में यही सोचेगें कि लोकतंत्र सिर्फ बड़े लोगों के लिए है, लोकतंत्र में कामयाबी बेईमानों की है, भ्रष्ट लोगों की है, झूठों और धोखेबाजों की है, बेईमानों और दगाबाजांे की है तो हम अपने साथ छल करते रहेगें इसलिए आवश्यक है इन मान्यताओं पर उठाराघात करने की।

आइए, समझिए-समझाइए, मिलिये-मिलाइये लोकतंत्र में वोट की कीमत का सही इस्तेमाल कीजिए और देश की पूंजी पर कुण्डली मारकर बैठे लोगों को शिकस्त देने के लिए, देश की सम्पत्ति को लूटने वालों के लिए एक हो जाइये, मिलकर लड़इये ओर लोकतंत्र के हत्यारों को राजा बनने से देश को बचाने के लिए वोट का चोट दीजिए।

मुहम्मद शुऐब
एडवोकेट

1 comment:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

शब्दों को जीना पङता, तब ही पङे प्रभाव.
वरना सारे शब्द हैं, निपट स्वार्थ-व्यापार.
निपट स्वार्थ-व्यापार, बढाते भ्रम ज्यादा ही.
शब्द-ग्रन्थ सब फ़ैलाते हैं भ्रम ज्यादा ही.
कह साधक कवि मानव बनकर जीना पङता.
तब ही पङे प्रभाव शब्द को जीना पङता.