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8.12.09

खरी सी बात!

खरेजी का विश्लेषण बहुत मौजूँ है. दसियों राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं की चीर-फ़ाङ की है. वे जानते हैं कि सब गलत हो रहा है. वे यह भी जानते हैं कि, उक्त बातों में सही होने की गुंजाईश भी नहीं है. बस, वे यह नहीं समझ पा रहे हैं,,,,, कि हर मानव सही करने की चाहत रखता है, मगर भ्रममें होने से सही हो ही नहीं सकता. ओशो की भाषामें कहें तो आदमी का होना ही गलत है, तो उससे जुङी कौन सी बात सही हो सकती है?... साँस लेना तक तो पाप में शुमार है, तो क्या करे आदमी? ना१ ना! मरने की बात ना करे.... मरना तो खुद एक धोखा है. जीवन अमर इकाई है, कभी नहीं मरता. और सारी समस्या तो यही है कि जीवन को समझा नहीं गया. जीवन समझ में आ जाये, तो यही सारे लोग सही करने लगेंगे. खरेजी समझें या ना समझें, आप तो समझ लें...

वाह खरेजी आपने खरी सुनाई बात.
प्रातः भी तो स्याह हो, जितनी स्याह है रात.
जितनी स्याह है रात, रोशनी कहीं ना दिखती.
भ्रमित व्यवस्था से जागृति की राह ना बनती.
कह साधक अब विज्ञ जनों को बात खरी सी.
समझ बनाओ अपने दम पर आप खरे जी!

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