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14.12.09

साधक की डायरी से!

१४-१२-२००९ प्रातः ९ बजे. आज घर को बन्द करना है, ताकि कल सुबह ५ बजे जयपुर के लिये निकल सकूँ. वापस लौटते २६ जनवरी हो जायेगी, तो सारा सामान धूल-गर्द से बचाने का इन्तजाम करना है. ईशान कोण का छोटा कमरा पीपल के एकदम पास है, रोशनदान से बहुत धूल आती है. यदि धूल की आँधी चल जाये तो सारा सामान रेत के टीबे में दबा मिलता है. मन्दिर है, भगवान अपनी रक्षा के लिये मेरी सावधानी पर ही निर्भर करते हैं. भग्वान खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते, इतनी सी बात पर मूलशंकर को गुस्सा आ गया, आगे जाकर उन्होंने ही दयानन्द बनकर आर्य समाज की स्थापना कर डाली. जबकि इसमें गुस्सा होने की कोई बात ही नहीं है. यह तो मानव की सर्वोच्चता और गरिमा का प्रमाण है. ’मैं’ है, तभी परमसत्ता है. मैं के बिना बिना परम सत्ता का प्रमाण कौन देगा?. मैं तो कहता हूँ कि परमसत्ता मेरे बिना नहीं, मैं उसके बिना नहीं. अब यह ’नहीं’ शब्द अस्तित्व में नहीं होता. है का अस्तित्व है, नहीं का नहीं.... एक कुडली का भाव बना है.
है का ही अस्तित्व है, नहीं का नहीं मित्र.
है को जान तो मिट गया, नहीं से बिगङा चित्र.
नहीं से बिगङा चित्र, यही है दुःख-समस्या.
है को जान तो मिट जाये भ्रम-दुःख-समस्या.
यह साधक कवि सह-अस्तित्व का मर्म बताता.
दुःख-समस्या नहीं, समझ से नित सुख आता.
उस कमरे के रोशन्दानों को कार्टून के टूटे गत्ते लगाकर बन्द करना समय साध्य काम है. सारे कमरों पर ताला लगाने से पूर्व इधर-उधर रखा सामान ठीक जगह रखकर सुरक्षित करना है. जिस घङी में सप्ताह भर पूर्व सेल बदलवाया, वह फ़िर बन्द हो गई, उसके साथ और एक खराब टेबल घङी भी ठीक करवा कर जाऊँ, वापस लौटने तक खराब हुये सेलका क्लेम खतम ना हो जाये. सारे कलफ़ लगे कपङे आयरन करने हैं, बाज़ारके रेट तो काबू में ही नहीं आते. सारा काम निपटाकर इस कम्प्युटर को भी खोलकर सहेजकर रखना होगा, लगभग डेढ माह तक अब लेपटोप ही काम आयेगा. भला हो आनन्द जी का, उनके एक मित्र से रिलायंस का डाटा कार्ड मिल गया, वरना मात्र ४०-५० दिनके लिये खरीदना पङता. आनन्द जी ने ब्रोड्बैंड का कनेक्शन देते समय यह साबित करने की कोशिश की, कि सरकारी आदमी असरकारी हो सकता है. मैंने उनकी ओफ़िसमें सबके बीच कहा था
" आप सरकारी हैं, अ-सरकारी कैसे हो सकते हैं." और उन्होंने अपनी रिस्क पर मुझे डाटा कार्ड भी दिलवा दिया.! उनका असरकारी होना इस बात की पुष्टि है कि भले सारी संस्थायें सङ-गल गई हों, मानव अभी भी ५१% सही है. हर मानव सबका भला करना ही चाहता है. हर मानव सही करना ही चाहता है. हर मानव चाहता कि उसका विश्वास किया जाय और उसे सबका विश्वास मिले. इस धरती को हर मानव बचाना चाहता ही है. आनन्द जी का सरल सहयोग शुभ भावों के प्रति श्रद्धा जगाता है.
बगिया से अब जनवरी अन्त में ही वास्ता पङना है. इस बीच खूमारामजी-हनुमानजी इसकी सेवा का आनन्द लेंगे, मटर, पालक भी उनको ही मिलेगा. अच्छे व्यक्तिहैं, मेरा बहुत ध्यान रखा. हनुमानजी के हाथ की बनी बाजरे की रोटी का मिठास जीभ पर और सुगन्ध सांसों में बसी है.
कल सुबह ५ बजे की बस से लगभग ११ बजे तक जयपुर पहुँचूँगा. जोगेश्वरजी पुरानी चौकी के पास मुझे लेने आयेंगे. उनके घरपर रहनेसे सुरेन्द्रजी से भी २-३ घंटा बात हो सकेगी, टिकट भी vip कोटे से कन्फ़र्म हो जायेगा. सुरेन्द्रजी सौर-ऊर्जा वालों से मिलवा भी देंगे. उनकी धर्म्पत्नी मनन चतुर्वेदी बङी जीवट वाली महिला हैं. ३०३५ अनाथ बच्चों को अपने घरमें अपने बच्चों की तरह रख कर पाल रही हैं. उनके स्वयं के बच्चे भी उसी आदर्श विद्या मन्दिरमें पढते हैं, जिसमें बाकी बच्चों के भी पढा रही हैं. किसी सरकारी काम से आज कोलकाता जा रही हैं फ़ओन आया कि एयरपोर्ट के पास कोई ढंगका होटल सुझा दूँ. मेरे घर में मेरे बिना रहने में संकोच कर रही हैं. मैंने श्रीमतीजी को बताया. अब चि.श्रेयाँश उनके स्वयं एयरपोर्ट से घर ले जायेगा. वैसे श्रेयाँश इतना व्यस्त रहता है, अक्सर कोलकाता से बाहर ही होता है, उससे बात करना भी मुश्किल अवसर सा होता है. अच्छा हुआ कि वह आज कोलकाता ही है, कल सुबह मुम्बई.

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