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12.12.09

पत्रकारिता का बदलता लक्षण ?

आज पत्रकारिता के बदलते स्वरुप पर आए दिन चर्चा होती रहती है .लगातार यह बात निकल कर सामने आती है की आज पत्रकारिता का लक्ष्य बदल गया है आज पत्रकारिता एक मिशन नही बल्कि प्रोफेसन हो गया है और आज पत्रकार एक खबरची की भांति काम कर रहे है आख़िर यह बात बार बार कैसे उठ रही है , क्या वास्तव में ऐसा ही कुछ हो गया है ,पत्रकारिता के साथ यह एक बहुत ही बड़ा सवाल बन चुका है .आज हर सेमिनार और गोष्टियों में यह बात की जाती है की फलाने अख़बार ने अमुख ख़बर के बदले में इतना पैसा लिया ,उस टेलीविज़न चैनल ने इस ख़बर को प्राइम टाइम पर चलाने के इतने पैसे लिए ,आख़िर कैसे ये बातें होने लगी है .लेकिन सही मायनों में देखे तो ये हुआ है आज बड़े बड़े बिजनेस घराने मीडिया में अपना पैसा लगा रहे है ,आपराधी ठेकेदार जैसे लोग अपना मीडिया नेटवर्क चालू कर चुके है और लगातार कर रहे है .तो अगर ऐसे लोग मीडिया में होंगे तो गिरावट से इनकार नही किया जा सकता है .माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान ने एक सेमीनार आयोजित किया था आम चुनाव २००९ के बाद विषय था लोकसभा चुनाव २००९ और मीडिया की भूमिका .कई बड़े- बड़े पत्रकार और नेता भी थे ,समाजसेवियों की भी कुछ संख्या मौजूद थी ,हर किसी ने कहा की मीडिया ने इस चुनाव में जमकर चांदी काटी है ,जमकर अपने प्रसार का दुरुपयोग किया है और धन की तिजोरी भरी है .तो यहाँ पर यह बात है की आख़िर उस सेमिनार में लोगो ने जो चिंता जताई उसपे अमल क्यों नही कर रहे है .कई वरिष्ट पत्रकार भी थे जिन्होंने अपनी विवशता को ही बयां किया एक तरह से वो लाचार से दिखे .समाजवादी सुरेन्द्र मोहन ने तो यहाँ तक कहा की मीडिया में आज नैतिकता का आभाव हो गया है .रामबहादुर रॉय ने तो लखनऊ चुनाव को लेकर कहा की कैसे हर मीडिया वालो ने धन लुटा है .खैर जो भी हो बात तो कुछ न कुछ है ही ,लेकिन अगर मीडिया में तत्कालीन समय में काम कर रहे लोगो की हालत को देखे तो लगता है की उनके पास चारा नही है वो क्या कर सकते है ?सीधा यह बात होता की तुम अमुख ख़बर को कुछ इस तरह लिखो तो वे करे तो करे क्या जॉब भी बचानी है ,जहाँ इस तरह की बात होगी वहां मुझे लगता है की पत्रकार नही सिर्फ़ खबरची ही मिल सकते है ?पत्रकारिता में गिरावट का कारन भी एक हद तक यह है .आज प्रतियोगिता इतनी कठिन हो गई है की अगर किसी मीडिया में कुछ ख़बर आई और आपका संस्थान उस ख़बर को नही दे सका तो आपकी तो छुट्टी ?तो ऐसे में एक पत्रकार की परिकल्पना तो व्यर्थ ही है जहाँ तक मैं समझ सकता हूँ ?आज मीडिया संस्थान में स्टिंग ऑपरेशन की मांग हो गई है जिसमे लोगो को कुछ ताज़ा और नई कहानी मिले लेकिन यहीं पर कभी कभी वो मात खा जाते है और कुछ ज्यादा ही सनसनी ख़बर मिल जाती है तो इस नए ट्रेंड पर रोक भी जरूरी है /कुछ नियम इनके लिए भी होने चाहए .मैं जहाँ तक सोचता हूँ अब लोग जमीनी नही हवाई पत्रकारिता की ओर बल दे रहे हैं जो की घातक है

2 comments:

Sunita Sharma Khatri said...

सचमुच आज पत्रकारिता मिशन नही व्यवसाय है पर कुछ प्रोफेशनों को व्यवसाय न बना कर समाज के हित में भी कार्य करने चाहिए।

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

सेवा भी व्यापार है, मीडीया की क्या बात.
बात के पैसे ले रहे, अध्यापक साक्षात.
अध्यापक साक्षात, देव-भगवान शिष्य के.
पैसे लेकर पाप करें, चर्चा क्या अन्य के?
कह साधक व्यापार के सिवा नहीं सांस भी.
मीडीया की क्या बात, व्यापार है सेवा भी.