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14.12.09

नैनो प्रकरण-४

सिंगुर ने सिर्फ़ समस्यायें ही दी हों ऐसा नहीं, समाधान भी बताया था. वैसे समस्या
कभी अकेली होती ही नहीं, न ही समस्या पहले आती है. पहले होता है समाधान.
यह प्रकृति का नियम, मानव अपने भ्रम के कारण नहीं देख पा रहा है. दूसरे शब्दों
में यह भी कहा जा सकता है कि समस्या भ्रम, या भ्रम का परिणाम होता है,
समस्या का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं होता. सिंगुर/टाटा या नैनो की समस्या भी इस
भ्रम में से खङी हुई है कि एक लाख रुपयों में गाङी मिलने से भारत आर्थिक प्रगति
करेगा,आम आदमी सुखी होगा. अब यह भ्रम तो इतना स्पष्ट है कि अनपढ आदमी
को भी पता है कि गाङी सुख नहीं, सिर्फ़ सुविधा दे सकती है, और वर्तमान
हालातों में तो गाङी हर तरह से दुविधा ही है. गलत विकास माडल के भुलावे में
और दिखावे के चक्कर में बिना सोचे-समझे जैसे लोग कार-फ़्रिज़ लेते हैं, वैसे ही
इनका टाटा की मंडली निर्माण करती है, सब भ्रममें चलता है. समाधान है समझ.

जवाब हाजिर है यहाँ हर सवाल का देख.
समस्या से आगे रहे समाधान नित देख.
समाधान है देख,समस्या मानो कन्या.
वर पहले से पैदा हुआ है करने धन्या .
यह साधक कविराय सदा से ही हाजिर है.
हर सवाल का जवाब पहले से हाजिर है. १५.

भारत की पहचान है , त्याग-धर्म-आचार .
आज हुआ विपरीत ही, इन्डिया का व्यवहार .
इन्डिया का व्यवहार,अखरता आम-जनों को.
पीङा देता जान-बूझकर राम-जनों को .
सुन साधक गीता-गायक की सही आन है.
निश्चित जीते धर्म, भारत की पहचान है . १८.

कितनी भी विपरीत हो ,परिस्थिति सुन यार .
पकङ के रखना राम को, होगा बेङा पार .
होगा बेङा पार ,आस्था बनी रहेगी .
सुख-शान्ति और , सक्रियता भी बनी रहेगी.
कह साधक कविराय , राम की सदा जीत हो .
परिस्थिति का क्या,कितनी भी विपरीत हो . १९.

इस भ्रमित व्यवस्था को बदलने प्रयत्न भी चल रहे हैं. कई
लोग, सन्त-महापुरुष और संगठन भारत के अनुकूल तन्त्र
बनाने में लगे हैं. देर-सबेर इस भ्रष्ट तन्त्र को समूल जाना ही
है. अपने बोझ से भी टूटेगा एक दिन.

सिस्टम को खा जायेगी, सिंगुर की यह हाय
पैसा, सत्ता, बाहुबल, करते सब अन्याय ।
करते सब अन्याय, हड़प ली जमीन सारी
लौटा नहीं सकते, कानून की है लाचारी ।
कह साधक कवि, जल्दी बदलो इस कानून को
पीड़ित जन की हाय लील जाये सिस्टम को ।

परिवर्तन-हित चल रहे , जाने कितने काम.
अपने –अपने ढंग से,लगे हुये निष्काम.
लगे हुये निष्काम,कि दिल में लगन एक है.
विश्व-गुरु हो जल्दी भारत, अगन नेक है .
कह साधक,यह तंत्र नहीं है भारत के हित .
इसीलिये सब लगे हुये हैं परिवर्तन हित . २०.

घङा पाप का भर रहा, दुष्ट- तन्त्र का खूब .
सुन्द-उपसुन्द ही लङरहे,आपस में ही खूब.
आपस में ही खूब,न्याय-कानून की खिल्ली.
उङा रही है खुल्लम-खुल्ला कबसे दिल्ली .
कह साधक कवि ,समय आ गया न्याय का.
दुष्ट-तन्त्र का देख, घङा भर गया पाप का.२९

शासन और प्रशासन का , निकल गया है राम.
न्याय और कानून भी जैसे बने हराम.
ऐसे बने हराम, कि समझदार कोई भी.
इनकी शरण में ना जायेगा यार कोई भी.
कह साधक कवि,कैसे जाये यह दुःशासन .
निज आचरण से लेके आओ धर्म का शासन .२५.

म से मोदी-ममता-मार्क्स,सिंगुर देता अर्थ.
नैनो के संग जुङ गये,भारत के गूढार्थ .
भारत के गूढार्थ,कार-खेती की टक्कर,
जीती कार और हारी खेती-उल्टा चक्कर.
कह साधक कवि,टाटा ने क्या बुद्धि खो दी,
कहता सिंगुर,म से समझो ममता- मोदी.२८.

गोधन गजधन बाजिधन, और रतनधन खान
जब आवे संतोष धन, सबधन धूरि समान ।
सबधन धूरि समान आज नैनो छाई है
धन की मौलिक परिभाषा ही शरमाई है।
साधक चेतन पर हावी स्पन्दनशून्य मशीन
मगर समझलें हे मानव सारे सुख गो आधीन ।

समय आगया देख लो,हो राक्षस का अन्त.
प्रगट करो भारत स्वयं,अपना शौर्य अनन्त.
अपना शौर्य अनन्त,सनातन-शाश्वत धारा.
करो स्वयंको मुक्त, तोङ-दो मोह की कारा.
कह साधक कविराय,उठो अब समय आ गया.
हो राक्षस का अन्त,यार अब समय आ गया.३०.

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