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10.12.09

कल का आज ?




पर्यावरण परिवर्तन के कटु सत्य से हम अपना मुह नही मोड़ सकते है आज देश ही नही वरन विष के सामने एक ऐसी समस्या आ खड़ी हुई है जिसका निदान निकट भविष्य में दुरूह दिख रहा है |पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है , ग्लेशियर पिघल रहे हैं |अंटार्कटिक की बर्फ की चादर की मोती कम होती जा रही है आख़िर इसका उपाय क्या है |कोपेनहेगन में चल रहे बैठक की मूल व्यथा यही है |विश्व के तमाम वैज्ञानिक इस बात पर माथा पची करने के लिए एक जुट हुए है |और ये सब हो रहा है हमारी आपकी ज़रूरतों के कारण|समुद्रों का जलस्तर दिन बदिन बढ़ता जा रहा है रहा है ये सच है. वैज्ञानिक जुटे हैं ऐसे तरीक़े खोजने में जिससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम किया जा सके |आख़िर इस समस्या से कैसे निजात पाया जाए |

फिज़्ज़ी हो या वेटिकेन सिटी विश्व का कोई भी देश नही बच पायेगा |मानवता का समूल नाश हो जाएगा | प्रकिर्ती पर विजय पताका फहराने वाली सोच रखने वाली इस मनुष्य जात की सोच में अब कौन सा उत्पात मच गया है की इन्हे विश्वस्तरीय बैठक की बात दिखने लगी |सुख और समिर्धियों को प्राथमिकता देने वाला ये मनुष्य शायद यह नही सोच रहा है की उसके भोग विलासिता वाली इस जिन्दगी के लिए ये पृथ्वी ही नही बचेगी |ये पूरे विश्व को एक चेतावनी है की वो अभी भी सचेत हो जाए अन्यथा सृष्टि के इस अजीब सी संरचना का विनाश देखने को तैयार रहें |
पर्यावरण परिवर्तन एक कटु सत्य है जिससे आंखे चुराना शायद मानवता के हित में नही होगा |

विश्व के सामने आज एक ऐसा परिदृश्य बनता जा रहा है जो कल का डर सामने लाकर आइने में उसका चेहरा दिखा रहा है |जिस आईने से हम अपना मुह नही फेर सकते है जो डरावना भी उतना ही है |कल्पना मात्र से डर लगता है की विश्व बिना जल के और पृथ्वी बिना मनुष्य के | जागो आम आदमी जागो वो कहते है ना जभी जागो तभी सबेरा |आवश्यकता आविष्कार की जननी है और ये आविष्कार ही मानवता का दुश्मन बनेगी |
आप क्या सोच रहे हैं ?

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