कोपेन हेगन में फिर नाटक चल रहा है. व्यापार-व्यापार-व्यापार! धरती को छलनी करने वाले ही इसे बचाने का नाटक कर रहे हैं. इस पूरे सौर-मंडलमें धरती भले धूल के कण की तरह छोटी सी है, लेकिन इस छोटेसे ग्रह पर ही फूल खिलते हैं, चिङिया चहचहाती है, मानव सुख लेता है. इसके मिटने का सामान स्वयं मानव ( भ्रमित मानव ) ने जुटाया है.
धरती को छलनी किया, दानव बन किया नाश.
कैसे मानव जी सके, वैज्ञानिक भी हताश.
वैज्ञानिक भी हताश,कोपेन हेगन में बैठे.
विकास-की उल्टी धारा को कैसे रोके.
कह साधक केवल समझ से स्वर्ग हो धरती.
भ्रमसे दानव बना कर रहा छलनी धरती.
लोकमंच-पंकज आनन्द- कोपेन हेगन सम्मेलन पर बङा आलेख लिखते हैं. उनको त्वरित ट्टिपणी भेजी थी.
धरती के तल पर बने ऊर्जा स्रोत अनन्य.
मत खोदो तुम पेट को, धरा बनेगी धन्य.
धरा बनेगी धन्य, जागृति निजमें लाओ.
समझो प्रकृति-चक्र, पर्यावरण बचाओ.
कह साधक कोपेन हेगनमें नहीं मिले हल.
ऊर्जा स्रोत अनन्य बने हैं धरती के तल. २४
भास्कर के ८ दिसम्बर अंक में मुख पृष्ठ पर एक अनाम आलेख बहुत प्रभावी था. उनको ट्टिपणी भेजने का समय ही ना मिला, भङास पर ही लिख देता हूँ.
पर्यावरण बचाना भी, बना आज व्यापार.
ऊपर से अच्छा लगे, भीतर गहरी मार.
भीतर गहरी मार, रुप्पया सिर चढ बैठा.
मानव का लालच धरती का दर्द बढाता.
कह साधक रुपया है भ्रमका बङा खजाना.
है व्यापार, नाम है पर्यावरण बचाना.५
आज इतना ही, कल फ़िर मिलते हैं.... साधक उम्मेद.
10.12.09
धरती को छलनी किया!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
अच्छी रचना। बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ.
धन्यवाद मनोज जी!
आपकी शुभ कामनायें सफ़ल हों.
Post a Comment