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17.3.10

झूठ की पाठशाला

कोई नहीं जानता की दुनिया में पहला झूठ कब ? क्यों ? किसने ? किससे ? बोला ! ना ही कोई सर्वे हो सकता है की दुनियाँ में कितने लोग झूठ बोलते है ? क्यों बोलते है ? कब बोलते है ? और किससे बोलते है ? ना तो पहला झूठा तय किया जा सकता है और नाही कुल झूठे ! वैश्वीकरण के इस दौर में झूठ की इस लहलहाती फसल ( हरितक्रांति ) की प्रयोगशाला सारी दुनियाँ है तो पाठशाला भी एक ही है मोबाइल ! मोबाइल में झूट का वाइरस है ज्योंही आपके हाथ में मोबाइल आया की की वाइरस आपके अन्दर और फिर वो कब एक्टिवेट हो जाए कहा नहीं जा सकता ! इस को डिसइन्फेक्टिव करने के लिए कोई एंटीवाइरस भी इजाद नहीं हुवा है ! जब आप शहर में होते है तो नहीं होते और कभी कभी नहीं भी होते है तो भी होते है ! सिनेमा हाल में होते है पर नहीं होते मीटिंग में व्यस्त होते है ! बिस्तर में होते हुवे भी बाज़ार में होते है ! ये सब झूट हर कोई हर किसी के सामने हरदम बोलता नज़र आता है ! जितने बड़ा आदमी उसके हाथ में उतने ज्यादा मोबाईल उतनी बड़ी उसकी झूठ ! कभी-कभी तो अपनी सुनने - समझने की क्षमता पर भी संदेह होने लगता है ! इसी झूठ पर किसी ने सीरियल भी बनाया "कक्काजी कहिन" बड़ा चला था सबको अच्छा भी लगा "सबकी या यों कहें घर-घर की यही कहानी" ! सारी दुनियाँ की पाठशालाएं अभीतक बड़ी आबादी को साक्षर तक नहीं बना सकी इस अकेली पाठशाला ने सारी दूनियाँ को डॉक्टर ( विशेषज्ञ ) बना डाला फिर चाहे वो डॉक्टर हो ना हो , व्यसाई हो , बाबा हो या बाई हो झूठ तो सर चढ़कर बोलेगी ही हाथ में झूठ की पाठशाला जो है ! आप माने या ना माने झूठ तो आपको भी बोलना ही पड़ेगा यदि आपके हाथ में मोबाईल हो चाहे आजमा के देखलो ! पर ज्यादा ना लेलेना बादशाह बन बैठोगे बाकी आप जाने आपकी झूट आपको मुबारक ! नया उसूल झूठ पे झूठ लेनी देनी ! जय झूठे बादशाह !

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