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25.5.10

राह से भटक गया है आर्य समाज?

(उपदेश सक्सेना)
अपनी स्थापना के १३५ साल बाद आर्य समाज संगठन अपने उद्देश्यों से भटक गया लगता है. 10 अप्रैल 1875 को जब बम्बई में स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज का गठन किया था तब उसका मुख्य उद्देश्य वेदिक संस्कृति को मानने वाले ऐसे लोगों का समूह बनाना था जो सामाजिक बुराइयों के खिलाफ़ लड़ सकें. इसके कामकाज में गुरुकुल-स्कूलों का संचालन, शुद्धि सभाएं करना आदि थे, इसे Society of Noble people का नाम दिया गया था. अब आर्य समाज ने अपनी भूमिका केवल प्रेम विवाह करवाने वाली संस्थान तक सीमित कर ली है. देश भर में चल रहे आर्य समाज मंदिरों में आज सामाजिक बुराइयाँ मिटाने से ज़्यादा जातीय-अंतरजातीय विवाह करवाए जाते हैं, यह ज़मीनी हकीकत है, इससे कई लोगों को ख़ासा बुरा भी लग सकता है.
आंकड़े गवाह हैं कि पिछले कुछ दशकों में देश में हुए अधिकाँश विवाह इन आर्य समाज मंदिरों में हुए हैं. इन तथ्यों की तस्दीक की है हरियाणा के आर्य समाज ने. वहाँ आर्य समाज के एक धड़े ने माता-पिता और गांव वालों की अनुमति के बिना समाज के मंदिरों में होने वाली शादियों पर रोक लगाने का फैसला किया है। सभा के प्रतिनिधि के अनुसार “हम एक ही गोत्र और गांव में शादी की अनुमति नहीं दे सकते। समाज के कायदे-कानून का उल्लंघन करने वाली शादियों को भी स्वीकृति नहीं देंगे।“ अपनी सफाई में सभा के प्रतिनिधि की ओर से यह भी कहा गया है कि वे अंतरजातीय विवाह का विरोध नहीं करते, लेकिन भविष्य में शादी करने वाले जोड़ों को मंदिरों में अपने माता-पिता और गणमान्य लोगों के साथ आना होगा। उनके मुताबिक प्रेम विवाह हितकर नहीं है क्योंकि ऐसी शादियों में युवा सिर्फ सुंदरता देखते हैं।वे शादी के आधार की प्रकृति और गुणों को नहीं देखते। इस लंबे चौड़े स्पष्टीकरण में आगे कहा गया है कि भावी संतान को सुसंकृत करने के लिए सोलह संस्कारों का आदेश है. चाहे किसी भी विकृत अवस्था मे हो सम्पूर्ण भारत वर्ष के हिंदु समाज मे इन संस्कारों का किसी न किसी रूप मे पालन किया जाता रहा है. सब का नही तो कुछ महत्वपूर्ण संस्कारों का प्रचलन तो है ही, यही भावनाएं यम और नियम भी हमे याद कराती हैं. एक हिंदु का सामाजिक व्यवहार विश्व के सब लोगों से पृथक इन्ही भावनाओं के कारण होता है. जिन मे से विकृतियों के कारण कुछ हमारे समाज के लिए एक अभिशाप भी सिद्ध हो रहे हैं.
हरियाणा और कुछ अन्य जगहों की खाप पंचायतों द्वारा पिछले लंबे समय से सगोत्र विवाह करने वालों को हिंसक दंड दिए जाने की घटनाएं बढ़ गई हैं. इस समानांतर क़ानून व्यवस्था को कतई जायज़ नहीं कहा जा सकता, हालांकि यह लंबी बहस का मुद्दा हो सकता है कि एक ही जाति में विवाह करना कितना बड़ा ज़ुर्म है, लेकिन इसकी आड़ में होने वाली हत्याएं भी किसी क़ीमत पर जायज़ कैसे कही जा सकती हैं. वेदिक तकनीक और मनु की आचार-संहिता का पालन हो अथवा वेदिक संस्कृति की पुनर्स्थापना यह तभी संभव होंगे जब इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए गठित आर्य समाज जैसी संस्थाएं अपनी लीक से हटकर काम न करें.......देश तो वैसे भी रसातल में जा रहा है.

3 comments:

tension point said...

आपने वाकई नब्ज पर हाथ धरा है एकदम ठीक लिखा है पर अब मैं समझता हूँ कि स्वामी राम देव जैसे संत इस समूचे विषय पर चाहे धर्म हो, संस्कृति हो, सभ्यता हो,संस्कार हों , इतिहास हो , अच्छी परम्पराएँ हों व अन्य भी वो विषय जो यहाँ पर मैं नहीं लिख पा रहा हूँ वह सब अपने योग व भारत स्वाभिमान के मंच से सही करने के लिए पूरे जोर- शोर से किसी अवतार की तरह लग गए हैं कृपया आप भी उन्हें देखिये | सुबह पांच से साढ़े सात व शाम को आठ से नौ बजे तक आस्था चैनल पर देखे |

डॉ० डंडा लखनवी said...

स्वामी दयानंद सरस्वती महापुरुष थे। उनके हृदय में भारतीय समाज में व्याप्त असमानता और अज्ञानतावादी कैंसर को दूर करने की अतीव उत्कंठा थी। उन्होंने उसका प्रयास किया। उनके तप से सामाजिक व्यवस्था में कुछ सुधार भी हुआ परन्तु वे सुधार चिरस्थायी न रह सके। जो लोग धर्म और समाज में व्याप्त विद्रूपताओं से संधर्ष करने की अपेक्षा सत्ता की मलाई चाटने में आगे रहते हैं। वे यह भी जानते हैं कि धर्म को सत्ता शीर्ष पर पहुँचने की सीढ़ी बड़े आसानी से बनाया जा सकता है। आजादी के पहले और आजादी के बाद यह टोटका बराबर अपनाया जाता रहा है। आगे भी इस टोटके को अपनाए जाने की प्रबल संभावनाएं हैं। धर्म और समाज में व्याप्त गंदगी की सफाई का लक्ष्य हम बिसार चुके हैं। आपने ठीक कहा है-’राह से भटक गया है-आर्य समाज।’ विचलन की राह पर केवल यही संस्था नहीं हैं और भी अनेक संस्थाओ की यही स्थिति है।

Anonymous said...

shankar phulara jine ekdam sahikaha he...desh kihalat dekh kar bahut nirasha hoti thi ..lakin ab lagta he Bhagvan kikripa hare pavitra dhara par barsi hie is liya Swami Ramdev ji ka avtar hua he..mujhe asha he anya karyokialava is desh me koi slaughter hose nahi hoga sabko jeene ka ahikar hoga..jisse dhartimata prasann hogi..