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5.7.10

धारा 420 के रजिस्टर्ड आरोपी बन नगरागमन पर हरवंश सिंह के स्वागत होने को आखिर क्या कहा जा सकता हैं?
ज़िले में भाजपा के संगठनात्मक चुनाव हुये काफी समय बीत गया हैं लेकिन जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन अपनी कार्यकारिणी नहीं बना पाये हैं। कहा जा रहा है कि सिवनी विधायक नीता पटेरिया के प्रदेश महिला मोर्चे के अध्यक्ष बनने के बाद उन्हीं की आपत्ति पर इस सूची को अनुमोदन नहीं मिल पा रहा हैं। प्रदेश की भाजपायी राजनीति में मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की आंख की किरकिरी बन चुके प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेता फग्गनसिंह कुलस्ते के प्रभाव क्षेत्र में सेंध लगना शुरू हो गई हैं। शिवराज के राजनैतिक गुरू सुन्दरलाल पटना की अनुयायी राज्यसभा सदस्या आदिवासी नेत्री अनुसुइया उइके के दौरे लगना चालू हो गये हैं।जिले और प्रदेश के राजनैतिक हल्कों में इन दिनों आमानाला जमीन घोटाले के चर्चे हैं जिसमें विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह लपेटें में आ गये हैं। इस मामले में प्रेस कांफ्रेंस लेने जब हरवंश सिंह धारा 420 के आरोपी बन कर सिवनी शहर में आये तो उनके समर्थकों ने ढ़ोल बाजे, आतिशबाजी, फूलमालाओं से उनका ऐसा स्वागत किया मानो वे कोई ऐसी जंग जीत कर आयें हों जिससे समूचे जिले की छाती गर्व से फूल गई हो।भाजपा यदि आरोपियों के चुंगल से सही में संवैधानिक पदो को बचाना चाहती हैं तो निर्धारित प्रक्रिया के तहत उपाध्यक्ष के विरुद्ध संसदीय कार्यमन्त्री अविश्वास प्रस्ताव लायें और सदन में कार्यवाही करें जो कि वैधानिक मंच हैं। अन्यथा इस बयानबाजी और राज्यपाल को ज्ञापन देने से कुछ होने वाला नहीं हैं।
जिला कार्यकारिणी की घोषणा में विलंब चर्चित-
जिले में भाजपा के संगठनात्मक चुनाव हुये काफी समय बीत गया हैं लेकिन जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन अपनी कार्यकारिणी नहीं बना पाये हैं। बताया तो यह जा रहा हैं कि वे अपनी कार्यकारिणी की सूची भोपाल भेज चुके हैं लेकिन वहां से अभी मंजूरी नहीं मिल पायी हैं। कहा जा रहा है कि सिवनी विधायक नीता पटेरिया के प्रदेश महिला मोर्चे के अध्यक्ष बनने के बाद उन्हीं की आपत्ति पर इस सूची को अनुमोदन नहीं मिल पा रहा हैं। जिला भाजपा अध्यक्ष सुजीत जैन भाजपा की स्थानीय राजनीति में पूर्व विधायक नरेश दिवाकर के खेमे के माने जाते हैं।नीता नरेश सम्बंध जग जाहिर हैं कि दोनो एक दूसरे को फंटी आंख भी नहीं सुहाते हैं। हालांहिक अभी अख्बारों में ऐसे समाचार भी प्रकाशित हुये हैं कि जिले की सूची को अनुमोदन मिल चुका है लेकिन अभी वह सार्वजनिक नहीं की गई हैं। इसका क्या कारण है यह तो अभी कहा नहीं जा सकता लेकिन यदि नीता का ज्यादा हस्तक्षेप हो गया होगा तो उसे ठीक कराने के प्रयास अवश्य ही किये जायेंगें।
कुलस्ते के प्रभाव क्षेत्र में अनुसुइया के दौरों की चर्चा-
प्रदेश की भाजपायी राजनीति में मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान की आंख की किरकिरी बन चुके प्रदेश के वरिष्ठ आदिवासी नेता फग्गनसिंह कुलस्ते के प्रभाव क्षेत्र में सेंध लगना शुरू हो गई हैं। शिवराज के राजनैतिक गुरू सुन्दरलाल पटना की अनुयायी राज्यसभा सदस्या आदिवासी नेत्री अनुसुइया उइके के दौरे लगना चालू हो गये हैं। भाजपाइयों का ही कहना हैं कि पहले कभी भी उनको आमन्त्रित करते थे तो वे टाल जातीं थीं लेकिन अभी हाल ही में उन्होंने सिवनी और लखनादौन का दौरा कर सभी को चौंका दिया हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं कि अनुसुइया उइके और फगग्न सिंह के भाई रामप्यारे दोनों ही पहले लखनादौन से भाजपा की टिकिट पर विधानसभा चुनाव लड़कर हार चुके हैं। वैसे तो भाजपा आलाकमान ने कुलस्ते को अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया हैं लेकिन वे पहले भी इस पद पर रह चुकें हें और उनकी अपेक्षा कुछ और थी जो पूरी नहीं हुयी हैं। इसके विपरीत शिवराज समर्थक नरेन्द्र तोमर को राष्ट्रीय महामन्त्री बना दिया गया हैं। कुलस्ते जैसे वरिष्ठ आदिवासी नेतृत्व की अनदेखी को वे और उनके समर्थक बरदाश्त नहीं कर पा रहें हैंं।
हरवंश सिंह के आरोपी बनने से सियासी हल्कों में हलचल
जिले और प्रदेश के राजनैतिक हल्कों में इन दिनों आमानाला जमीन घोटाले के चर्चे हैं जिसमें विधानसभा उपाध्यक्ष हरवंश सिंह लपेटें में आ गये हैं। इलाके के जमीन्दार मरहूम फैलकूस मोहम्मद साहब ने फकीर को खैरात में कुछ जमीन दी थी। कुछ जमीन फकीर परिवार ने मेहनत करके खरीदी थी। इसी फकीर परिवार के वारसानों में से कुछ ने इस जमीन में से लगभग 21 एकड़ जमीन 4 लाख 50 हजार रुपये में बेच दी थी। इसी फकीर परिवार के एक वारसान मो. शाह ने अपने भाई नियाज अली और हरवंश सिंह तथा उनके पुत्र रजनीश सिंह के विरुद्ध परिवाद पेश किया था। कोर्ट ने एक महीने का समय देकर भा.दं.प्र.सं. की धारा 156 (3) के आदेश पारित कर पुलिस को निर्देश दिये थे। मामला धनौरा थाने की पुलिस चौकी सुनवारा के अंर्तगत था जो कि हरवंश सिंह के विधानसभा क्षेत्र में आता हैं। चौकी प्रभारी ने एक महीने बाद एक आरोपी नियाज अली के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया हैं तथा शेष दो आरोपियों,हरवंश सिंह और रजनीश सिंह, के विरुद्ध साक्ष्य ना होने से मामला दर्ज नहीं किया गया। जबकि 156(3) के अंर्तगत दिये गये आदेश में पहले मामला पंजीबद्ध करना पड़ता फिर जांच कर प्रतिवेदन में खात्मा करने या फिर मामला चलाने की बात की जाती हैं लेकिन सुनवारा चौकी प्रभारी नें हरवंश सिंह एवं रजनीश सिंह के खिलाफ बिना मामला दर्ज किये जांच प्रतिवेदन सौंप दिया था। इस पर फरियादी के बयान भी कोर्ट में दर्ज कर लिये गये थे। लेकिन जब यह पाया गया कि कोर्ट के निर्देशों का पालन किये बिना चौकी प्रभारी ने जो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया हैं वह अन्तिम प्रतिवेदन नहीं हैं अत: कोर्ट ने स्वयं ही परिवादी के दर्ज किये गये बयान को निरस्त कर दिये। और दस दिन बाद अन्तिम प्रतिवेदन पेश करने को कहा था। इसके बाद भी धनौरा थाने ने शेष दो आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज ना करके मात्र डायरी में नाम शामिल कर जांच के लिये कोर्ट से 20 जुलाई तक का समय मांगां था। पुलिस का यह कदम विधिमान्य प्रक्रिया के अनुसार नहीं था। इससे ऐसा लगा था कि मानो प्रभावशाली आरोपियों को न्यायालयीन राहत लेने के लिये समय दिलाने के प्रयास का एक हिस्सा समझा जा रहा हैं। फिर ना जाने ऐसा क्या हुआ कि रातों रात उसी दिन पुलिस ने ना केवल मामला दर्ज कर लिया वरन जिला पुलिस अधीक्षक ने भी मीडिया में इसे स्वीकार किया कि हरवंश सिंह के खिलाफ मामला पंजीबद्ध हो गया हैं। मामला दर्ज होने की पुष्टि होते ही मानो बवाल आ गया। तमाम भाजपा नेताओं ने नैतिकता के आधार पर विस उपाध्यक्ष पद से स्तीफा मांगना चालू कर दिया। इलेक्ट्रानिक और पिं्रट मीडिया में मामले के तूल पकड़ लेने के कारण हरवंश सिंह ने अपना पक्ष रखने के लिये प्रेस कांफ्रेंस बुलायी। प्रेस कांफ्रेंस लेने जब हरवंश सिंह धारा 420 के आरोपी बन कर सिवनी शहर में आये तो उनके समर्थकों ने ढ़ोल बाजे, आतिशबाजी, फूलमालाओं से उनका ऐसा स्वागत किया मानो वे कोई ऐसी जंग जीत कर आयें हों जिससे समूचे जिले की छाती गर्व से फूल गई हो। वैसे इस केस में कुछ चीजे तो वास्तव में देखने लायक हुयी हैं। कोर्ट के तीन तीन बार निर्देश देने के बाद भी पुलिस ने हरवंश और उनके पुत्र के विरुद्ध प्रकरण दर्ज नहीं किया जो कि कानूनन करना चाहिये था। पुलिस की लचर कार्यवाही के सूत्र सुनवारा चौकी से जुड़े हैं या धनौरा थाने से,जिले से जुड़े हैं या कमिश्नरी और राजधानी से यह तो नहीं कहा जा सकता लेकिन सूत्रों का कहना हैं कि हरवंश सिंह के समर्थक यह दावा कर रहें हैं कि उनके नेता का इस मामले में बाल भी बांका नहीं होगा। इस मामले में यदि वे पूरी तरह आश्वस्त नहीं होते तो उपाध्यक्ष पद के साथ साथ विधायक पद से भी स्तीफा देने की घोषणा वे कभी नहीं करते। उनके समर्थको का तो यह भी दावा हैं कि हरवंश सिंह की भाजपा सरकार में तूती बोलती हें उनके खिलाफ पुलिस प्रतिवेदन आ ही नहीं सकता। पुलिस को यदि मन से सही जांच कर दूध का दूध और पानी का पानी करना होता तो क्या पहले से ऐसी कार्यवाही की जातीर्षोर्षो अदालतें तो फैसला अपने सामने आने वाले तथ्यों पर ही निर्णय देतीं है। भाजपा यदि आरोपियों के चुंगल से सही में संवैधानिक पदो को बचाना चाहती हैं तो निर्धारित प्रक्रिया के तहत उपाध्यक्ष के विरुद्ध संसदीय कार्यमन्त्री अविश्वास प्रस्ताव लायें और सदन में कार्यवाही करें जो कि वैधानिक मंच हैं। अन्यथा इस बयानबाजी और राज्यपाल को ज्ञापन देने से कुछ होने वाला नहीं हैं।

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