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13.7.10

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति

पाकिस्तान में आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक प्रताड़ना के शिकार हिंदू और सिख समुदाय के तकरीबन 15 से बीस लाख लोग निहायत बेगानगी में जी रहे हैं। बंटवारे के वक्त जिस घर बार के लालच में पराए देश में बस गए थे अब उसी को छोड़ कर अपने वतन भारत लौट आना चाहते हैं। पाकिस्तान से हिंदुओं और सिखों का पलायन पहले भी होता रहा है। वहां से बड़ी संख्या में आए ये लोग गुजरात, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, पंजाब दिल्ली और अन्य राज्यों में अपने अपने रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं।


जालंधर में ऐसे तकरीबन दो सौ परिवार रहते हैं। उन्हें यहां रहते दस से पंद्रह साल हो गए हैं। वह भारत की नागरिकता दिए जाने की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान के पेशावर से 1998 में परिजनों सहित जालंधर आए सम्मख राम ने कहा कि पाकिस्तान में हिंदुओं की हालत बदतर है। आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते हैं। हमारे पास न तो कोई अधिकार है, न ही कोई सुविधा। उन्होंने कहा कि वहां रह रहे लोगों को धार्मिक आजादी नहीं है। यही कारण है कि कराची और स्यालकोट के तकरीबन 15 से बीस लाख हिंदू और सिख पाकिस्तान छोड़ कर अपने मुल्क लौट आना हैं।


सम्मख राम कहते हैं कि अब तो यही हमारा मुल्क है और हम यहीं रहेंगे। हम पाकिस्तान लौट कर नहीं जायेंगे। चाहे हमें गोली मार दी जाए। कराची से अपना घर बार छोड़ कर यहां आए 70 वर्षीय व्यापारी मुल्कराज ने कहा सरकार की शह पर वहां मंदिर और गुरूद्वारों को तोडा़ जाता है। मेरे भाई का कारोबार सिर्फ इसलिए बंद करा दिया है क्योंकि मैं यहां भारत में हूं।


मुल्कराज अपने परिवार के दस सदस्यों के साथ यहां आए थे। उनमें से चार को यहां की नागरिकता मिल गई है। मुल्कराज को नागरिकता मिल गई है लेकिन उनकी पत्नी को नहीं मिल पाई है। उन्होंने कहा कि हम पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने का दबाव डाला जाता है। मना करने पर मारा पीटा जाता है। बच्चों को घेर लिया जाता है। ऐसी स्थिति में हम वहां नही रह सकते।


मुल्कराज ने कहा कि हिंदू और सिख वोट नहीं दे सकते। उनके लिए अलग से एक इसाई सांसद तय कर दिया जाता है जो उनकी समस्याओं को सुनता है। स्यालकोट से यहां आए ठक्कर सपाल ने एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि हम अपने परिजन का अंतिम संस्कार कर रहे थे। इसी बीच कुछ लोग मौके पर पहुंचे और इट तथा पत्थर मार कर चिता को बुझा दिया और अधजले शव को निकाल कर घसीटते हुए ले गए तथा उसे नाले में फेंक दिया।


सपाल ने कहा कि हिंदुओं और सिखों के लिए वहां श्मशान नहीं है। जो हैं भी वह तकरीबन तीन से चार सौ किलोमीटर दूर। वह कहते हैं कि जितनी आजादी हिंदुस्तान में मुसलमानों को हैं उतनी आजादी वहां के मुसलमानों को भी नहीं है। स्यालकोट से ही आए बुआदित्ता मल ने कहा कि स्थानीय लोग हमारे धार्मिक आयोजनों में खलल डालते हैं और हमारा मजाक उड़ाते हैं। वह हमारे आराध्य देवों की मूर्तियां फेंक देते हैं। धमकाते हैं कि आइंदा ऐसा नहीं होना चाहिए विरोध करने पर मार पीट करते हैं।


मुल्कराज ने कहा कि हमारा मुल्क अब हिंदुस्तान है। हम पाक दूतावास में पासपोर्ट के नवीकरण के लिए जाते हैं तो वह कहते हैं कि पहले पाकिस्तान जाओ और परिचय पत्र लेकर आओ। पाक जाने पर उन्हें जब इसकी जानकारी होती है कि यह भारत से आया है तो परिचय पत्र नहीं दिया जाता है। इससे हमें परेशानी हो रही है।


इन लोगों का कहना है कि वहां हिंदुओं का घर से निकलना दूभर है। हिंदू लड़कियों के साथ गलत व्यवहार किया जाता है। कई बरस पहले भारत आकर यहीं अपना घर बसा चुके फलक राज ने बताया कि भारत के खिलाफ पाक के लिए जासूसी करने से इंकार करने पर यातनायें दी जाती हैं। उंगली काट दी जाती है।






क्या पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति ऐसी है? क्या वहाँ के अल्पसंख्यक हिन्दुओं, सिखों, ईसाईयों के मूल अधिकार, राजनीतिक अधिकार, धार्मिक अधिकार, समानता का अधिकार और सबसे बढ़कर मानवाधिकार नहीं हैं? क्या इनके लिए मानवाधिकार संगठनों ने कभी आवाज उठाई? यदि जवाब 'नहीं...' है, तो फिर भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति काफी बेहतर हैं.



With spl. Thanks to Hindustan Dainik: http://www.livehindustan.com/news/location/rajwarkhabre/248-0-127630.html&locatiopnvalue=7






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