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30.9.10

भाषा और बोली को लेकर सदन में दिखी निशंक सरकार की गंभीरता--धीरेन्द्र प्रताप सिंह

भाषा और बोली को लेकर सदन में दिखी निशंक सरकार की गंभीरता--धीरेन्द्र प्रताप सिंह

उत्तराखंड को पूरे देश में देवभूमि होने का विशेष स्थान प्राप्त है। भारत के अधिकांश लोकप्रिय और श्रद्धा के केन्द्र तीर्थ स्थल इसी प्रदेश में है। वैसे तो यहां की सरकारें इन तीर्थस्थलों को लेकर शुरू से ही संवेदनीशील रही है। 10 वर्ष की आयु वाला यह प्रदेश कई राजनीतिक झंझावातों से समय समय पर जूझता रहा है और 10 साल में इसने पांच मुख्यमंत्री देखे।

लेकिन इन झंझावातों के बीच प्रदेश विकास की ओर लगातार गतिमान रहा है। प्रदेश के पांचवें मुख्यमंत्री के तौर पर कार्य कर रहे भारत के युवा विनम्र मुख्यमंत्री के तौर पर अपने आप को स्थापित कर चुके डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने जिस तरह से प्रदेश में विकास की गति को बढ़ावा दिया है वह अन्य राज्यों के लिए नज़ीर बन गया है।


प्रसिद्ध लेखक,प्रखर राजनीतिज्ञ और इन सबसे बढ़कर मझे हुए पत्रकार के रूप में वैसे तो मुख्यमंत्री ने कई कीर्तिमान बनाएं है लेकिन यदि संक्षिप्त में मुख्यमंत्री के ऐसे कार्य को रेखांकित करने को कहा जाए जिससे वे इतिहास में अपना अलग स्थान बनाते है तो वह कार्य निश्चित ही मुख्यमंत्री द्वारा भाषाओं और बोलियों को लेकर किया जाने वाला कार्य है।

कवि हृदय डा. पोखरियाल ने भाषाओं को लेकर जिस तरह की गंभीरता दिखाई है उससे अन्य राजनेता सीख ले सकते है। मुख्यमंत्री ने देवभूमि के रूप में स्थापित उत्तराखंड में देवभाषा संस्कृत को द्वितीय राजभाषा घोषित कर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के संस्कृत प्रेमियों का दिल जीत लिया। उनके इस कार्य से प्रसन्न लोगों ने जिस तरह से उनका पूरे देश में स्थान स्थान पर भव्य स्वागत और अभिनन्दन किया उससे संस्कृत को लेकर पूरे देश की भावना का पता चला।

हालांकि मुख्यमंत्री ने जिस तरह का साहित्य सृजन किया है वह अपने आप में ही उनकी साहित्यक गंभीरता का प्रमाण माना जा सकता है। लेकिन बीते मानसून सत्र में उन्होंने जिस तरह से उत्तराखंड की प्राचीन और लोकप्रिय बोलियों गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी को शासकीय कार्य के लिए मान्यता प्राप्त करने का संकल्प प्रस्ताव पारित करवाया उसने मुख्यमंत्री की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया है।

इस प्रदेश में उपरोक्त तीनों बोलियों का संपन्न इतिहास है तो साथ ही इन्हें बोलने वालों की बड़ी संख्या भी। बहुत अर्से से इन तीनों भाषाओं में राजकीय और न्यायिक कार्यो को करने की मांग उठती रही है। लेकिन इन मांगों को बराबर अनसुना किया जाता रहा है। इन बोलियों की मान्यता को लेकर मुख्यमंत्री ने गंभीर चिंतन किया और अन्त में इसे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया।

सरकार के इस प्रस्ताव ने क्या पक्ष क्या विपक्ष सबको एक कर दिया पूरे सदन ने एकमत से इन बोलियों में शासकीय कार्य,अशासकीय और न्यायिक कार्य करने के संकल्प को ध्वनीमत से पारित कर दिया और इसे भारत की महामहिम राश्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल के पास अनुमोदन के लिए भेज दिया। अब अगर महामहिम ने सहमती दे दी तो उत्तराखंड के सरकारी कार्यालयों और न्यायालयों में इन भाषाओं को बोलने वाले इसका प्रयोग कर सकेंगे।

विधानसभा में मानसून सत्र के दूसरे दिन प्रदेश के संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत ने सदन में यह प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में गढ़वाली,कुमाउनी और जौनसारी बोलियों को ग्राम पंचायतों,क्षेत्र पंचायतों और जिला पंचायतों की बैठकों में भागीदारी करते समय लोगों को बोलने का अधिकार दिए जाने की बात शामिल है।

इसके साथ ही आंगनबाड़ी केन्द्रों सरकारी अस्पतालों,राशन की दुकानों सर्व शिक्षा अभियान की बैठकों रोडवेज की बसों में टिकट लेने,मंडी परिषद में माल खरीदनें,बेचने के साथ ही सरकारी दफ्तरों में भी लोग इन बोलियों का धड़ल्ले से और आधिकारिक रूप से प्रयोग कर पाएंगे। इसके साथ ही इन बोलियों का प्रयोग निचली अदालतों में मौखिक रूप से अपना पक्ष रखने में भी किये जाने का प्रावधान होगा।

विधानसभा में पारित इस संकल्प में राष्ट्रपति से अपेक्षा की गई है कि वे उत्तराखंड की इन बोलियों को संबंधित प्रयोजनों के लिए सरकारी मान्यता प्रदान करेंगी। इस प्रस्ताव के बारे में संसदीय कार्य मंत्री प्रकाश पंत का यह कथन कि इन बोलियों को मान्यता मिलने के बाद राज्य की बोलियों को तो बढ़ावा मिलेगा ही साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में लोग अपनी भावनाएं भी ज्यादा प्रभावी और स्पष्ट ढंग से व्यक्त कर सकेंगे। उनका यह कथन इन बोलियों की प्रासंगिकता और महत्व को स्पष्ट करता है।

ये तो हो गई सरकार की बोलियों को लेकर संवेदनशीलता। निशंक सरकार ने कार्यभार संभालने के तुरंत बाद से जिस तरह से प्रदेश को हर मंच पर अलग रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है उसका परिणाम आने वाले भविष्य में दिखेगा। प्रखर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कुशल सरकार ने उत्तराखंड को भारत का भाल बनाने में दिनरात एक कर दिया जिसका परिणाम है कि करीब दर्जनभर हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड कई मामलों में नंबर वन गया है और यहां से अन्य राज्यों को अलग कार्य करने की प्रेरणा मिल रही है।

महाकुंभ को सरकार ने कुशलता से संपन्न करवा कर उसे वैश्विक आयोजन बना डाला तो प्रदेश की देवभूिम के रूप में बनी पहचान को स्थापित करने के लिए हरिद्वार में जल्द ही एक विशेष संस्कृति विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है। इतना ही नहीं हरिद्वार के धर्मक्षेत्रों में अन्य भाषाओं के साथ साथ सभी सरकारी गैर सरकारी संस्थाओं में संस्कृत भाषा में ही नाम और पदनाम पटिटकाएं लगाने का आदेश देकर इस भाषा को एक नया जीवन प्रदान किया है।

बहरहाल सरकार के ये कुछ ऐसे फैसलें है जिनका तुंरत परिणाम दिखने लगा है। लेकिन इसके अलावा भी सरकार ने प्रदेश हित में कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनके चलते भविष्य में उत्तराखंड की सूरत बदलने वाली है।

धीरेन्द्र प्रताप सिंह देहरादून उत्तराखंड

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