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16.9.10

बडा जुल्‍मी है,विशेष सशस्‍त्र बल कानून ।

हम पूरे विश्‍व में लोकतंत्र के सबसे बडे लम्‍बरदार होने का दावा करते हैं।जहॉं कहीं नागरिक अधिकारों की बात आती है,हम अपनी सबसे बडी संवैधानिक पोथी को लेकर सहयोग का विश्‍वास दिलाते हैं।हमारी संस्‍क्रति हमें जियो और जीने दो का पाठ पढाती है।तो क्‍यों आज तक इस जुल्‍मी सशस्‍त्र बल कानून में संशोधन को गठित उच्‍चस्‍तरीय समिति की सिफारिशों को ठंडे बस्‍ते में डाल दिया गया था।जो 2005 में अपनी रिर्पोट दे चुकी है। यह समिति सुप्रीम कोर्ट के सेवानिव्रत न्‍यायाधीश की अध्‍यक्षता में ग‍ठित की गयी थी।
विशेष सशस्‍त्र बल कानून देश के जम्‍मू कश्‍मीर के अलावा पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में लागू है।इस कानून की धारा 4 में यह व्‍यवस्‍था है कि कोई गैरकमीशनड अफसर भी किसी व्‍यक्ति को बिना कारण बताये गिरफतार करने का आदेश दे सकता है,बिना वारंट किसी की तलाशी ले सकता है,एवं गोली चलाने का आदेश दे सकता है।जबकि पूरे देश में संविधान का मौलिक अधिकारों सम्‍बधी अनुच्‍छेद 21 नागरिक को जीवन जीने व दैहिक स्‍वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। यानि आप कानून की किसी युक्तिसंगत प्रक्रिया व कारण बताये
बिना इन अधिकारों को नहीं छीन सकते।यह अधिकार केवल भारतीयों को ही नहीं है,बल्कि हमारा संविधान गैर भारतीयों को भी यह हक प्रदान करता है। लेकिन कश्‍मीर,मणिपुर राज्‍यों में लोगों को अनुच्‍छेद 21 का का कोई कानूनी हक नहीं है।अब समझना आसान है कि उक्‍त राज्‍यों के नागरिकों की औकात विदेशियों के बराबर भी नहीं है।
अब इस जुल्‍मी कानून की धारा 5 का मसला लीजिये,इसमें यह प्रावधान है कि अशांत क्षेत्र में अरेस्‍ट किसी व्‍यक्ति को किसी पुलिस थाने के किसी भारसाधक अधिकारी के समक्ष यथाशीघ्र पेश करना होता है।अब यथाशीघ्रता को परिभाषित करने का कोई पैमाना नहीं है।जबकि हमारे कानून में यह प्रावधान है कि किसी भी अरेस्‍ट व्‍यक्ति को 24 घंटे के अन्‍दर केवल मजिस्‍ट्रेट के समक्ष पेश किया जायेगा। हम सबको याद करना होगा जब मणिपुर में एक युवा लडकी मनोरमा देवी को इस कानून के तहत अरेस्‍ट कर लिया गया था।अगले दिन इस लडकी की लाश जंगल से प्राप्‍त हुयी थी।पूरे मणिपुर में इसका तीखा विरोध हुआ।महिलाओं ने नग्‍न होकर सडकों पर विरोध किया।विरोधस्‍वरूप एक युवक ने आत्‍मदाह कर लिया।लेकिन हमने अपनी आदत के मुताबिक इसे हल्‍के में लिया,इसकी गंभीरता को समझने की कोशिश नहीं की। मणिपुर मे सन 2000 से इस विशेष सैन्‍य कानून के विरोध में चानू शर्मिला लगातार अनशन पर बैठी हैं।लेकिन उनकी सुध किसी ने नहीं ली।
विशेष सशस्‍त्र कानून की धारा 6 के प्रावधान मे यह उल्‍लेख है कि किसी सैनिक द्धारा अपराध करने पर उसके विरूद्ध कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती है। आरोपी सैनिक पर मुकद्धमा चलाने के लिये पहले केन्‍द्र सरकार से अनुमति ली जानी जरूरी है।इस तरह नागरिकों को कोई न्‍या‍यायिक सहायता नहीं मिल पाती।जबिक हमारे मौलिक अधिकारों के खिलाफ किसी भी कदम के विरूद्ध हम सुप्रीम कोर्ट में अनु,32 व उच्‍च न्‍यायालय में अनु,226 के अंर्तगत तत्‍काल हैल्‍प ले सकते हैं। इससे उत्‍पन्‍न आक्रोश का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि भ्रष्‍टाचार के मामले में सरकारी अफसरों पर मुकद्धमा चलाने के लिये सरकार की अनुमति ली जाने की कानूनी जरूरत हमारे सबके अंदर बौखलाहट व कुंठा पैदा कर देती है।भ्रष्‍टाचार के विरूद्ध यह कानूनी अडचन हमें कमजोर साबित कर देती है।
सही मायने में इस जुल्‍मी कानून में संशोधन की सिफारिशों को हमें बहुत पहले स्‍वंय मान लेना चाहिये था।आज जब बात काफी बिगड गयी है,घाटी के कई नेता इसकी आड में स्‍थानीय जनता को बरगलाने की साजिश में व्‍यस्‍त हैं।इसी प्रकार की साजिशों व ज्‍यादतियों को लेकर लागों को पत्‍‍थरबाज बनाने की चाल चली गयी है।इस आड में सेना व पुलिस की जायज कार्यवाहियों को भी अत्‍याचार कहा जा रहा है।अब घाटी व पूर्वोत्‍तर राज्‍यों में लोगों के विश्‍वास को जीतना होगा,उनकी आस्‍था को देश के कानून के साथ जोडना पडेगा अन्‍य‍था विदेशी ताकतें हमें तोडने की साजिशें करती रहेंगीं।और हम उनकी मांगों के सामने मजबूर हो जायेंगें।
** इस ब्‍लाग में तथ्‍यों का उपयोग विधि विशेषज्ञ डा,हरबंस दीक्षित जी के लेख से उनकी अनुमति से किया गया हैं।**

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