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6.10.10

जब वो पूरी रात जगाती रही……….!


जीवन की तेज़ रफ़्तार से चल रही गाड़ी में दस मिनट का समय निकाल पाना आसान होते हुए भी काफी मुश्किल सा नज़र आता है,वही पुरानी घिसी पिटी रोज की दिनचर्या सुबह-सुबह गायत्री मंत्र वाले अलार्म टोन के साथ एक सुन्दर दिन की अपेछा करते हुए आँखों का खुलना ,लेट होने का समय दिमाग में रख कर जल्दी-जल्दी अपनी आवश्यक पूर्तियों को पूरा करते हुए समय से पांच मिनट पहले पहुचने का टार्गेट लिए आफिस में घुसना और एक गिलास सादे पानी के साथ जिम्मेदारी पूरी करने के लिए कार्य में लग जाना,कभी बोस की सुनना तो कभी झल्लाए दिमाग से जूनियर को सुनना,फिर साम को जल्दी घर पहुँचाने की लालसा लिए लेट हो जाना और रात में देर से सोना……………….मन उबा तो सोचा की क्यों न दो चार दिन की छुट्टी लेकर कहीं घूम आने का प्रोग्राम बनाये,दिमाग और मन के साथ काफी मशक्कत और दोनों को मनाते हुए किसी नए चेहरे से मिलने और उससे बात कर कुछ अनुभव को सुनने और समझने का शौकीन, सोचा की क्यों ना स्कूल के दिनों का सबसे अभिन्न और भाई जैसा दोस्त जिसके पिता जी नेता थे और देश में होने वाले चुनावों में मजदूरों और गरीबों की लड़ाई जैसे मुद्दे को लेकर सक्रीय रहते थे जिनके बारे में कई बार अपने दोस्त शिवानन्द के मुह से आज से सत्रह शाल पहले सुना था, जैसे ही ब्याक्तित्व से मिला जाय इसी बहाने सत्रह शाल पुराने दोस्त से मुलाकात भी हो जाएगी जिसके साथ बचपन की यादें ताज़ा करते हुए मेरा कुछ मन हल्का होने के साथ-साथ शायद दोस्त को भी ख़ुशी मिल जाय और साथ ही मजदूरों व गरीबों के लिए लड़ने वाले ब्यक्तित्व से एक छोटा सा इंतरवियु भी कर लूँगा,सो शिवानन्द को खबर कर निकल पड़ा……………….आने की खबर सुन सुबह से ही इंतजार में शिवानन्द स्टेसन के पीछे खड़ी नीले रंग की सफारी में शिन्शो को उतारे ड्राईवर की सिट पर इस कदर सोने में ब्यस्त था जैसे मानो की उसने अपने छ: साल पुराने घोड़े को किसी तंगी की वजह से आज ही बेचा हो,के पास से उसको ढूढ़ते हुए जैसे ही गुज़रा की मेरी निगाह उसके ऊपर पड़ी जो चश्मे को लगाये सो रहा था, को देख अचानक ही शिवानन्द को चस्मा लगा के सो जाने का अंदाज़ याद आ गया जो उसकी पुरानी आदत थी कहता है की इससे आँखों को ठंढी मिलती है,दोस्त को देख अचानक मुह से निकल रहे आवाज को रोकते हुए सोचने लगा की कहीं और कोई होगा तो खामखा में लफड़ा हो जायेगा! बोलूं या ना बोलूं रुक कर सोच ही रहा था की अचानक उसका फोन बजा तथा फोन को रिसीव करते ही उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और तुरंत फोन को काटते हुए शिवानन्द ने उतर कर कुछ महत्वपूर्ण गालियों के साथ मेरा स्वागत किया जो काफी शुखद पूर्ण अनुभूति थी………………………चलती गाड़ी में हाल-चाल करते कब घर पहुंचे पता ही नहीं चला! गेट के अन्दर घुसते ही बीसों घूमते नौकरों के साथ-साथ खुद उसके राजनीतिज्ञ ब्यक्तित्व वाले पिता ने मेरा भब्य स्वागत किया जैसे मानो की उनके घर कोई बहुत बड़ा आदमी पहुँच गया हो…………………..धीरे-धीरे सबसे मिलने के बाद शिवानन्द ने नहाने के लिए एक नौकर को बोला जो मुझे ले जाकर खुले में बने नहान घर में पहुँचाया और मै वर्षों बाद खुले में नहाने का आनंद लेते पुरे चालीश मिनट तक नहाता ही रहा……………………कुछ देर बाद हम दोनों दोस्त कई वर्षों बाद एक साथ खाने के टेबल पर बैठे और खाने में बने अनेकों ब्यंजनो को देखते हुए मेरे तो आधे पेट ने जबाब दे दिया लेकिन आधे ने खाने के लिए हामी भरी,सो मै भूखा खाने पे दोस्त के साथ लग गया और खाते हुए बोला की यार शिवानन्द भोजन तो खूब लाजवाब है तो उसने बोला कि दबा कर खा यार बहुत दिनों के बाद तो साथ खाना खा रहे है हम लोग………………नहीं यार अब पेट ने तो जबाब दे दिया है जैसे ही बोला कि उसने मेरे से पीछे देखने का इशारा किया और उसके इशारे को समझ जैसे ही मैंने अपने गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया की एक हल्का लेकिन बहुत ही मीठा थप्पड़ मेरे गलों पे आके चिपक गया……………………..क्यों बच्चू अभी ये गुलाब जामुन और जूस कौन लेगा……………………अरे रिंकी तू अभी यहीं है अरे बाप रे मै तो गया और मै शिवनाद से अचानक ही बोल पड़ा यार तुने पहले क्यों नहीं बताया की ये मैडम अभी यहीं है यार इसकी शादी क्यों नहीं कर देते तुम लोग ये तो आज फिर खिला कर मार डालने का प्लान बना ली होगी और वो बिचारा हँसते हुए कहने लगा की यार रोज तो मुझे मारती ही है आज तेरी बारी है, बहुत दिनों के बाद तेरा नंबर आया है ना…………………….. दरअसल रिंकी उसकी छोटी बहन थी लेकिन खाना खिलाते समय वो हम लोगों से बड़ी बहन जैसा ट्रीट करती थी और खाना खिलाने की जिम्मेदारी भी उसी की होती थी…………………फिर क्या था भर पेट खाना खाने के बाद रिंकी चार गुलाब जामुन खाने पे मजबूर करती रही और उसे रोकने की मेरी लाख कोशिशें हमेशा कि तरह फेल होती रहीं अंततोगत्वा मुझे वो चारो गुलाबजामुन खाना ही पड़ा,स्कुल समय में भी जब हम साथ खाया करते थे तो वही खिलने बैठती थी और जबरदस्ती कुछ ना कुछ खिलाया करती थी अचानक याद आ गया तथा जिसकी मानसिकता आज भी बिलकुल नहीं बदली थी को सोचता रहा और इधर शिवानन्द बस यही कहता रहा की भाई देख तेरे और उसके बिच मै कुछ नहीं कह सकता तू तो आया है चार दिन के लिए और अगर मै कुछ बोला तो मुझे उसका पनिशमेंट इसके शादी कर अपने घर जाने तक मिलता रहेगा इससे बेहतर है की मै चुप ही रहूँ………………………….और वो प्यारी छोटी बहन जो वर्षों की बहन के हाथों खाने की भूख को मिटाने में मशगुल थी,से मैंने खाने के साथ ही साथ चुटकी ली यार रिंकी तू कब शादी कर अपने घर जाएगी ताकि खाने में हम लोगों का राज आये इतना कहते ही उसकी स्कुल में मास्टरनी जैसी घूरती आँखों को देख कर मेरा मुह अपने आप ही बंद हो गया और मेरे हाथ में जूस का गिलास आ गया जो उसके द्वारा जबरदस्ती दिया गया था ……………………..बहरहाल दिन भर के ख़राब मौसम में मस्ती के बाद रात को दुबारा उस माँ जैसी प्यारी बहन के जबरदस्ती और प्यार भरे खाने को खाने के बाद शिवानन्द द्वारा मुझे आलिशान बने मेहमानों के ठहरने हेतु कच्छ में ले जाया गया जो हल्की आसमानी लाईटों में तैर रहा था,अब मै भी थका सोचा की चलो अभी दो तिन दिन रुकना ही है उस महान ब्याक्तित्व से मुलाकात कभी भी कर लूँगा को सोचते हुए मैंने अपने दोस्त से बारिश हो रहे ठंढे मौसम की वजह से ए सी को बंद कर और उसे भी सोने के लिए बोल विस्तार कि तरफ बढ़ा……………………..और शिवानन्द भी मुझे शुभ रात्रि कह जा चूका था तथा मै सोने की तैयारी में था ही की अचानक मेरे कानो को कुछ आवाज सुनाई दी अब नए जगह पर होने की वजह से आवाज सुन कर मन में इसे जानने की इच्छा लिए उठ कर मैंने लाइट को जलाया लेकिन कमरा खाली दिखा पर आवाज कानों में नितन्तर आ ही रही थी,अब मन काफी परेशान हो चुका था और रात के लगभग एक भी बज चुके थे दुबारा बिस्तर पर लेटना चाहा कि कुछ देर चित अवस्था में लेटने के बाद एलर्ट कानो ने उस आवाज की पहचान पानी की टपकती बूंद के रूप में किया जो निरंतर टपक रही थी……………………. तबतक मेहमान कच्छ से सटे एक कमरे से जिसमे उसका माली जो घर का सबसे पुराना नौकर अपने परिवार बच्चों के साथ रहता था,कि तरफ से कुछ सुगबुगाहट की आवाज़ सुनाई दी की तुरंत मै अपने कानों को एलर्ट रखते हुए उस दिवार की तरफ बढा और क्या बात हो रही है सुनने लगा तो मालूम चला की उसी कमरे में ऊपर टीन में कई छेद होने की वज़ह से पानी टपक रहा था और वो मजदुर परिवार इधर-उधर अपने शरीर को भीगने से बचाने के लिए हो रहे थे और आपस में अपनी किसमत पर चिंतन करते बाते भी कर रहे थे………………………..इतना सुन अचानक ही मन के अन्दर से एक आवाज़ आई की क्यों ना उन को जाकर इसी कमरे में सोने के लिए कहा जाय जिसमे मई ठहरा था और आवाज़ को सुनते ही कदम भी बढ़ कर उन मजदुर के दरवाजे तक पहुंचे की फिर अचानक ही दूसरी आवाज़ आई, की उस मजदुर के पास उसका जवान बेटियों से भरा परिवार है और कहीं दरवाजे को खुलवाना और उसे इस कमरे में आने के लिए कहना उस माली नौकर के साथ सभी को बुरा ना लगे सोचते हुए कदम को पीछे करते अपने कमरे में बिस्तर पर मन को यह तशल्ली देते हुए लेटा की हो रही आवाज का पता तो चल ही गया है बिचारे ये मजदुर परेशान है और सुबह होते ही अपने दोस्त के सामने ये बात रखूँगा की जल्दी से जल्दी इनके टिन को बदलवाने का प्लान बनाये को सोचते हुए सोने वाली नीद का इंतजार करता रहा,………………… इधर मन में एक के साथ अनेकों सोच विचार का रूप लेकर निरंतर आती रही और उनके स्वागत के साथ ही सुबह के छ:भी बज गए और मै नींद का इंतजार करते इसी सोच में डूब कर निष्कर्ष निकलने में लगा रहा की आखिर वो विचारे मजदुर बच्चे कैसे सोयेंगे,किस तरह अपने शरीर को भीगने से बचा रहे होंगे,साथ में उसकी बीमार पत्नी जिसका इलाज चल रहा है किस प्रकार इस मुशलाधार हो रहे बारिश वाली रात को गुजारेगी,ऐसी तमाम “सोच” ने अकेले ही नींद को उस कमरे में घुसने से मना कर रखा था और मुझे पूरी रात जगाती रही! फिर क्या था सुबह होते ही मैंने शिवानन्द से बोला यार रात को मै सो नहीं पाया, को सुनते ही शिवानन्द ने तुरंत ही बोला क्यों…………………….यार ये तुम्हारे माली के परिवार ने रात भर जगाया है सुनते ही गुस्से से भरते शिवानन्द की आँखों को लाल होते देख मै समझ गया की ये कारण पूछेगा की इन्होने क्या किया,से पहले मै ही बोल पड़ा की दर असल इसमें इनकी कोई गलती नहीं है मै तो उन टपकती बूंदों की वजह से नहीं सो पाया जिससे ये बिचारे रात भर इधर-उधर होकर बचने की फ़िराक में थे लेकिन फिर भी भीगने से बच नहीं पाए …………………फिर कुछ ही देर बाद उसके पिता जी का यह डिसीजन सुन कर की उस नौकर को दस दिन का पगार नहीं दिया जायेगा,उसने मेहमान के सोने में दिक्कत पैदा की है जैसी बात को सुनकर और रात की घटना ने मन को इतना बेचैन कर दिया था और साथ ही यह भी सोचने पर मजबूर कर दिया था की जिसका अपना सबसे पुराना नौकर जब इस कदर जाग कर और परेशान होकर रात बिता रहा है और उसके प्रति उसके मालिक का ब्यवहार ऐसा है तो वो कैसे और किस प्रकार जिले के सभी गरीबों और मजदूरों के लिए लड़ने की बात करता है………………………………जैसी बातों को सोचते हुए मन के अन्दर से उसके पिता से मिल के बात करने और इंतरवियु लेने वाले ख्याल को बाहर करते हुए वहां रुकने की बजाय लौटने का प्लान बना कर अपने दोस्त शिवानन्द और प्यारी बहन रिंकी के लाख रोकने की कोशिशों को नाकाम करते हुए अपने घर उन दोनों भाई बहन को आने के लिए कहने के साथ साथ उस मजदुर परिवार को देखते हुए सबको एक साथ अलबिदा बोल निकल पड़ा!

2 comments:

vandana gupta said...

तभी कहते हैं हाथी के दाँत खाने के और व दिखाने के और होते हैं।

Dharmesh Tiwari said...

आदरणीया बंदना जी,आपने अनमोल समय में से एक छोटा अंश इस लेख को प्रतिक्रिया के साथ दिया बहुत बहुत धन्यवाद