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12.10.10

तकनीक और इन्शान!


हर देश को आगे बढ़ाने में उस देश के द्वरा अपनाई गयी नयी-नयी तकनीकों का रोल हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है दरअसल यह तकनीक ही ऐसी ताकत है जो विश्व में किसी भी मुल्क को एक अलग पहचान देने में मददगार होती है,आज जितने भी मुल्क विकसित राष्ट्र की श्रेणी में गिने जाते है वो सिर्फ इसी अपनी तकनीक के बलबूते पर ही,यह रोज देखा जाता है की किस तरह एक देश दुसरे देश के किसी नए तकनिकी परिछन के बाद उससे बड़ा अविष्कार कर बैठता है और दुनिया को अपनी पहचान दिखाने की कोशिश करता है,हर देश अपनी मजबूती में कोई कसर छोड़ने को तैयार नहीं है हर रोज नए नए अविष्कार विश्व में होना अब एक आम बात सी हो गयी है!
ऐसे ही विश्व के विभिन्न प्रमुख देशों के बिच दशकों पहले और कई दशको तक दूसरों के चंगुल में फंसे भारत ने भी अपने आपको आज तकनीक के छेत्र में उपलब्धियों के दिवार को खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है,बहुत ही तेज़ी के साथ तकनीक के छेत्र में तरक्की की है हमने, और दुनिया को दिखा दिया है की हम हर हाल में किसी भी ताकत को टक्कर देने में सछम है,आज भारत ने पारुमान ताकत से लेकर विभिन्न छेत्रों में अपनी आधुनिक तकनीक के बलबूते अपने को मजबूत करने में भरपूर कोशिश करते हुए सफलता को अपने गले से लगाया है, आज से कुछ दशकों पहले भारत को जिन देशों ने अपने चंगुल में रखा था आज वो भी इसके तकनिकी ताकत के आगे घबराता हुआ नज़र आता है,आज देखा जा सकता है किस तरह अपने आजादी के इस छोटे सफ़र में ही भारत ने दुनिया का सबसे बेहतरीन खेल उद्घाटन समारोह कर सबको दिखा दिया और सबको चौकने पर मजबूर भी किया है,इस तकनीक के ही बदौलत भारत दुनिया के शक्तिशाली राष्ट्रों कि सूचि में अपना नाम दर्ज कराने में सफल भी हुआ है,हर रोज हम भी एक नए परिछन के साथ दुनिया से रूबरू होते है और आज भारत पे अगर दुनिया के हर देश की निगाह है चाहे वो जैसी भी हो तो इस तकनिकी तरक्की और मजबूती के बल पर ही है!
लेकिन बावजूद इसके आज हो रहे इन रोज के विभिन्न महत्वपूर्ण अविष्कारों में जहाँ एक तरफ मजबूती दिखाई देती है वहीँ दूसरी तरफ इन्शान कमजोर भी होता नजर आता है, इस तकनीक और इन्शान के बीच कितना सामंजस्य और ताल मेल है यह किसी भी तरक्की और मजबूती के लिये विशेष महत्वपूर्ण है,जी हाँ इसने कहीं ना कहीं किसी एक वर्ग को बहुत ऊपर तो किसी एक वर्ग को बहुत निचे छोड़ने में भी मदद किया है,आज जहाँ इसने(तकनीक ने) कंप्यूटर जैसी मशीन को समय और धन बचाने के लिए दिया है वही किसी बड़े वर्ग को बेरोजगारी भी इसी मशीन के द्वारा मिली है ना जाने कितने लोगों की नौकरियों को छिना है इसने जिसके वजह से उन घरों को एक टाइम चूल्हा जलाने पर सौ बार सोचना पड़ता है,वहीँ दूसरी तरफ इनफोर्मेसन के छेत्र के साथ साथ खेती के लिए भी तकनिकी मशीनों का बढ़ चढ़ कर उपयोग करते है हम, आज हम बैलों की जगह ट्रैक्टरों और कुंओ की जगह पम्पिसेट का इस्तेमाल जोर सोर से करते है! अब पता नहीं क्यों इतनी सुबिधा के बावजूद जब हम ट्रैक्टरों से खेती तो करते है लेकिन वो पहले वाली उपज नहीं मिलती,और अगर अति आधुनिक तकनीकों के बल पर उपज को बढ़ाने में सफल हो भी जाते है तो वो पहले वाली ताकत अनाजों के अन्दर नहीं मिलती,आज किसान तकनीक के बलबूते पर जहाँ चाहे वहां बोरिंग करवा कर पम्पिन्शेट के माध्यम से धरती के निचे से जबरदस्ती पानी तो ऊपर निकाल सकता है लेकिन फशलों की प्यास नहीं बुझा पाता और हरयाली देने में नाकाम हो जाता है,आज किसान फशलों में विभिन्न प्रकार के बाजारों में उपलब्ध कीटनाशक दवाईयों को छिड़क कर ख़ुशी से झूम तो उठता है और मन में तशल्ली तो पाता है लेकिन कीड़ों को फशलों पर आक्रमण करने से नहीं रोक पाता,आज हम अपनी पूर्ण संतुष्टि के लिए विभिन्न उच्च कोटि के अंग्रेजी खादों का प्रयोग तो करते है लेकिन अनाजो में वो मिठास नहीं पैदा हो पता! कहीं ना कहीं आज भी हमें वो बैल मिस करते है जो थोडा सा भूसा और चारा खाकर अपने मालिक के डंडों के इशारे पर जलती धुप में मालिक के साथ खेतों की मिटटी को अपनी बेश कीमती खुरों से मुलायम बनाते थे,और किसी किसान को तेल की बढ़ रही कीमतों की चिंता भी नहीं सताती…………शायद उनके उन खुरों में इतनी ताकत थी जो हमें ये ट्रैक्टर के पहिये से नहीं मिलती,शायद इनके गोबर में वो मिठास थी जो आज की ट्रैक्टर के धुएं और इन अंग्रेजी खादों से अनाजो में नहीं पैदा हो पाती,शायद इनके गोबर के जले राख में वो ताकत थी जो आज के इस अंग्रेजी कीटनाशक में नहीं मिलती! इन बढती तकनीकों को अपनाने के होड़ ने तो मानो बैलों के ऊपर ऐसा प्रहार कर डाला की जो बैल कुछ वर्ष या दशक पहले किसानों की शान हुआ करते थे वो बैल आज हर किसान के मुह से गाली सुनने के आदि हो चुके है,किसी ज़माने में जब किसी किसान की गाय के द्वारा बछड़े को जन्म दिया जाता था तो उस घर में इस प्रकार खुशियाँ मनायीं जाती थी मानों उस परिवार द्वारा जैसे किसी लडाई में जित दर्ज की गयी हो,पर उसके ठीक बिपरीत आज बछड़े के जन्म पे लोग भौहें चढ़ा लेते है! इस तकनीक ने सिर्फ बैलों पर ही नहीं बल्कि मनुष्य के जीवन पर भी बहुत प्रभाव छोड़ा है,जहाँ मनुष्य बिना तकनीक वाले ज़माने में पचास किमी की दुरी पैदल चल कर बिना थकान के तय करते थे और अपने आपको को हमेशा तरोताजा महशुश करते थे वहीँ आज इन्शान बीस किमी की दुरी आलिशान ऐ०सी० गाड़ी के अन्दर बैठ कर तय करने के बाद भी थकान को गले से लगाते अनुभव करता है,जहाँ चोट लगने पर सिर्फ मिटटी लगा देने से चोट ठीक हो जाया करते थे वहीँ अब हजारों की दवाइयों के बाद भी शारीर में कमजोरी बनी रहती है,जहाँ अस्सी के उम्र में भी किसी को ब्लड प्रेसर और सुगर जैसे नामों का पाता नहीं होता था वहीँ आज इस अति आधुनिक तकनीक से भरे ज़माने में एक बच्चा भी इसके घेरे में घिरा नजर आता है, जहाँ मिटटी से बने चूल्हों पर महिलाओं को रोटी बनाने और हाथ से कपडा धोने से कोई बीमारी उनके पास आने से घबराती थी और बच्चे साधारण तरीके से पैदा हो जाया करते थे, वहीँ आज गैस,फ्रिज,वाशिंग मशीन जैसे जामने में डिलीवरी के केशों में कहीं कहीं ही बिना आपरेशन का बच्चा पैदा हुआ सुनने को मिलता है,जहाँ उस मद्धम दिए की रौशनी में ही पल बढ़कर उच्च कोटि के विद्वान पैदा हो जाया करते थे जिनकी एक एक बाते आज भी एक उपदेशात्मक हैं और देश के तरक्की के लिए एक रोशनी का काम करती है वहीँ आज ये दुधिया जैसी नहाई और चौबिश घंटे रोशनी में डूबे कमरे संस्कार को इन्शान के अन्दर नहीं भर पाते!
अब ऐसे में या तो इस तकनीक के दौर में इन्सान अपनी उन पुरानी चीजों या परम्पराओं को भुला देना चाहता है या उसे अपनाना ही नहीं,लेकिन शायद आज भी इस तकनिकी के दौर में अगर एक छोटी सी जगह उन पुरानी ब्यव्स्थाओं को दी जाय और इस अति आधुनिक तकनीक के साथ उन ब्यव्स्थाओं को जोड़ कर चला जाय,उन्हें भुलाया ना जाय तो शायद कुछ बिमारियों पर अंकुश लग जाय,कुछ बेरोजगारी ख़तम हो जाय,समाज और संस्कारिक हो जाय और इसी के साथ इस तरक्की में भी चार चाँद लग जाये! अपनी ताकत को और मजबूत करने के लिए आज देश को तकनिकी छेत्र में जितना ही तरक्की करना आवश्यक है, उतना ही इन्शान को भी इसके और पुरानी ब्यव्स्थाओं के साथ सामंजस्य और ताल मेल बैठा कर इसे अपनाना बेहद महत्वपूर्ण है ……………………!

2 comments:

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

सुन्दर लेख .. और सही .. आज तकनीक का विकास होने से बेरोजगारी भी बड़ी है .. मशीन को इन्सान की ताकत की जरुरत नहीं .. जो काम १० आदमी १० दिन में करते थे वो काम एक मशीन एक दिन में कर सकती है.. विकास के क्षेत्र में हमें हर तरह से मानव का विकास भी सोचना होगा की वो बेरोजगार ना हो..

Khare A said...

बच्चे साधारण तरीके से पैदा हो जाया करते थे, वहीँ आज गैस,फ्रिज,वाशिंग मशीन जैसे जामने में डिलीवरी के केशों में कहीं कहीं ही बिना आपरेशन का बच्चा पैदा हुआ सुनने को मिलता है,जहाँ उस मद्धम दिए की रौशनी में ही पल बढ़कर उच्च कोटि के विद्वान पैदा हो जाया करते थे

behtreen kathye, achha laga
aapki bat se me sehmat hun bandhua