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3.10.10

पेट पालने की खातिर, कोई पेट मैं पलते देखा है,


चिराग जलाने की कोशिश,
घर हमने जलते देखा है,
पेट पालने की खातिर,
कोई पेट मैं पलते देखा है,

भूखी माँए रोते बच्चे,
तन नंगा और मन नंगा,
एक दिन के चावल को ही,
हो जाता है बदन नंगा,
इस युग मैं हर मोड़ पे हमने,
सीता को हरते देखा है,

खुश दिख कर यहाँ करने पड़ते,
बदन के सौदे रातों मैं,
बदन के लालची भेडिये,
रहते सदा ही घातों मैं,
यहाँ द्रोपदी को चीर हरण,
खुद अपना करते देखा है,

सोने वाले सो नही पते,
रात यहाँ सो जाती है,
जग की जन्म देनी माँ,
खुद गर्त मैं खो जाती है,
पेट की खातिर खुद ही हमने,
खुद को छलते देखा है,

चिराग जलाने की कोशिश,
घर हमने जलते देखा है,
पेट पालने की खातिर,
कोई पेट मैं पलते देखा है,

3 comments:

केवल राम said...

खुश दिख कर यहाँ करने पड़ते,
बदन के सौदे रातों मैं,
बदन के लालची भेडिये,
रहते सदा ही घातों मैं,

Wartmaan Sandharv main ek sahi sachai ko avhivyakt kiya hai aapne सोने वाले सो नही पते,
रात यहाँ सो जाती है,

Sach main aaj ke halat hi kuch aise hain hai ki vyakti ko apne se jayada kuch bhi dikhai nahi deta isliye woh dusroon ki khusshi ka bhi khayal nahi rakhta

sunder post
Badhai ho .................!

भारत एकता said...

धन्यवाद बंधुवर,

Anonymous said...

अच्‍छी रचना। न सिर्फ रचना बल्कि वास्‍तविकता के करीब। बधाई हो