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22.12.10

न जाने और क्या क्या है तेरे फ़साने में

न जाने और क्या क्या है तेरे फ़साने में
कई तो टूट गए तुझको आजमाने में ।
मैंने शब्दों की तबीयत तलाशनी चाही
बस यही जुर्म है अपना तेरे ज़माने में ।
जब कभी तू हमारे शहर से गुजरती है
देख लेता हूँ तेरा चेहरा पैमाने में ।
दिल की मायूशियों से दिल का नशा लड़ता है
यही हर रोज होता है तेरे मयखाने में ।

2 comments:

Anamikaghatak said...

wah ....ati sundar

Dr Om Prakash Pandey said...

dhanyawaad ,ana , dhanyawaad!