Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

22.12.10

प्रेमांजलि

जो फूट पड़ी है धारा-सी , कर चेतन का संचार चली ;
मेरे वक्षस्थल पर देखो इस पार चली उस पार चली ।
चंचल चपला सुन्दर शशिप्रभ , उन्मुक्त गगन के आस-पास ,
वह तोड़ बंधनों को सारे , करती रहती है नित विलास ।
सकुचे सलज्ज पर तेज बड़े मुख पर दो लोचन लोल रहे
मृदु मदिरा के दो घट जैसे , हों धीरे-धीरे डोल रहे ।
उसकी साँसों के सरगम में लगता है झंझावात चले
जो मौन चतुर्दिक महक रहा , वह मलयानिल ले साथ चले ।
उन रक्त दुकूलों के अन्दर , यूँ इठलाता है अंग अंग
बिन मर्यादा को किये भंग , सागर में उठती ज्यों तरंग ।
आशा , अभिलाषा , उत्कंठा , ऐ तृष्णा , तेरे कई नाम
हो जाती है तू प्रबल बड़ी , उस दिव्य ज्योति का देख धाम ।
निज धारा में तू देख स्वयं , मनसिज के जलज विकास करें
अंतर्मन की एकाकी को कर दूर सुखद सुप्रकाश करें ।
तू वंदनीय तब बन जाये , मायापूरित हो नित ललाम
जगती की परम विभूति अहो , तू जीवन रस सुखप्रद सकाम ।
उसके मन तन की पुलक , बन रही सहज प्रेम नयनाभिराम
मानव जीवन के सुख स्वर्णिम ,हे नवयौवन , तुझको प्रणाम ।

10 comments:

sangeeta modi shamaa said...

bahut hi khubsurat rachana he omji.

Dr Om Prakash Pandey said...

vandanaji aur sangeeta modi shammaji ko bahut bahut dhanyawaad!

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह !

खबरों की दुनियाँ said...

प्रेमांजलि को पुष्पांललि ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर रचना ...

Dr Om Prakash Pandey said...

Devendraji, Ashutoshji aur Sangeeta Swaroopji ko bahut bahut dhanyawaad !

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर रचना!!!

Dr Om Prakash Pandey said...

Anupmaji, bahut bahut dhanyawaad!

जीवन और जगत said...

वाह। प्रवाहपूर्ण छन्‍द, ओजपूर्ण भाषा एवं अधिकांश स्‍थानों पर पन्‍त जी की भांति कोमलकान्‍त पदावली का प्रयोग इस कविता को एक समग्र रूप प्रदान करते हैंा छन्‍दोबद्ध कविता का पाठ करने का जो आनन्‍द है वह छन्‍दमुक्‍त कविता में कहॉंा नयी कविता व अकविता के रचनाकार क़पया अन्‍यथा न लेंा

Dr Om Prakash Pandey said...

priya shree ghanashyamji , aapake shabdon ne mera utsaahwardhan kiya hai , dhanyawaad!