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23.1.11

कश्ती दरिया में.........


कश्ती दरिया में इतराए ये समझकर
दरिया तो अपनी है इठलाऊं इधर-उधर

किनारा तो है ही अपना ,ठहरने के लिए
दम ले लूंगा मै भटकूँ राह गर

पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों  को डुबो देता है सैलाब में

कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
न दरिया अपनी न किनारा अपना

4 comments:

Dr Om Prakash Pandey said...

kaun ubata kaun doobata usne kahan vichara;
tarunaai ke mahajwaar ne kisko kaise maaraa .

Kunwar Kusumesh said...

पर उसे मालूम नही ये कमबख्त दरिया तो
किनारों को डुबो देता है सैलाब में

वाह, क्या बात है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा said...

कश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
न दरिया अपनी न किनारा अपना

सच कहा ... कश्ती को इतनी समझ होती तो दरिया में क्यूँ रहती ... अछा लिखा है ....