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5.2.11

हिंदुस्तान, शाहजहांपुर के पत्रकार साजिद से आप भी कुछ सीखिए---


04 February 2011 02:42 pm, जनसत्ता एक्सप्रेस ब्यूरो, नई दिल्ली

पत्रकारिता के साथ मानवीय संवेदना का दिया परिचय, जलती ट्रेन से एक डाक्टर के परिवार को बचाया, आईएमए करेगी सम्मानित, समूह संपादक ने उसका किया प्रमोशन---
हिंदुस्तान, शाहजहांपुर के रिपोर्टर साजिद के साहस को सलाम। जिस दिलेरी से साजिद ने हिमगिरी एक्सप्रेस की आग में फंसे एक डाक्टर के पूरे परिवार को बचाया वह न केवल मानवीय संवेदना को इंगित करता है बल्कि पत्रकारीय मानकों को भी स्थापित करने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। एक सीख देता है, पत्रकारों को एक नसीहत देता है कि कलम से हटकर भी कुछ पत्रकारों की जिम्मेदारियां हैं।
आपको बता दें कि शाहजहांपुर में हिमगिरी एक्सप्रेस ट्रेन में भर्ती से लौट रहे युवकों ने अपने साथियों के दुर्घटनाग्रस्त के बाद आग लगा दी थी। जिसमें कई लोग फंसे हुए थे। उसी में एक डाक्टर परिवार भी था जो एसी के कोच में फंसा हुआ था..वह अपनी सहायता के लिए गुहार लगा रहा था पर उस भगदड़ और पथराव में कोई भी उसे बचाने के लिए आगे नहीं आ रहा था। ऐसे में हिंदुस्तान शाहजहांपुर के पत्रकार साजिद ने अपनी हिम्मद दिखाई और उस परिवार को आग से बचाया।
हर कहीं साजिद के इस साहस की सराहना हो रही है। जब इसकी सूचना दिल्ली पहुंची को अखबार के समूह संपादक शशिशेखर जी ने उसको तत्काल इस साहस पर बधाई दी और भरी बैठक में उसके प्रमोशन की घोषणा की।
उधर, डाक्टरों की संस्था ने भी साजिद को सम्मानित करने का फैसला किया है। इसलिए पत्रकारिता के बीच संवेदना को न छोड़िए…जब भी मौका मिले लोगों की हेल्प करते रहिए।
डाक्टर परिवार ने इस दौरान कहा कि आपने तो टीवी पर देखा होगा मौत का मंजर पर मैंने बहुत नजदीक से देखा। ऐसा लग रहा था जैसे कोच के ऊपर खून की नदी बह रही हो। नीचे हजारों की संख्या में युवक पथराव कर रहे थे, कोच में आग लगा दिया। दरवाजा खोलवाने की कोशिश में था, लेकिन कोई नहीं खोल रहा था। तभी भगवान बनकर हिन्दुस्तान का रिपोर्टर साजिद आ गया। किसी तरह उनसे दरवाजा खुलवाया और हम लोगों की जान बची। हम लोग बरेली से हिमगिरी एक्सप्रेस में लखनऊ जाने को एसी कोच में सवार हुए थे। मंगलवार की रात को शादी में पहुंचना था। एसी कोच के ऊपर भी युवक सवार थे। जैसे ही ट्रेन रोजा ओवरब्रिज के पास पहुंची कि कोच के ऊपर बैठे युवक पुल से टकरा गए। चीखने की आवाजें सुनाई देने लगीं। अचानक खून की धार नीचे बहती हुए दिखी। ट्रेन को युवकों ने चेन पुलिंग करके रोक लिया। फिर तो वे सब एसी कोच पर गुस्सा उतारने लगे। खिड़कियों के शीशे तोड़कर अंदर आ गए। कोच पर पत्थर बरसाकर उसे तहसनहस कर दिया। यात्रियों से मारपीट और लूटपाट करने लगे। सूटकेस और पर्स छीनने की कोशिशें कीं। बेटे तनय को पीटकर वॉकमैन छीन लिया।
डाक्टर परिवार ने जो आपनी आपबीती बताई है वह कुछ इस प्रकार है।
क्या आपने मौत को सामने देखा है, वो भी आंख के सामने। नाचते हुए। अगर नहीं तो बरेली के प्रेमनगर धर्मकांटा निवासी डाक्टर अमित से पूछिएगा..रौंगटे खड़े हो जाएंगे आपके..कंपकपी छूट जाएगी।
मंगलवार को जब शाहजहाँपुर के हथौड़ा रेलवे क्रासिंग पर डाक्टर का परिवार आग की लपटों में घिरा थ तो हिन्दुस्तान के संवाददाता साजिद रजा खान ने होश से काम लिया। डाक्टर और उसके परिवार के साथ-साथ आधा दजर्न लोगों को मौत के मुंह से खींच कर सुरक्षित ले आए।
आईटीबीपी के अभ्यर्थियों द्वारा जब हिमगिरी एक्सप्रेस के कोच तोड़े जा रहे थे। तो इन्हीं कोचों में से एक था कोच नंबर 04107 , इसी एसी कोच में सवार थे बरेली के डाक्टर अमित, पत्नी, बेटा और साली। बाहर शीशे तोड़े जा रहे थे और अंदर 46 यात्री सहमे थे। इनमें से कुछ तो कोच से उतर लिए, लेकिन रह गए अमित और उनका परिवार।
इन लोगों ने सोचा अभी पुलिस आएगी और स्थिति नियंत्रण में आ जाएगी..लेकिन ऐसा हुआ नहीं। उत्पाती युवकों ने तो 04107 नंबर के कोच में लगा दी। अमित को पता तब चला जब उन्होंने आग की लपटों को ऊंचा उठते देखा। डा. अमित की स्थिति यह थी कि वह पत्नी, बेटे और साली को अपने में समेटे हुए थे। किसी तरह से वह कोच के गेट तक आए..अरे यह क्या, गेट तो खुला ही नहीं। अब सोचिए सामने मौत को पूरा परिवार देख रहा था, शोर मचा रहा था, लोगों से हाथ जोड़ कर गेट खोलने के लिए परिवार गिड़गिड़ा रहा था। महिलाएं बेहाल थीं, लेकिन सामने खड़े बहुत से लोग तमाशा देख रहे थे। कोई आगे नहीं बढ़ रहा था कि इस गेट खोल कर इस परिवार को बाहर निकालता। इसी दौरान साजिद रजा खान की नजर कोच पर पड़ी और अंदर लोगों को देखा। जब उन्होंने देखा कि कोई भी इस परिवार को बाहर निकालने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा है तो उन्होंने उपद्रवियों को समझाया और कदम लपटों से घिरे डिब्बे की ओर बढ़ा दिए। किसी तरह से गेट खोला, एक-एक कर सबको बाहर निकाला। इसके बाद पूरा परिवार चीखता हुआ खेतों की ओर दौड़ने लगा। यह थी साजिद रजा खान की मानवता। इसके बाद वह रिपोर्टर के किरदार में आ गए । बदहवास डाक्टर ने केवल अपना नाम और नंबर देकर परिवार को संभालने लगे।

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