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16.2.11

पुस्तक समीक्षा

आदर्शवादी यथार्थ का पुनर्लेखन

  • एम अफसर खान सागर


पुस्तक- परदेशियों का गांव (उपान्यास), लेखक- डॉ0 कमलाकांत त्रिपठी
प्रकाशक- पुस्तक पथ, दिल्ली, वितरक- शारदा संस्कृत संस्थान, सी. 27/59, जगतगंज, वाराणसी-221002, मूल्य- 125 रूपये (पेपर बैक)

डॉ0 कमलाकांत त्रिपठी के लघु उन्यास परदेषियों का गांव में यायावर-वृत्ति के लोगों को पुनसर््थापित करने व प्रगति की मूल धारा में शामिल करने का उद्देश्य निहित है। डॉ0 त्रिपठी ने प्रस्तुत उपन्यास में गांव के सुपरिचित आत्मीय परिवेश में घुलते जहर, विद्वेष, वैमनस्ता, जातिवाद, पुलिसयिा अत्याचार और उसके संरक्षण को बड़े सहज ढ़ंग से पेश किया है। दरोगा उदय सिंह और इंस्पेक्टर शर्मा के चरित्रों के माध्यम से लेखक ने पुलिस प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार के साथ ईमापदार चरित्र को भी उकेरा है। सामाजिक दुष्वृत्तियों, अपसंस्कृति और मूल्यहीनता के बीच मनीष और अमरेन्द्र जैसे चरित्रों का अवतरण होता है जो दृढ़ संकल्प, सदाचार, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी के बल पर अत्याचार, उत्पीड़न और आतंक का प्रतिवेद करते हैं।
चरित्र सुबहान के द्वारा लेखक ने देश की पुरातन गंगा-जमुनी संस्कृति का उद्घोष व समाज को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास किया है। चौधरी की बेटी द्वारा शराबी व्यक्ति से शादी न करने का फैसला नारी शक्ति जागरण को दर्शाता है। गलित एवं उदांत चरित्रों के संघर्ष में लेखक ने मानवता के उदार चेहरे को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। समाज की समस्त विसंगतियों, विषमताओं और विद्रूपताओं से मानव को मुक्त कर विशुद्ध मानवता पर आधारित समाज को प्रतिष्ठित करना ही इस लघु उपन्यास का मकसद है। सरल बोधगम्य भाषा के प्रयोग द्वारा लेखक की कल्पना अपने उद्देश्य कथन में सफल दिखती है।

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