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19.2.11

मैंने सोचा


मजबूर या मजदूर प्रधानमंत्री !

आज रात मैं सोच रहत था कि मनमोहन सिंह जी कि आखिर क्या मजबूरी है कि वो कड़े कदम नहीं उठा पा रहे है।
जेहन में एक विचार आया कि अगर आदमी कितना भी मजबूर क्यूँ न हो जब उसके चरित्र पर सवालिया निशाँ लगता है तो उसकी अंतर आत्मा जाग उठती है।
जैसा कि विदेशी मूल पर सोनिया गाँधी जी की आत्मा जाग उठी थी और उन्हों ने अपने दिल कि आवाज़ सुन कर प्रधानमंत्री का पद नहीं स्वीकार किया। जब सोनिया जी ऐसा कर सकती हैं तो मनमोहन सिंह जी आखिर क्यूँ महंगाई मोहन सिंह बने बैठे हैं।
यहाँ तो एक ही प्रश्न खड़ा होता है कि मनमोहन सिंह जी मजबूर प्रधानमंत्री हैं या मजदूर प्रधानमंत्री ?

1 comment:

Shalini kaushik said...

afsar jin yadi isi tarh se pradhanmantri tyag patr dene lagen to is desh me koi P.M. tik hi nahi payega kyonki yahan charitra par ungli uthana vipaksh ka purana hathkanda hai.bas dukh yah hai ki is bar vipaksh me dam hi nahi hai kyonki itni kamiyon ke bavjood bhi vah U.P.A sarkar ki neev nahi hila paya hai.isse to yahi kah sakte hain ki manmohan ji ek majboot pradhanmantri hain...