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5.2.11

इस जमीं को बचा लें , आसमाँ को बचा लें

इस जमीं को बचा लें, आसमाँ को बचा लें ।
साथ मिल जाएँ , सारे जहाँ को बचा लें ॥

आज खतरे प्रदूषण के घिरने लगे हैं ,
सो रहे ढेर सारे मगर कुछ जगे हैं ।
आज सबको जगाएं , इस तरा गीत गायें
साथ मिल जाएँ और सारी दुनिया बचा लें । इस ......... ॥

फूल काले धुएं में कहीं खो न जाएँ ,
नींद में बेखुदी की कहीं सो न जाएँ ।
पेड़ -पौधे बचा लें , सारी कलियाँ बचा लें ,
आओ गुल को बचा लें , गुलिस्ताँ को बचा लें । इस ......... ॥

चेहरे पे जमीं के न बरबादियाँ हों ,
जिन्दगी का तरन्नुम हो , आजादियाँ हों ।
हर खुशी को बचा लें , ताजगी को बचा लें ,
हर तबस्सुम को और कहकसा को बचा लें । इस ............. ॥

2 comments:

vandana gupta said...

वाह! प्राकृतिक दोहन को बचाने के लिये लिखी गयी बेहद उम्दा कविता बहुत पसन्द आयी……………अन्दाज़ बहुत ही खूबसूरत है।

Dr Om Prakash Pandey said...

wandanaji , bahut bahut dhanyawad !