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14.2.11

मेरे माँ-बाप हैं या..... फ़रिश्ते हैं

ग़मों की आग में जलते हैं मगर हँसते हैं ;
मेरे माँ-बाप हैं या वो कोई फरिश्ते हैं .

किसी आफत की आंच भी नहीं आने देते ;
उनके साये में हम चैन से सो लेते हैं .

लुटा देते हैं हम पर ही जिन्दगी सारी ;
हमी संग हँसते हैं ,संग ही रो लेते हैं .

हमारी हर जरूरत क़ा वो कितना ख्याल रखते हैं ;
हमारे वास्ते आराम अपना छोड़ देते हैं .

हमे गर्मी की,बारिश की ,न जाड़े की हुई चिंता ;
हरेक मौसम को आगे बढकर वो खुद झेल लेते है .

हमारी बेतुकी बातों पर कितना ध्यान देते हैं ;
हमारे सब सवालों क़ा जवाब ढूंढ   लेते है .

सलीके से करो सब काम ,तरीका भी बताते हैं ;
उन्ही के साथ रहकर हम लियाकत सीख लेते हैं .

2 comments:

Shalini kaushik said...

bahut sundar bhavabhivyakti..

Dr Om Prakash Pandey said...

samyak samwedana .