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18.2.11

अतिक्रमण की इमारत पर टंगे नियम-कायदे के कंगूरे

रवि कुमार बाबुल
जिस तरह ग्वालियर में अतिक्रमण हटाया जा रहा है, उसे देख लगता है कि अफसर के जिस्म में जिन्न प्रवेश कर गया है, जो शहर में ताबड़तोड़ तरीके से तोडफ़ोड़ करने पर वह आमादा हो चला है, जनाब शहर में मिट्टी गारे की अट्टालिकाएं ही नहीं, बल्कि रसूखदारों का रौब कह लें या जलवा वह भी जाता रहा है यानि वह भी धराशायी हो चला है। इन दिनों अगर यह मंजर देखना हो तो शहर में कहीं भी निकल जाइये, आसानी से दिख जायेगा?
जी... जनाब... तोडफ़ोड़ को यूं तो सामाजिक दृष्टि से कभी अच्छा नहीं माना जाता रहा है या समझा गया है, लेकिन जब कोई इमारत भ्रष्टाचार की नींव पर, रसूख के गारे से तैयार की जाती है और नियम-कायदे उसी इमारत के कंगूरे बन चलते हैं तो उस इमारत की छाया या साये या कह लें डर या दहशत क्या होता था, इसे महसूसा जा सकता है, जिसे इस शहर के तमाम लोग भी जानते हैं। शायद अब इस दहशत से मुक्त होने का समय आ चला है।
बधाई...। जी... इस शहर के उस अंधे को बधाई देने का मन हो रहा है, जिसने अपने ओहदे पर बैठ, जब कुछ देने का ठान लिया तो फिर किसी को चीन्हने की जहमत ही नहीं उठायी उन्होंने यानि न्याय सभी के साथ हुआ, पूर्वोत्तर में अन्धों की-सी न्याय की रेवड़ी इस बार कद और पद को चिन्हित करके नहीं बांटी जा रही है, बधाई... आकाश त्रिपाठी, आपको भी एन.बी.एस.राजपूत।
वैसे तो सिंधिया के रियासत रहे ग्वालियर में सियासत की दलाली ही आज तलक देखी गयी है, वोट की खातिर आम लोगों को खास मानने वाले खद्दरधारी लोगों ने कभी इन आम लोगों का ध्यान ही नहीं रखा और खास होने के ठसक में नियम-कायदे रौंदते रहे हैं? मसलन पुल से लेकर स्वर्ण रेखा नदी तक का रुख सत्ता के मद या नशे में बदल दिया गया और अतिक्रमण पर सत्ता की शह की बात तो मामूली सी हो चुकी थी? याद कीजिये..., ए.जी. पुल एक ब्राह्मण की भेंट चढ़ गया तो हॉस्पीटल रोड के किनारे बहती स्वर्ण रेखा नदी का बहाव बीचों बीच अतिक्रमण कर, सरकारी पुर्जों पर मनमाफिक शब्दों और वाक्यों को ठोक अपने पक्ष में जतला दिया गया, जी... जनाब मिनरल वाटर पीने वाले और ए.सी. में रहने वाले लोग, तमाम बीमारियों का सबब बन बहने वाले इस गंदे नाले के मुहाने की जमीन पर अपनी मिल्कियत की जड़ जब जोड़ बैठे, तो इसे समझना मुश्किल कहां रह जाता है? पर क्या यह अतिक्रमण नहीं कहलाता है, दरकार तो शहर को इसके जवाब का भी है?
अतिक्रमण पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से बात करने की बात कह कर सिंधिया ने भले ही खुद के कांग्रेसियों के साथ होने का प्रमाण देने या उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश की है, लेकिन कांग्रेस की हैसियत और स्थिति देखना हो तो आज यह हो क्या चली है इसे समझने के लिये ग्वालियर के कांग्रेस कार्यालय जाना होगा, यानि कार्यालय में लगी अपुष्ट सूत्र के अनुसार कामराज की मूर्ति अतिक्रमण किये बैठी को हटाने का मौखिक सुझाव मिला है, कांग्रेस का ग्वालियर बंद इसलिये असफल रहा कि प्रकाश खंडेलवाल और रमेश अग्रवाल जो क्रमश: जमीन घोटाले व गिर्राज मंदिर प्रकरण में चर्चित हैं और प्रशासन उन पर कार्यवाही करके थोड़ा पुण्य और नहीं बटोर ले इसलिये बंद तुरन्त ही खुल गया और ऐसे में शम्मी शर्मा के दुस्साहस पर चोंच ने उनके बसाये कॉम्पलेक्स गणेश को खण्डहर में तब्दील कर रख दिया?
जी... सिंधिया जी बात करंेगे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से तो क्या कहेंगे? मतलब वह यह कहेंगे कि जिस ए.एम.आई. शिशु मंदिर स्कूल को सुरक्षित रखती दीवारें ढहा दी गयीं लेकिन मोती महल की तरफ उनके पैलेस के गेट के सामने खड़े हाथी को क्यों नहीं हटाया गया या फिर वह कहेंगे जिस विकास को ग्वालियर में वह (सिंधिया) देखना चाहते हैं शिवराज सिंह उसकी भ्रूणावस्था में ही कत्ल कर दें, अतिक्रमण पर की जा रही कार्यवाही पर रोक लगा कर? सवाल अब बड़े हो चले हैं और बड़े लोगों से ही जुड़ भी गये हैं?देखना होगा कि अतिक्रमण की अब कार्यवाही ढीली पड़ती या फिर सत्ता को चंदा चराने का दुस्साहस जुटाकर बदले में बहादुरों को शहर छोडऩे का परवाना मिलता है? लेकिन तय है मर्द अधिकारियों को यहां की अवाम शायद ही कभी भूल पाये।
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