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14.2.11

क्या अकेले भाजपा की जिम्मेदारी थी मलिक को भगाने की

हाल ही भाजपा, भाजयुमो व अन्य हिंदूवादी संगठनों ने हंगामा करके कश्मीर के
अलगाववादी नेता जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक को अजमेर से भागने को मजबूर कर
दिया। पिछले कुछ वर्षों से ढ़ीले-ढ़ाले से पड़े संगठन की यह उल्लेखनीय उपलब्धि
रही। हालांकि हाल ही शहर भाजपा अध्यक्ष बने प्रो. रासासिंह रावत व विधायक प्रो.
वासुदेव देवनानी ने भी इसमें शिरकत की, मगर भाजयुमो के उग्रपंथी प्रदेश सचिव
नीरज जैन, शहर अध्यक्ष रमेश सोनी व हितेश वर्मा सरीखे नेताओं की इसमें विशेष
भूमिका रही। इस उपलब्धि के लिए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने बधाई भी
दी।
इस घटना से यकायक एक सवाल ये उठता है कि क्या यासीन के  खिलाफ विरोध प्रदर्शन
करने की जिम्मेदारी केवल हिंदूवादी संगठनों की ही थी? क्या उसे भगाने की सारी
मशक्कत उन्हीं के जिम्मे थी? यह ठीक है कि यासीन की धमकी के कारण ही
जम्मू-कश्मीर सरकार ने कानून-व्यवस्था के मद्देनजर भाजयुमो को 26 जनवरी को
श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा नहीं फहराने दिया, इस कारण भाजयुमो का सीधे तौर
पर दायित्व बनता था कि वह उसके खिलाफ कम से कम अपनी जमीन पर तो कुछ जलजला
दिखाए, मगर ऐसा अलगाववादी नेता क्या केवल भाजयुमो का ही दुश्मन है? जो भारत की
ही रोटी खाता है और फिर भी भारत को अपना देश नहीं मानता, जो तिरंगे को अपने देश
का झंडा नहीं मानता, वह केवल हिंदूवादी संगठनों का ही दुश्मन कैसे हो सकता है?
वह तो पूरे देश का ही दुश्मन है? मगर अफसोस कि हमने वोटों की खातिर अपने आपको
विभिन्न राजनीतिक दलों में बांट रखा है। माना कि हर राजनीतिक दल की अपनी नीति
है, लेकिन राष्ट्र और राष्ट्रीयता के मामले में तो सभी को एक होना ही चाहिए। यह
मसला धर्म का नहीं, बल्कि राष्ट्र का है। कम से कम ऐसे मामलों में तो तुष्टिकरण
की नीति का परित्याग करना ही चाहिए।
हालांकि जम्मू-कश्मीर में चल रही समझौता वार्ताओं के मद्देनजर कांग्रेस अभाव
अभियोग प्रकोष्ठ के जिला महासचिव सैयद नातिक चिश्ती ने गांधीवादी तरीका अपनाते
हुए फूलों के साथ तिरंगा भेंट करने की कोशिश करके मुस्लिम जमात का सांकेतिक
प्रतिनिधित्व किया, मगर इतना भर काफी नहीं था। मुस्लिम वोटों की खातिर चुप रहने
की बजाय कांग्रेस को भी अपनी राष्ट्रीयता का प्रदर्शन करना चाहिए था। इसी
प्रकार अन्य मसलों की तरह इस मामले में भी स्थानीय मुस्लिम संगठनों को
राष्ट्रीयता की भावना का प्रदर्शन करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवानी चाहिए
थी। धर्म स्थल पर जियारत करने में भले ही कोई भेदभाव न रखा जाए, मगर खादिम
समुदाय को भी यह जाहिर करना चाहिए था कि ऐसे अलगाववादी का वे कत्तई समर्थन नहीं
कर सकते। हां, नातिक चिश्ती के प्रयास से अलबत्ता यासीन का असली चेहरा सामने आ
गया और उसकी सर्वत्र भत्सर्ना हुई है। तिरंगा हाथ में न लेने की व्यापक
प्रतिक्रिया हुई और अनेक लोगों ने उसकी मजामत की है। उससे मुस्लिम जमात में भी
यासीन के खिलाफ माहौल बना है। मुस्लिम जमात भी समझती है कि धर्म भले ही कोई हो,
मगर राष्ट्र सबसे बड़ा और ऊंचा है।

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