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15.2.11

व्यथा

माँ गंगा की व्यथा...
















माँ गंगा में घुलता यह ज़हर, जहाँ गंगा को प्रदूषित कर रहा है वहीँ लोगों के आस्था पर कुठाराघात.
गंगा निर्मलीकरण की बात तो रोज़ होती है मगर धरातल पर उसका कोई मायने नहीं. आखिर सरकारें लोगों के आस्था से क्यूँ
मज़ाक कर रही हैं. जन-जन को मोक्छ देने वाली माँ गंगा का अपमान कब तक होगा?
अगर वक़्त रहते नहीं चेता गया तो गंगा के अस्तिव पर संकट खड़ा हो जायेगा .

इस मौके पर बरबस ही नजीर बनारसी साहब की याद आ रही है....

सोयेंगे तेरी गोद में एक दिन मर के हम
दम भी तोड़ेंगे तेरे दम भर के हम
हमने तो नमाज़ें भी पढ़े हैं अक्सर
गंगा तेरी पानी में वजू करके
स्वर्ग से चल पड़ी जब स्वर्ग की पाली गंगा
बढ़ के ब्रह्मा ने कमंडल में उठा ली गंगा
डरता हूँ रुक न जाये कविता की बहती धारा
मैली है जबसे गंगा मैला है मन हमारा
श्रधाएं चीखती हैं विश्वास रो रहा है
खतरे में पद गया है परलोक का सहारा..

शेष फिर..
आपका...
एम अफसर खान सागर

2 comments:

ब्रजकिशोर सिंह said...

hamne kaee baar taswiron ko bolte dekha hai,chikhte-chillate hue dekha hai.aapko taswir bhi ganga maee kii vyatha ko suna rahi hai,dikha rahi hai.iske lie koee akela aadmi doshi nahin hai balki poora samaj doshi hai jo hamesha tatkalik labh kii sonchta hai aur doorgami prabhav ko najarandaj kar deta hai.

Sunita Sharma Khatri said...

अच्छी लिखा है मां गंगा की दुर्दशा पर चिन्तन नही कर्म किये जाने की आवशयकता है । हमारे यहां गंगा काफी स्वच्छ व निर्मल की जा चुकी है अन्य स्थानो पर भी इस दिशा में कठोर प्रयासों की जरूरत है।