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2.2.11

शीला की जवानी का जबाब

मैं एक पैंतालिस पार का अंगरेजी का शिक्षक हूँ । कभी जो चीजें वेश्याओं के लिए भी फूहड़ समझी जातीं थीं , वे आज सभ्य समाज की पार्टियों की रौनक बन जाती हैं । यह निस्संदेह बड़ा ही दुखप्रद है । ऐसे में अगर मेरे गीत
पिछड़ जाते हैं तो मेरे कुछ निर्मम मित्र यह भी कहने से नहीं चूकते की मैं 'शीला की जवानी ' जैसा कुछ लिख ही नहीं सकता । एक शहर की वेश्याएं कहा करती हैं कि अगर अंग विशेष में दम हो आओ । अब उनकी चुनौती का क्या किया जाय । मित्रों की यह चुनौती वैसी ही है । अंग विशेष को तो मैं संयम में रखा पर कवि को नहीं रोक पाया । ब्लॉग पर के साथी मुझे माफ़ करेंगे ।
यू आर कैटरीना
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यू आर कैटरीना , ब्यूटीफुल हसीना ;
प्रीटी स्वीटी ब्रांडी , आई वांट टू पीना । यू आर कैटरीना ...... ॥

झूठ मूठ कहती हो कि तू कभी हाथ न आनी ,
सपनों में तो रोज रात को आ खुद ही लिप टानी ;
तेरी इन्हीं अदाओं ने तो मुश्किल कर दिया जीना ,
तेरी इन्हीं अदाओं ने तो मुश्किल कर दिया जी .....ना ..... । यू आर कैटरीना ....... ॥

अपने से तो प्यार जताना मुझको भी है आता,
पर जो तू मिल जाती जानम जन्नत का सुख पता ।
ये तेरी जवानी , तपता महीना ,
ये जाड़े की रात में भी लाये पसीना । यू आर कैटरीना .......... ॥

3 comments:

Dr.R.Ramkumar said...

मित्र ! आप एक शिक्षक है इसलिए यह जरूर जानते होंगे कि जो पाठ्यक्रम है वही शिक्षक बच्चों को पिलाते हैं.... लहक-लहककर, तमक-तमककर, लपक-लपककर।

शीला एक माध्यम है। कैटरीना उस भूमिका की अनुकृति प्रस्तुत कर रही है । उसकी खूबसुरत अदाएं विक्रय की वस्तु है। वह ऐसी वस्तु है जो दूसरों के लाभ के लिए बिक रही है और खुद के लाभ का आकलन कर रही है ।
कैटरीना शीला नाम की किसी वस्तु को नहीं जानती। शीला न हिन्दू है, न मुस्लिम..न क्रिश्चियन है , न पारसी..

जिस कवि ने यह गीत लिखा है वह मुन्नी की प्रतिक्रिया में लिखा है।
मुन्नी उत्तरप्रदेश के लौंडे और नसीबन की नकल है।

असली गुनाहगार को हम पकड़ नहीं पाएंगे। वह हमारी आदिम दमित इच्छाओं में मलेरिया के विषाणु की तरह हमारी मनोवृत्तियों के लिवर में छुपा हुआ है । मियादी बुखार की तरह वह पलट पलट कर आता है ।
डेंगु, चिगुनगुनिया, हेपेटाइटस , पीलिया वगैरह जिस तरह वायरस के दिखाई देने वाले नाम हैं, उसी तरह कैटरीना, मलाइका, हेलेन, किक्कू वगैरह ...

हम अपनी दमित इच्छाओं की पड़ताल करें और अपनी उस अच्छा को समझाएं कि यह सुखद स्वप्न जो सुन्दर जिस्मों के मायावी पर्दों में प्रस्तुत किया जा रहा है वैसा केवल प्रोफेसनल ढंग से किया जा रहा है। शीला का अभिनय करनेवाली अभिनेत्री रूप बेच रही है, जिस्म नहीं .. क्योंकि खरीददार हम जैसे लोग है जो अपनी आंख पर ज्यादती कर रहे हैं और असर दिमाग पर हो रहा है।

आपने अच्छा हास्य गीत प्रतिक्रिया में दिया है। अच्छी पैरोडी है।
पैरवी किसी बात की हम करनेवाले शायद आज के विपणन युग में हो नहीं पाएंगे।

डॉ० डंडा लखनवी said...

आज हम चरित्र-संकट के दौर से गुजर रहे हैं। हमारे आस-पास ऐसा कोई जीवन्त नायक नहीं है जिसके चरित्र का युवा-पीढ़ी अनुकरण कर सकें? कलम के सिपाही भी सोए हुए हैं जिनके पर कंधों जागरण का दायित्व है?
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मुन्नियाँ देश की लक्ष्मीबाई बने,
डांस करके नशीला न बदनाम हों।
मुन्ना भाई करें ’बोस’ का अनुगमन-
देश-हित में प्रभावी ये पैगाम हों॥
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सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी

Dr Om Prakash Pandey said...

Dr Ramkumarji , wastaw mein koi gunahgar naheen hai ,yahan bas maidan-e -jung mein bhautikta ke hathon naitikta ki haar ka daur chal raha hai .
yah pansha palat bhi sakta hai aur ladaai to khatam ho hi naheen saktee.
' Rah gaya Ram Rawan ka aparajey samar .'-Nirala

Dr Danda Lakhnawijee, apka kathan sahee hai , kisi jeewant nayak ke bina yuwa peedhee gumrah ho rahee hai .

Aap donon ko bahut bahut dhanyawaad!