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14.2.11

अल्हड़ता,अक्खड़ता की अनोखी अदा

मध्य प्रदेश का एक अदना सा जिला..नया नवेली सल्तनत..लेकिन अपने आपमें ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे अपनी समृद्धता और सम्पन्नता को बढाता है...अलीराजपुर का एक छोटा सा क़स्बा भाभरा...जिसकी सुन्दरता के बारे में जितना कहा जाये कम है...भाभरा के बारे में बता दे..ये वही क़स्बा है..जहाँ कभी न झुकने वाले चंद्रशेखर आज़ाद ने जन्म लिया था...अपने बचपन के १४ साल बिताये...बीच कसबे में दूसरे मकानों के बीच बनी एक छोटी सी कुटिया...जिसके बाहर आज़ाद के तराने लिखे गए हैं....मगर अफ़सोस कि चंद्रशेखर आज़ाद की इस नगरी का नाम बदलकर भाभरा से आज़ाद नगर नहीं किया गया...जबकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इसकी घोषणा भी कर चुके हैं...खैर..राजनैतिक मामला..लेकिन इसी कसबे का एक शख्स ऐसा दिखा जो आज़ाद के प्रति पूर्णतया समर्पित है....आज़ाद की कुटिया के ५ओ कदम आगे जाने पर एक दरजी की दुकान पड़ती है...उसका बोर्ड पढने पर पता चला..ये आज़ाद नगर है...केवल यही एक बंदा है जो अपनी दुकान के पते में आज़ाद नगर का ज़िक्र कर रहा है....यानि इस नगरी के नाम परिवर्तन के लिए मौन आन्दोलन चला रहा है....आगे जाकर जब यहाँ के लोगों से मिलने का मौका मिला...तो सब में आज़ाद प्रवृत्ति का समावेश पाया...यहाँ की आवो-हवा को जब अपनी साँसों में खिंचा तो खुद एक जोश और जूनून से लबरेज़ पाया..यहाँ का पानी इस आस से पिया कि आज़ाद की रगों में खून बनकर दौड़ने वाला यहाँ का पानी मुझे भी बेफिक्री में जीना सिखा दे...मुझमे भी वो अक्खडपन,अल्हड़ता आ जाये..जिसके दम पर आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहा...यदि आज़ाद मरते दम तक आज़ाद रहे..यदि उनमे स्वाधीनता का भाव आया तो मै इसका श्रेय उनको नहीं देता..बल्कि इसके लिए उनकी जन्मभूमि का ज्यादा योगदान रहा...यहाँ के हर शख्स को मैंने अजीब सी बेफिक्री,अक्खड़ता में जीते देखा...अगर आज़ाद में अपने आत्म सम्मान के प्रति भाव था...तो इसमें उनका स्वाभाव नहीं..बल्कि यहाँ की मिट्टी की सौंधी और स्वभिमानिता की खुशबू का असर था...जिसका अन्न आज़ाद की नस नस में दौड़ रहा था...बड़ा गौरवान्वित महसूस कर रहा था...इस परम पुनीत नगरी में आकर...मन ही मन इस पवित्र नगरी को प्रणाम किया...और आशा की..कि यहाँ का पानी भी मेरी रगों में आज़ाद प्रवृत्ति और फक्कडपन लाएगी...अल्हड़ता और अक्खड़ता जिससे देश सेवा का मार्ग प्रशस्त हो सके...और मरते दम तक आज़ाद रह सकूँ...साथ ही भीम और हिडिम्बा जिस स्थान पर मिले थे उस स्थान को देखने का मौका भी मिला...जब उस स्थान को देखा तो महाभारत की एक एक याद ताज़ी हो गई....बाते ढेर सारी हैं..बस अब भी बार बार आज़ाद कि नगरी को प्रणाम करने को मन करता है...भगवान मुझे भी आज़ाद प्रवृत्ति प्रदान करे...यही दुआ बार बार करता हूँ...

कृष्ण कुमार द्विवेदी
छात्र(मा.रा.प.वि.वि.भोपाल)

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