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17.2.11

है अगर कुछ आग दिल में ...


है अगर कुछ आग दिल में ;
तो चलो ए साथियों !
हम मिटा दे जुल्म को
जड़ से मेरे ए साथियों .
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रौंद कर हमको चला
जाता है जिनका कारवा ;
ऐसी सरकारों का सर
मिलकर झुका दे साथियों .
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रौशनी लेकर हमारी;
जगमगाती कोठियां ,
आओ मिलकर नीव हम 
इनकी हिला दे साथियों .
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घर हमारे फूंककर 
हमदर्द बनकर आ गए ;
ऐसे मक्कारों को अब 
ठेंगा दिखा दे   साथियों .
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जो किताबे हम सभी को 
बाँट देती जात में;
फाड़कर ,नाले में उनको 
अब बहा दे   साथियों .
****************
हम नहीं हिन्दू-मुस्लमान    
हम सभी इंसान हैं ;
एक यही नारा फिजाओं  में 
गुंजा दे साथियों .
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है अगर कुछ आग दिल में 
तो चलो ए साथियों 
हम मिटा दे जुल्म को 
जड़ से मेरे ए साथियों .

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4 comments:

Shalini kaushik said...

jandar aahvan -shandar prastuti .

पी.एस .भाकुनी said...

vyastha parivartn hetu aapka aahwaan vyarth nahi hayega ,
tejshvi rachna hetu abhaar......

vandana gupta said...

हम नहीं हिन्दू-मुस्लमान
हम सभी इंसान हैं ;
एक यही नारा फिजाओं में
गुंजा दे साथियों .

बेहद उम्दा , जानदार , शानदार प्रस्तुति कुछ करने को प्रेरित करती है।

Dr Om Prakash Pandey said...

yah matra ek bauhkhalahat hai ,kitabon ko phad kar phenkne ki naheen, nayee kitaben likhne ki jaroorat hai .waise geet bahut hi achchha hai .