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1.2.11

जुलूस की शक्ल अख्तियार करता जनता का जूनून

रविकुमार बाबुल

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निर्वाण दिवस या कहें उनकी हत्या किये जाने वाला दिन, पहली बार हिंसा के दम पर जिस तरह ट्यूनीशिया, मिस्र,यमन और सूडान में भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से मुक्ति की मांग को लेकर किये जा रहे प्रदर्शन को वहां कि तानाशाह सरकारों द्वारा कुचला-दबाया जा रहा है वह थमने की बजाय और भड़क रहा है। कुछ ऐसी ही चिन्गारी हमें अपने मुल्क में देखने को मिली। जी... जनाब, 30 जनवरी को मुल्क के तमाम शहरों में जिस तरह किसी भी राजनीतिक दल को बैसाखी बनाये हुये, देश के आम मतदाता द्वारा अहिंसात्मक तरीके से भ्रष्टाचार और महंगाई को खत्म करने के लिये मार्च-पास्ट और प्रदर्शन किये गये, उससे एक बात तो साफ हो चली है कि देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ठेठ बाजार हो चले मुल्क और विश्व में बिकती हर चीज, यहां तक कि प्रेम-मातृत्व और रिश्ते के दौर में भी जिंदा हैं? शायद जनता का यही जूनून जुलूस की शक्ल अख्तियार करता नजर आता है।जी....यही अधनंगे महात्मा गांधी, जो वैश्विक नंगपन के सांस्कृतिक दौर में विश्व के चौधरी का-सा रुतबा लिये या फिर कहें सबसे बड़ी ताकत माने जाने वाले अमेरिका के पहले नागरिक बराक ओबामा के दिल में बसते हैं, तो भारत सरकार भी अखबारों में इश्तहार छपवाकर गांधी को जिंदा रख उनके बतलाये अहिंसा और सत्य के मार्ग पर खुद के चलने या कहें कि उसका अनुसरण करने का दंभ भी भरती है और २-जी स्पैक्ट्रम, कॉमनवैल्थ, कालाधन छिपाने वालों का नाम छिपाकर इसे ही नजर अंदाज कर नया आदर्श गढ़कर यही सरकार आगे भी बढ़ती है। जी... तब ही सरकार चलती है? जी, सरकार है, यह किसी गांधी, गौतम या फिर किसी अन्य से कभी प्रभावित नहीं होती है, इसे किसी की विचारधारा का दखल मंजूर नहीं है, यह अलग बात है कि सरकार में शामिल ही दल किसी हिंसक पथ के हिमायती हो चले, लेकिन भारतीय रेल पटरी पर भले ही लडख़ड़ा चले या कहें की लुढ़कने की-सी स्थिति में आ चले, लेकिन सरकार सत्ता से नहीं लुढ़के इसलिये कुछ किया ही नहीं जा सकताहै? कुछ बोला या कहा ही नहीं जा सकता है, जी... यह सरकार है मेरे सरकार (मतदाताओं)?जी... गांधी के बहाने प्रदर्शन के मायने क्या हंै? लोकपाल विधेयक पिछले 20 वर्षो में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर के भीतर पटल पर नहीं रखा जा सका है, इसकी राजनीतिक मजबूरी भी है और लाचारी भी है? लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री जैसा पद भी आये, यह मंशा एन.डी.ए. शासन के दौर में सामने आयी और इसे बिल में जगह देने की कवायद हुयी, लेकिन इसी लोकपाल बिल में कांग्रेस सरकार या कहें कि यू.पी.ए. सरकार ने कभी नहीं चाहा कि प्रधानमंत्री का पद लोकपाल के अधीन हो, वजह साफ है कि कहीं दागदार लोगों के सरकार में शामिल होने पर उंगली उठे तो उसे प्रधानमंत्री जैसे पद की छाया या परछाई में लुकने-छिपने का मौका मिल जाये या दे दिया जाये और सरकार फिर बेदाग निकल, चलती रहे? जी... सरकार यह सब जानती ही होगी, शायद तभी यह न कर पाना या करना उसकी लाचारी बन चली है?गांधी के बहाने अगर हरि जन के हित की बात कि कीजियेगा तो बात किसकी कीजियेगा, आज मुल्क में हर वह शख्स हरि जन हो चला है, जब देश में मौजूद तमाम गांधियों के चाहने पर भी कानून की देहरी पर चढऩा मुश्किल हो चला है? मसलन बहिन मायावती दलित की दुहाई देते-देते भले ही न थकती हों, उनके रूतबे में अब दलितों की हैसियत रही ही क्या है जिसे सरेआम दरोगा, खाकी वर्दी या चाकरी करने वाले ही नहीं खुद उनकी ही पार्टी के विधायक रौंद रहे हैं, तभी तो मायावती जी कहती है कि मुख्य चुनाव आयुक्त कुर्रेशी के इस सुझाव को नहीं स्वीकारा जा सकता है कि किसी आरोपी को चुनाव नहीं लडऩे दिया जाये? जी.....अगर अपराधी चुनाव नहीं लड़ेगें या अपराधियों से गठजोड़ नहीं होगा तब कैसे इस मुल्क में शिंदे जैसा कुली तमाम अपराधों में लिप्त होने के बावजूद छुट्टा घूमफिर सकता है और जुर्रत ऐसी कि एक डिप्टी कलेक्टर की निर्मम हत्या उसे जिंदा जलाकर कर दे? यह सब कुछ वाकई में होते रहे देखना है तो फिर मायावती जी सही है, अपराधियों या उनसे गठजोड़ वाले राजनीतिज्ञों पर रोक ही नहीं लगनी चाहिए?अगर रोक लगती है तो दूसरी बार सत्ता में आये मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह या कहें कि प्रदेश की तमाम बहिनों और भानजियों को अपना भाई और मामा बतलाने वाले शिवराज सिंह जी फिर सत्ता में कैसे आ पायेंगे? जिनके शासन में मंदसौर में एक नाबालिग लड़की से भाजपा के कद्दावर विधायक नेता का धर्मेन्द्र नामक भतीजा बलात्कार भी करता है और पिछले सात महिने में चार बार उस लड़की के विरूद्ध थाने में मामला भी दर्ज होता है? यह सब इसलिये सम्भव नहीं हुआ है कि धर्मेन्द्र का चाचा न सिर्फ भाजपा का कदावर नेता है, बल्कि विधायक भी है। सो ऐसे में इस युवती को मामा शिवराजसिंह से क्या उम्मीद करनी चाहिए आप समझ सकते है?सो.......गांधी के बहाने मुल्क के तमाम शहरों में जिस तरह आम मतदाताओं द्वारा अहिंसात्मक तरीके से भ्रष्टाचार और महंगाई को खत्म करने के लिये मार्च-पास्ट और प्रदर्शन किये गये वह एक नई सुबह के आगाज का संकेत देते हैं?

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