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4.2.11

इन्हें कारखाना कहें या निजी चिकित्सालय?

रविकुमार बाबुल


जब मुल्क की राजनीति बीमार हो चली है और तमाम राजाओं के कुकृत्य पर कार्यवाही भले ही होती नहीं दिखे लेकिन एक अदद राजा को सलाखों में पहुंचा कर कार्यवाही करने की कुचेष्टा में न सिर्फ इसकी बानगी दिखलायी दे, कोशिश भी होती है, यह जतलाई जाये, फिर यह क्यों न मान या समझ लिया जाये कि प्रदेश में भी सिर्फ वही बीमार हैं जिन्हें सत्ता दिखलाना चाहती है।
जी....बड़ी अजीब स्थिति है, ग्वालियर में कुछ बिस्तरों वाला अस्पताल बन-ठन कर उद्घाटन के मुहाने पर आ बैठा है, पर साहब, यहां भी कुछ गरीबों की जमीनें इलाज के बहाने बिकेगी, कुछ पी.एम हाऊस पहुँचेगें तो कुछ अपने घरों पर स्वास्थ्य लाभ लेकर। लेकिन सत्ता है तो सवाल खड़ा ही नहीं होगा सत्ता शर्त ही होती है, निर्र्भिकता, निडरता से तमाम कानूनों को ठेंगा दिखलाने और उन्हें रौंदने की। सो ऐसे में जिस इलाज के बहाने जो इलाज खोजा जायेगा या फिर किया जायेगा उसके आसरे ही तमाम प्रश्न सवाल दर सवाल उठ खड़े होंगे?
जी.....सवाल सत्ता के दम पर तमाम कार्यवाही का हो जाना है, मसलन फायर बिग्रेड से लेकर नगर पालिक निगम की जे.बी.सी. मशीनों तक का इस्तेमाल हो चुका, लेकिन रोड़ा कहीं नहीं आया, जो यह आज की सत्ता चाहती थी? लेकिन अगर सरकारी अस्पताल का एक डॉक्टर अपने किसी परिचित को निजी चिकित्सालय में जाकर देख भर ले तो उबाल आ जाता है, तमात फाइलें टेबल-दर-टेबल कूंदा-फॉदी कर बैठती है, जबाब-तलब सब कुछ गरीब मरीजों के हक के बहाने होता है? लेकिन सत्ता चाह ले तो यही सरकारी डॉक्टर जी... शासकीय डॉक्टर नीति निर्धारक हो चलते हैं, सरकारी चिकित्सालय में मरीजों को देखने के निर्धारित समय में आला अफसरों से गपियाते नीति बनाने में मशगूल रहते है, बेचारा मरीज बाट जोह कर वापस किसी अदालत का सा डेट लेकर अगली तारीख पर आने का वादा कर चले जाते है।
जनाब क्या कहियेगा? सत्ता सदैव करीबियों के ही काम आयी है, और जो करीबी नहीं है या कहें खास नहीं है तब सत्ता ने उन्हें सदैव दुत्कारा ही है? अगर ऐसा नहीं होता तो आज तलक सरकारी अस्पतालों में मरीजों की दुर्दशा देखने को नहीं मिलती? लेकिन हम मरीजों को ठीक करने का कारखाना कहें या अस्पताल उसे खोलने के विरोधी नहीं है, लेकिन जनाब जो पुराने कारखाने या निजी चिकित्सालय शहर में चल रहे है उनमें नियमों का पालन हो, यही चाहते है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भले ही बुरा लगे? लेकिन कभी सत्ता के करीब रहे मरीजों को ठीक करने का कारखाना कहें या निजी चिकित्सालय और सत्ता से इतर सेवा भाव से सेवा कर रहे कारखाने की चर्चा भी करेंगे। भूलेंगे तो उन्हें भी नहीं जो स्वास्थ्य सेवा के बहाने दान लेकर अपने घर का न सिर्फ चूल्हा जला रहे है, बल्कि मरीजों के नाम पर लिये दान को अपनी अय्याशी और रूतबे की जरूरत भी बनाये बन बैठे है?

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