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10.2.11

सत्य मेव जयते! सॉरी रोंग नंबर है भई

सच्चाई की जीत होती है। सच से बड़ा कोई नहीं। सच कभी नहीं हारता। सदा सच ही बोलो। ये वाक्य मास्टरों से लेकर घर के बड़ों से सुनते आये हैं। सद्पुरुष भी यही कहते हैं। शास्त्रों, ग्रन्थों में भी ऐसा ही लिखा हुआ है। अगर किसी ने इस सच्चाई का सामना ना किया हो तो वह चुटकियों में रूबरू हो सकता है। अशोक स्तम्भ! कौन नहीं जानता! सरकार का राज चिन्ह। संवैधानिक पदों का प्रतीक। इसके नीचे लिखा हुआ है, सत्य मेव जयते! ये हमने या आपने नहीं लिखा। सरकार ने लिखा। आज तक लिखा रहता है। भारतीय नोटों पर भी यही अंकित है। परन्तु व्यवहार में सबकुछ इसके विपरीत है। दो और दो को चार कहना अपने आप को संकट में डालना है। आप से सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ छीना जा सकता है। यही तो हो रहा है आमीन खां के साथ। कांग्रेस कल्चर को सहज भाषा में बताना,कार्यकर्ताओं को समझाना उनके लिए परेशानी का सबब बन गया। उन्होंने उदाहरण देकर अपनी बात में वजन डाला। यही वजन अब उनसे, उनके आकाओं से सहन नहीं होगा। सरकार आजादी के बाद से जिस सत्य मेव जयते का ढिंढोरा पीट रही है वही सत्य आमीन खां के लिए चिंता का कारण बन गया। जिस सत्य को संवैधानिक पद के लिए अशोभनीय टिप्पणी बताया जा रहा है उसी संवैधानिक पद के प्रतीक अशोक स्तम्भ के नीचे हमेशा से लिखा हुआ है -सत्य मेव जयते। तो क्या यह गलत लिखा हुआ है। संवैधानिक पद सत्य मेव जयते से भी बड़ा हो गया! या इस पद पर विराजमान इन्सान के पास सत्य का सामना करने की ताकत नहीं। मुख्य सतर्कता आयुक्त भी तो संवैधानिक पद है। श्री थामस कौनसी संवैधानिकता का निर्वहन कर रहे हैं? आमीन खां का बयान सत्य है तो उनको सजा क्यों मिले! पद से वो लोग हटें जिन्होंने चरण चाटुकारिता के जरिये पद प्राप्त किये हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि सच की अपनी गरिमा होती है। सच कहाँ,किसके सामने,किसके लिए,किस बारे में,कब कहना है, यह बहुत ही महत्वपूर्ण होताहै। कोई सच चारदीवारी में ही सबको अच्छा लगता है। यही सच बाहर आते ही अफसाना बनते देर नहीं लगाता। यही हुआ आमीन खां के साथ। किसने किस की रसोई में काम किया और किसने लड़की शादी में झूठे बर्तन साफ़ किये। ये सब आपसी सम्बन्धों पर निर्भर करता इन रिश्तों को महसूस किया जाता है,उजागर नहीं। क्योंकि इसको सब जानते ही होतेहैं। सहज भाषा में आमीन खां ने एक सच कहा और आज वह उनके लिए भारी पड़ गया। उनको पता होता कि मेरे साथ ऐसा होगा तो वे कभी इस बारे में कुछ नहीं कहते। वैसे आजकल सच बोलने वाले हैं ही कितने! सच सुनने वालों की संख्या भी ऐसी ही होगी। हकीकत तो ये कि सच सुनने की हिम्मत नहीं रही इसलिए बोलने वाले भी नहीं रहे। कभी किसी की जुबां से गलती से सच निकल भी जाये तो उसको निगलना मुश्किल हो जाता है। यही हुआ आमीन खां के साथ और यही हो रहा है उसके बाद। पंजाबी में किसी ने कहा है --इन्ना सच ना बोलीं कि कल्ला रह जावें, चार बन्दे छड्ड देंवी मोड्डा देण लई।

1 comment:

अजित गुप्ता का कोना said...

अब चाहे मंत्रीजी से त्‍यागपत्र ले लो या उन्‍हें कांग्रेस से ही निकाल दो, लेकिन प्रतिभा पाटिल का सच तो सामने आ ही गया है। इसीलिए कहते हैं कि सत्‍यमेव जयते। सत्‍य को लाख छिपाओ लेकिन वह प्रगट हो ही जाता है। आज तो योग्‍यता का आधार चमचागिरी ही हो गया है, इसलिए इसमें बुरा मानने की आवश्‍यकता है ही नहीं।