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13.2.11

कुshaसन और भ्रsटाचार में लिप्त जनों के खिलाफ जनता भीड़ बनकर कोहराम मचा दे......?

धेैर्य टूटने लगा है!  आज भारत के चप्पे-चप्पे पर भ्रsटाचार का बोलबाला है। इसका अहसास ही नहीं,
अब इसे देesh का प्रत्येक जन भुगत रहा है और वह बुरी तरह से पीढ़ित है। भारत के विद्वान कहे जाने वाले
अर्थshaस्त्री प्रधानमन्त्री आमजन के लिए निकम्मे और जाहिल से भी बद्तर  व्यक्ति साबित हुए हैं। वह
अमरीका के दलाल से ज्यादा और कुछ नही बन पाये। बिना जनता के बीच गए, अमरीकी ईshaरे से  चोर
दरवाजे के जरिए सत्ता के सर्वोच्च पद पर आसीन हो कर सिर्फ और सिर्फ अमेरिका के हितो के कार्य ही
किए। इनकी नीति एैसी, देesh की कर दी एैसी-तैसी। भ्रsटाचार ने ‘shीर्sा सत्ता और नौकरshaही में जितने बेलगाम तरीके से पैर पसारे हैं shaयद उतने कभी नही। आज प्रत्येक गली कूचों में आम आदमी त्रस्त है।
बेबस और आक्रोshiत है। अनेक जगहों पर तो लोगों का श्रृंखलाबद्ध आत्महत्या करने का दौर जारी है।
लोगों को Shanत करने के लिए संसद ठप की जा रही है, जिन मन्त्री या अफसरों ने देesh का अकूत धन लूट
कर अपना कोटा पूरा कर लिया है, उन्हे हटाया जा रहा है, कहीं-कहीं तो दिखावटी तौर पर गिरफ्तार भी
किया जा रहा है। मुकदमें दर्ज किए जा रहे है। वो मुकदमें जो उनके लिए प्रचार पाने का आसान तरीका
तारीख पर तारीख के अलावा कुछ दे ही नही पाए। अगर मुकदमों से सजा पायी तो केवल आमजन ने।
डाॅ. मनमोहन सिंह एैसे अर्थshaस्त्री प्रधानमन्त्री हैं जिन्होने पंडित नेहरू के समय से shुरू हुई लाख दो लाख
की लूट को अपने shaसन में लाखों करोंड़ों की लूट में बदलकर रख दिया है। पहले कोई इक्का-दुक्का ही
लूट कर पाता था, जबकि मनमोहन shaसन में बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी सत्ता की कुर्सी पर विराज
मान प्रायः प्रत्येक व्यक्ति जो किसी भी प्रकार से shaसन का अंग है या उससे जुड़ा है वह अपने पद की
ताकत के हिसाब से लूट रहा है। वह हिन्दूस्तान को अपने बाप की जायदाद समझ कर अपनी जेबों में ठूंस
लेना चाहता है। बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोगो ने अपनी हैसियत के हिसाब से भारत के लोगों के धन को
जनता से चुरा कर विदेshi बैंकों में जमा करा रखा है तो वहीं उनसे छोटे लोग भी ( बेनामी सम्पतियों, सोने,
गहने, बैंको, लाकरों, ‘ोयर बाजारों आदि में..) देesh के लोगों को लूटते हुए अपनी हैसियत बढ़ा रहे हैं। सत्ता
से जुड़ी प्रायः सभी कुर्सियों पर बैठे लोग आज जनता को हर तरीके से सरेआम, बोलकर, मांगकर लूट
रहे है। अगर रिsवतखोर जनता के दवाब से रिsवत लेता हुआ पकड़ा भी जाता है तो वह भी रिsवत
पकड़ने वालों को रिsवत देकर बच जाता है। अब सवाल उठता है कि  भारत की 140 करोड़ जनता आज
की सत्ता के लूटेरों को आखिर कब तक बर्दास्त करती रहेगी ? आखिर जनता को स्वयं भीड़ रूप मे
निकलकर इन लूटेरों के विरूद्ध कोहराम मचाना ही होगा। लूट तन्त्र को लोकतन्त्र कहने वाले भ्रsटाचारियों
से जनता को स्चयं निपटना ही होगा। विsवविजयी का स्वप्नदृsटा हमारा प्यारा राsट्रीय ध्वज, भ्रsटाचार के
चक्रव्यूह में आज गया है पूरा फंस। इसको भ्रsटाचार से आजाद कराना ही होगा। मिश्र देesh का उदाहरण
हमारे सामने है, जहां की जनता ने Shaसन में व्याप्त भ्रsटाचार के कारणों से बढ़ी मंहगाई, बेरोजगारी के
विरोध में तानाshaह राsट्रपति को गद्दी छोड़ भागने पर मजबूर कर दिया। आज भारत की जनता मिश्र के
लोगों से कहीं ज्यादा त्रस्त है। देesh में बेरोजगारी और गरीबी का आलम ये है कि आम लोगों में से लोग
सरेआम छीना-झपटी, लूट-खसोट करने लग गये हैं।  आमजन का देesh में राज कर रहे अंग्रेजी कानूनों के
प्रति बढ़ते अवि’वास के चलते वह उसकी Shरण में जाने के बजाए अपने फैेंसले स्वयं कर लेने को अग्रसर
है। धन और सत्ता की अंधी दौड़ पर झूठी चिंता व्यक्त करने वालों को भी जनता देख रही है। पिछले दिनों
भ्रsटाचार के खिलाफ देesh की जनता केवल एक दिन के लिए विरोध स्वरूप सड़कों पर उतरी थी। वास्तव
में भ्रsटाचार के खिलाफ यह आयोजन ‘जनयुद्ध’ का पूर्व संकेत था। उसने सत्ता में बैठे भ्रsटाचारियों को
ईshaरा कर दिया कि अब देesh की जनता भ्रsटाचार से मुक्ति चाहती है। अच्छा होगा कि सरकार समय रहते
न्यायपालिका को पूर्ण स्वतंत्रता का दर्जा देकर त्वरित और सख्त दंड-विधान द्वारा इसकी समाप्ति की
घोsणा कर दे। और जनता यह जान ले कि आज क्रान्ति और परिवर्तन हमारी आवsयक्ता है। अब समय
आ गया है भ्रsटाचार और इसको बढ़ावा देने वालों के खिलाफ मुखर होने का। अपने Shaसन और समाज
की स्वछता के लिए जनता इसे निर्णय की घड़ी मान कर ‘जनयुद्ध’ का ऐलान करे! निschiत ही सफलता
चरण चुमेगी!

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