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19.6.11

ममता जैसा कोई नहीं...

शंकर जालान



जब लड़ी तो कट्टर राजनैतिक दुशमनों की तरह मगर जब सौजन्यता पेश करने की बात आई तो उसमें भी मिसाल पेश कर दिया। संपन्नता के बावजूद सादगी में भरोसा, जरूरत पड़ी तो तीखे तेवर मगर गरीबों के लिए ममता की प्रतिरूप ममता बनर्जी सचमुच में बेनजीर हैं। अचानक काफिले से छिटककर रोड के किनारे किसी खोमचे वाले से हालचाल पूछने चली जाती हैं। यह भी भूल जाती हैं कि वह मुख्यमंत्री भी हैं। पुलिस को हिदायत देती रहती हैं कि उनके लिए ट्रैफिक रोककर आमआदमी की मुश्किलें न बढ़ाए। सिगनल लाल होने पर खुद भी आम आदमी की तरह सिगनल हरा होने का इंतजार करती रहती हैं। खुद को विशिष्ट की जगह आम लोगों की तरह बनाए रखने का यह जज्बा ही बताता है कि सचमुच ममता जैसा कोई नहीं।
लगभग दो सप्ताह यानी १४ दिनों के मुख्यमंत्री काल में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने १४ से अधिक ऐसे कार्यों को अंजाम दिया है, जो इससे पहले किसी राज्य के किसी मुख्यमंत्री ने नहीं दिया। मसलन हर रोज ममता कोई ऐसा काम कर रही है, जिससे उसे प्रचार तो मिल ही रहा है, जनता के बीच उसकी लोकिप्रयता भी बढ़ रही है।
राजनीतिक के जानकारों का कहना है कि ममता ने जिस तन्मयता, एकाग्रता और सोच से ३४ सालों से सत्तासीन वाममोर्चा को राज्य सचिवालय (राइटर्स बिल्डिंग) से बेदखल किया ठीक उसी तरह अब वह (ममता) जनता और नेता के बीच की दूरी पाटने में जुटी हैं।
कुछ लोग ममता बनर्जी को नायक फिल्म के मुख्य कलाकार अनिल कपूर के रूप में देख रहे हैं। लोगों का कहना है कि अनिल कपूर ने एक दिन के लिए मुख्यमत्री का पदभार संभाला था और पूरी व्यवस्था को बदल कर रखी दी थी बेशक वह एक फिल्म के दृश्य था, लेकिन ममता बनर्जी जिस गंभीरता से काम ले रही है उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि एक दिन, एक सप्ताह या एक महीने में तो नहीं, लेकिन एक साल में ममता पश्चिम बंगाल की पूरी व्यवस्था अवश्य बदल देगी।
बनर्जी ने मुख्यमंत्री पद के शपथ लेते ही राजभवन से राइटर्स बिल्डिंग तक का सफर पैदल तय कर नई मिसाल पेश की। इससे पहले उन्होंने राजभवन शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने पहुंचे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य, माकपा के राज्य सचिव विमान बोस समेत वाममोर्चा के नेताओं के समक्ष जाकर हाथ जोड़कर उनका अभिवादन किया।
इसके बाद बुलेड प्रूफ गाड़ी और हुटर लेने से मना करते हुए पुलिस महकमे को सकते में डाल दिया। और तो और कालीघाट स्थित अपने निवास से दफ्तर आने के क्रम में ममता बनर्जी ने एसएसकेएम अस्पताल, पुलिस बाडी गाइट लाइन, एमआर बांगूर अस्पताल और शंभूनाथ पंडित अस्पताल का दौरा कर वहां का जायजा लिया और यह भी जानने का प्रयास किया कि सरकारी अस्पतालों में किस तरह काम-काज हो रहा है। ध्यान रहे कि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ राज्य की स्वास्थ्य मंत्री भी है। और वे हर हाल में राज्य के सरकारी अस्पतालों के कायाकल्प के प्रति कृतिसंकल्प दिख रही है।
इससे भी बड़ी बात यह है कि राज्य की खस्ता हाल स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने निजी कोष से राज्य के मुख्य सचिव समर घोष को एक करोड़ रुपए के चेक सौंप कर अपने त्याग की भावना का परिचय दिया। यहीं नहीं अपने कक्ष की साज-सज्जा पर खर्च हुए करीब दो लाख रुपए का भार में उन्होंने अपने कंधे पर लिया।
ममता के करीबी सूत्रों के मुताबिक उन्होंने सचिवालय में अपने दफ्तर में अपनी इच्छानुसार बदलाव करवाए हैं। इसमें लगभग 2 लाख रूपए का खर्च आया है। सचिवालय सूत्रों के अनुसार ममता ने हाल में ही में बेची गई उनकी पेंटिंग से यह राशि अर्जित की थी।
लोगों की बीच यह चर्चा है कि ममता की ईंमानदारी और सादगी पर तो उन्हें कभी शक था ही नहीं, लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले तक इतनी उग्र लगने वाली ममता चुनावी नतीजे आने के बाद एकाएक इतनी संतुलित कैसे हो गए।
इसके अतिरिक्त माओवादी समस्या, दार्जिलिंग समस्या के सटीक समाधान की दिशा में ममता अग्रसर हो रही है। एक ओर जहां हुगली जिले के सिंगूर के किसानों को ४०० एकड़ जमीन वापस कर उनके दिलों में और जगह बना रहा है। वहीं टाटा मोटर्स के प्रमुख रतन टाटा को शेष ६०० एकड़ जमीन पर कारखाना लगाने का न्यौता देकर औद्योगिक विकास की गति भी जारी रखना चाहती है।

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