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13.6.11

कर्तव्यों का अतिरेक तो नहीं...


दोस्तों यह बात शेयर करने की तो नहीं लेकिन क्या करूं मन में लगी नहीं रखना चाहता। एक पत्र ने धमतरी में बाबा के आंदोलन के दौरान जुआ खेलते कुछ आंदोलनकारियों की खबर छापी। जब इस पत्र की खबर छपी तो सेंट्रल टीम इसे अपने मुख पृष्ठ पर न ले पाने के लिए मलाल करने लगा। भैया मुझे यह बात समझ में नहीं आई कि जब कोई पत्र अपने क्लाइंटों की बड़ी से बड़ी करतूतों को छुपाते हैं। क्या कह कर? सिर्फ इतना कि वह हमारे क्लाइंट हैं, विज्ञापनदाता हैं, तो बाबा को बदनाम करने वाली इस छोटी से खबर को क्यों नहीं छुपा सकते। वह काम पत्र के मार्केटिंग प्रभाग वाले करते हैं, बाबा को बदनाम करने वाले ऐसे घटनाक्रमों को एडिटोरियल वाले छुपा सकते हैं। यह पाप नहीं बल्कि पुण्य है, क्योंकि बाबा का लक्ष्य अच्छा है। यह नैतिक आधार पर ईमानदारी का काम है, न कि पाप। यही भेद पत्रकारों में होना जरूरी है। कई विद्वान तो यहां तक कहते हैं, कि दुनिया में कोई भी पाप पुण्य जैसी चीजें नहीं है, बल्कि हमारा इन्हें पहचानने का बल नहीं है। सही गलत के ज्ञान को ही आत्मज्ञान या परम पॉवर कहते हैं। बाबा रामदेव का अनशन खत्म हुआ, ड्रामा, नौटंकी, सरकार की अख्खड़बाजी और योग मिजाज सबकुछ ठंडा हो गया। सबसे दुखद है, कि अब मीडिया के पास हैपनिंग नहीं बचीं। इससे अगर किसी को फायदा हुआ तो वह अमिताभ बच्चन को। क्योंकि वे 13 साल के ओरो से पीडि़त बच्चे को रोल में फैल होने के बाद अब बुढ्ढे की भूमिका वाली बुढ्ढा होगा तेरा बाप फिल्म लेकर आ रहे हैं। अगर यह न्यूज मीडिया बाबा में लगा रहता तो अमिताभ बाबा का क्या होता?
सबकी बात एक बात अच्छे के लिए किए गए खराब और गलत काम भी अंतत: सही होते हैं, ठीक उसी तरह से दुनियाभर की गंदगी बाढ़ में लिए नदियां समानांतर बहती हुई समुद्र में गिर जाती हैं। इस बीच वे जमीन को रिचार्ज भी करती हैं। वह गंदगी गौढ़ हो जाती है।
सखाजी

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