Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

18.6.11

खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!

             एक बार फिर चारों तरफ बरसात का आलम है.....कुछ लोगों के लिए बेशक यह रोमांचक शमां हो सकता है,किन्तु झारखंड नाम के एक राज्य में यह मौसम इस वक्त एक लोमहर्षक-दर्दनाक-विकराल और दिल को दहला देने वाला दृश्य पैदा कर रहा है....!!कारण पिछले कुछ समय से माननीय हाई-कोर्ट के आदेश से चल रहा अतिक्रमण हटाओ अभियान है....इस गर्मी के मौसम में कड़ी धूप में गरीब-कमजोर-मासूम लोगो को उस सरकारी जमीन से जबरन हटाया जा रहा है,जिसे हर किसी ने कभी अपनी कड़ी मेहनत और दुर्दमनीय संघर्ष से खरीद कर हासिल किया था और तो और,वो तो ये भी नहीं जानते थे कि जिस जमीन को वो सरकारी कारिंदों से सरकारी रेटों पर वाजिब तरह से खरीद कर उस पर अपना आशियाना बना रहें हैं,उस जमीन को बेचने का कोई हक़ उन सरकारी लोगों को नहीं था,और अब जब ये मासूम और गरीब लोग कोर्ट के आदेश से ना सिर्फ सड़क पर आ चुके हैं,बल्कि उस स्लम से इन तरह-तरह के राहत शिविरों में इस बरसात में नालियों-नालों और दूर-दूर से बह कर आती तरह-तरह की गन्दगी में किस तरह की यातना के बीच नरक से भी बदतर जिन्दगी जी रहें हैं,उसे बताया नहीं जा सकता,उसे देखकर ही जाना जा सकता है और अगर किसी के पास संवेदनशील ह्रदय ना भी हो तो भी वो पसीजे बिना नहीं रह सकता और इस वाक्य के आलोक में एक बड़ा ही कठिन और मार्मिक प्रश्न पैदा होता है कि जिन स्थितियों को देख कर हर प्रकार का मनुष्य दहल जाता है,ठीक उन्हीं स्थितियों को देखकर नेता,वकील-जज और पुलिस नाम के मनुष्य देह-धारियों के जेहन में क्यों कुछ नहीं होता...!!??
              सवाल  नंबर एक,नियम किसलिए बनाए जाते हैं ?शायद लोगों के हित के लिए !!मगर हित भी तो उन्हीं का साधा जा सकता है,जो ज़िंदा बचे,जब ज़िंदा ही नहीं रहने दीजिएगा तो हित किसका कीजिएगा....और जो लोग अपनी जान में कानूनी तरीके कानूनन ही जगह-जमीन खरीद कर अपनी- अपनी औकात के अनुसार जीवन-यापन कर रहे थे/हैं!!उनके लिए बिना किसी पुनर्वास की व्यवस्था किये लाखों-लाख लोगों को नियम की बिना पर एकाएक उजाड़ देना,ये किस किस्म धर्म है या जो भी कुछ है??नियम आदमी के लिए हैं या आदमी की जान से भी ऊपर ??
             सवाल नंबर दो,जिन सरकारी कारिदों की वजह से नियम-क़ानून तोड़े जाते हैं,उनमें से भला कितनों को दंड दिया जाता है,और उन्हें दंड दिया जाए या ना दिया जाए,मगर लाखों-लाख लोगों की हजारों या लाख का मकान या हजारों या लाख की संपत्ति जो कुल मिलाकर अरबों की भी ठहर सकती है,क्या वो महज निजी संपत्ति है,वो संपत्ति देश की संपत्ति नहीं है ??क्या गरीब लोगों की मेहनत का धन हराम का होता है,जिसे जब जो चाहे,किसी भी आदेश की बिना पर नष्ट कर दे,वो भी उसे उसका बिना उचित मुआवजा या हर्जाना दिए ??
             सवाल नंबर तीन ,कि लोकतंत्र नाम की इस व्यवस्था में लोक के लिए वोट देने के अलावा इतना स्थान भी नहीं बचा हुआ है कि वो खुद के सड़क पे आ जाने के भय समुहबद्द होकर इस तरह की सरकारी नीतियों का विरोध करें,और इस अहिंसक विरोध का प्रतिकार सरकार नाम की चीज़(अगर वो है कहीं !!)मानवतापूर्ण तरीके से ही करे और चूँकि सरकार का काम एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना भी है अतएव वह लोगों की न्यायसंगत मागों को यथाशीघ्र पूरा करे....!!
            सवाल नंबर चार......क्या यह एक भद्दा मजाक नहीं है कि हजारों करोड़ रुपये तो किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी एक क्षण में ही डकार लिए जा सकते हैं,वहीँ लोगों के हितार्थ कुछेक लाख की योजनायें बरसों तक भी पूरी नहीं की जा सकती ??इसका मतलब नेता-मंत्री-अफसर सब-के-सब महज और महज अपने हित मात्र के लिए लोगों का बड़े-से-बड़ा नुक्सान कर सकते हैं,करते हैं,करते रहेंगे,और क्या उनपर कभी कोई अंकुश नहीं लगेगा....!!??
            इस बरसात में पानी की तरह सवालों का सैलाब भी बह रहा है...मगर जवाब देने वाले हराम के धन को चारों ओर से लपेटे-पर-लपेटे जा जा रहें हैं....उन्हें इन सब सवालों से कोई साबका या वास्ता नहीं...ऐसे में आने वाले समय में खुदा भी उनके साथ क्या फैसला करेगा यह कोई नहीं जानता,खुदा के सिवा.....!!.....खुदा करे कि वो इन जैसे लोगों को कभी माफ़ ना करे....!!