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13.6.11

बाबा रामदेव: ये भूख है बड़ी


- अतुल कुशवाह

एक सवाल उनसे जिन्होंने बाबा रामदेव पर सवाल खड़ा किया.. आप क्या चाहते थे कि बाबा सरकार के कट्टरपंथी रवैये का शिकार हो जाते. मॅ बाबा का भक्त नहीं हूँ मगर बाबा की एक शानदार कोशिश का समर्थक जरूर हूँ. बाबा की कोशिश को दाद देता हू. दुनिया मे आदमी को उर्जा भोजन से ही मिलती है बिना भोजन के आदमी का स्वास्थ्य बिगाड़ना तय है. इंसान के पास ऐसा कोई तिलिस्म भी नही है जो कि बिना भोजन के हॅस्ट पुस्त बना रह सके. कोई जादू नही है ऐसा. अगर ऐसा होता तो शायद दुनिया मे पापी पेट के लिए महिलाओं और मासूम अनाथ बcचो को मज़दूरी की झुलसती भट्टी मे खुद को मजबूरन तपाना नही पड़ता. हम बात कर रहे थे बाबा रामदेव की. योग के ज़रिए उन्होने दुनिया मे यश और वैभव कमाया  जिसके लिए हम और आप (आप भले ही न लेकिन मॅ ज़रूर) दिन रात खुद को सिद्ध करने मे जुटे रहते हैं. माना की ग़लत तरीके से उन्होने पैसा कमाया लेकिन हम और आप या वो कितने ईमानदार हैं. कड़वा सच है की हम इमानदर तभी तक हैं जब तक बेईमानी का अवसर नहीं मिलता. सॉफ है की हमाम मे सब.....! सवाल पैदा हुआ कि अगर सभी भूखे हैं तो फिर कौन किसको भोजन परोसे. ? संभव है भोजन मिलते ही भूखा उस पर टूट पड़ेगा. भर पेट खाने के बाद बचा के रख लेगा. जिस चुनाव मे सभी उम्मीदवार भ्रस्ट हो तो ऐसे मे किसे चुनेंगे आप. माना कि दूध का धुला कोई नही मिलेगा. फिर तो केवल यही एक चारा है की जो कम भ्रस्ट हो उसे ही नेत्रत्व सौंप दिया जाए रामदेव ने काले धन का मुद्दा उठाकर सरकार से मामले पर अमल करने की गुहार लगाई. उन्होने लोकतंत्र की व्यवस्था के तहत अपनी बात मनवाने की ज़िद की. लेकिन सरकार तानाशाह निकली. उसने सत्याग्रह का दमन कर दिया. सरकार ने जता दिया कि हम तुम्हारे (जनता) की काले धन जैसी किसी भी माँग को आसानी से पूरा नहीं कर सकते. इस बात पर मत चौंकिये कि पिछले एक दशक में करीब 4.8 लाख करोड़ रुपये (ग्लोबल फाइनेंशियल इंटेग्रिटी रिपोर्ट) अवैध ढंग से विदेश पहुंचे हैं बल्कि अचरज इस बात पर करिये कि भारत की यह सामानांतर अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है कि देश के भीतर काले धन को खपाने के तमाम विकल्प मिलकर भी इतनी कालिख नहीं पचा पाते। रामदेव आम इंसान से खास बने हैं. उन्हें भूख लगती है प्यास लगती है. 45 डिग्री वेल मौसम मे ज़रा दो दिन उपवास कर के तो देखिए. कोई भले ही ऐसे दो क्या बाबा की तरह 9 दिन तक रह ले. मगर अपन की हालत तो ख़स्ता से भी ख़स्ता हो जाएगी. बाबा ने तो 9 दिन तक भूखा रह के कमाल कर दिया.....

2 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

भाई अतुल, इस देश में दो ध्रुव बन गए हैं एक भ्रष्‍टाचार को समाप्‍त करने के लिए कुछ भी कर गुजरने वालों का और दूसरा जो भ्रष्‍टाचार को पनपने देने के लिए सब कुछ करने का। इसमें वार-प्रतिवार तो होंगे ही। बाबा रामदेव की भक्‍त मैं भी नहीं हूँ लेकिन आज जो लोग उनकी सम्‍पत्ति पर एतराज उठा रहे हैं वे सच से आँखे मूंद रहे हैं। इस देश में लाखों ही नहीं करोड़ो ट्रस्‍ट हैं। सभी सम्‍प्रदायों के हैं, जिनमें चर्च, मस्जिद, गुरुद्वारे, मन्दिर, सामाजिक संस्‍थाएं आदि सभी हैं। मेरी जानकारी के अनुसार भारत में 13 बड़े मिशनरीज हैं, जिनका प्रत्‍येक का बजट भारत सरकार के बजट से अधिक है। आज जितने भी धार्मिक संस्‍थान हैं उन सभी के पास अकूत धन सम्‍पदा है। लेकिन यह धन सरकार के खजाने को लूटकर नहीं आया है। यह धन दान का पैसा है। यदि मिशनरीज के पास भी पैसा है तो वह भी दान का ही है। भारत में ही नहीं सारी दुनिया में दान देने की परम्‍परा है और इसी कारण विकास के कार्य एक तरफ सरकार करती है तो दूसरी तरफ इसी दान के पैसे से होता है। इसलिए केवल रामदेवजी को इस मुद्दे पर बदनाम करना, कुटिलता ही है। यदि ट्रस्‍ट बनाना ही गलत है तो सरकार को चाहिए कि वे किसी को भी नहीं बनाने दे। लेकिन इस भोली जनता के सामने किसी का चरित्रहनन इस प्रकार से ना करे। क्‍योंकि एक तरफ जनता स्‍वयं दान करती है और दूसरी तरफ ऐसे तर्कों से भ्रमित भी होती है।

निर्मला कपिला said...

क्या आप ये चाहते हैं कि बाबा के अडियाल व्यवहार से सरकार गिर जाये? इसका खामिआज़ा भी हमे ही भुगतना होगा भ्रष्टाचार वो आदमी कैसे कर सकता है जिसने खुद इतना काला धन जमा कर रखा है? अभी तो बाबा की कम्पनियों का सच आने दीजिये फिर बाबा और सरकार मे फर्क बताईयेगा। इस आन्दोलन के लिये मुद्दे पर आदमी का खुद पाक साफ होना जरूरी है और सरकार ने बाबा की कमज़ोर नस पर हाथ डाला है। वैसे बाबा का आन्दोलन भ्रष्टाचार के लिये नही केवल सियासत के लिये था। अब इसमे कोई शक नही।