Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

16.6.11

एक उत्कृष्ट व्यंग : स्वर्ग की सेफ्टी पोलिसी : (चुराया हुआ)


एक उत्कृष्ट व्यंग : : (चुराया हुआ)

स्वर्ग की सेफ्टी पोलिसी

[४ मार्च को पूरे विश्व में संरक्षा दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर लिखालेख इसके पहले भी एकबार ठेला जा चुका है । आज मौका भी है (संरक्षा दिवस का) और दस्तूर (ठेलने का) भी इसलिये उस ठेल को पांच साल होने पर इसे रिठेला जा रहा है। यह लेख उन लोगों के लिये है जिन्होंने इसे पहले नहीं पढ़ा था। जिन लोगों ने पढ़ रखा वे भी अगर पढ़ना चाहें तो कोई रोक नहीं है। यह लेख आज से 18 साल पहले कभी लिखा गया था। मेरा पहला व्यंग्य लेख टाइप का उत्पाद। जब यह लेख लिखा था तब एक नये अधिकारी के तौर पर अपने आसपास लोगों के काम करने और बड़े अधिकारियों के निर्णय लेने के अंदाज को लिखने की कोशिश की थी। आज इतने साल बाद भी लगता नहीं कि काम करने का और निर्णय लेने का तरीका कुछ बदला है। बहरहाल आप देखिये हो सकता है आप को पसंद आ ही जाये। :) ]

ट्विटरिया ब्लागिंग के कुछ नमूने
  • वीणा की टुनटुनाहट के बीच अपने इस बार के मृत्युलोक डेपुटेशन के ओवरस्टे को स्वीकृत कराने के बहाने सोचते हुये नारद जी स्वर्गलोक के मुख्यद्वार पर पहुंचे। द्वाररक्षक ने उन्हें कोई टुटपुंजिया सप्लायर समझकर गेट पर ही रोक लिया। इस दौरे में इक्कीसवीं बार नारदजी ने अपना विजिटिंग कार्ड साथ लेकर न चलने की मूर्खता पर धिक्कारा। बहरहाल,कुछ देर तक तो वे इस दुविधा में रहे कि इसे वे अपना सम्मान समझें या अपमान। बाद में किसी त्वरित निर्णय लेने मे समर्थ अधिकारी की भांति, जो होगा देखा जायेगा का नारा लगाकर, उन्होंने इसे अपना अपमान समझने का बोल्ड निर्णय ले लिया।

    नारदजी ने पहले तो, अरे तुम मुझे नहीं पहचानते का आश्चर्यभाव तथा उसके ऊपर अपने अपमान से उत्पन्न क्रोध का ब्रम्हतेज धारण किया। अगली कडी के रूप में द्वाररक्षक का ओवरटाईम बन्द होने का श्राप इशू करने हेतु जल के लिये उन्होंने अपने कमंडल में हाथ डाला तो पाया कि जैसे किसी सरकारी योजना का पैसा गंतव्य तक पहुंचने से पहले ही चुक जाता है वैसे ही उनके कमंडल का सारा पानी श्रापोयोग से पहले ही चू गया था। मजबूरन नारदजी ने अपने चेहरे की मेज से ब्रम्हतेज की फाईलें समेट कर उस पर दीनता के कागज फैलाये। उधर गेटकीपर ने,किसी देवता का खास आदमी ही बिना बात के इतनी अकड दिखा सकता है, सोचते हुये उन्हें अन्दर आने की अनुमति दे दी।

    नारदजी अन्दर घुसे। वहां किसी फैक्टरी सा माहौल था। कुछ लोग धूप सेंक रहे थे,कुछ छांह की शोभा बढा रहे थे। कुछ चहलकदमी कर रहे थे,गप्परत थे। कुछ ने अपने चरणों को विराम देकर मौनव्रत धारण किया था–मानों कह रहे हों इससे ज्यादा काम नहीं कर सकते वे। जो जितना फालतू था उसके चेहरे पर उतनी ही व्यस्तता विराजमान थी। नारदजी स्वर्ग को निठल्लों का प्रदेश कहा करते थे। यहां के निवासियों को कुछ करना-धरना नहीं पडता था। खाना-पीना, कपडे-लत्ते की सप्लाई मृत्युलोक के भक्तगण यज्ञ ,पूजा पाठ के माध्यम से करते थे।

    नारदजी स्वर्ग के सबसे प्रभावशाली देवता विष्णुजी से मिलने के लिये उनके चैम्बर की तरफ बढे। नारदजी ने देखा कि विष्णुजी अपने सिंहासन पर किसी सरकारी अधिकरी की तरह पडे-पडे कुछ सोच रहे थे। नारदजी को देखकर उन्होंने अपने चिन्तन को गहरा कर लिया, व्यस्तता बढा ली तथा नजरें अपने चैम्बर में उपलब्ध एक़मात्र कागज में धंसा लीं। पहले तो नारदजी ने सोचा कि कि विष्णुजी शायद अपने शेयर पेपर्स देख रहें हों या फिर शाम को खुलने वाली महालक्ष्मी लाटरी के नंबर के बारे में अनुमान लगा रहे हों। वे एक सिंसियर स्टाफ की तरह बाअदब, बामुलाहिजा चुपचाप खडे रहे। देर होने पर नारदजी ने कनखियों से झांककर देखा कि विष्णुजी की नजरें तो एक खाली कागज पर टिकी हैं। उन्होंने फुसफुसाहट ,सहमाहट में थोडी हकलाहट मिलाकर विष्णुजीको दफ्तरी नमस्कार किया।

    यदि पसंद आ रहा हो तो साईट पर जाएँ.

    भरास की स्पेस को व्यर्थ नहीं करना है.

  • No comments: