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18.6.11

चढ़ पानी की टंकी पर

  • अन्ना हजारे और बाबा रामदेव एक काम बेहतर तरीके से कर सकते थे | करना चाहिए था , और है | लेकिन शायद ऐसा वे चाहते ही नहीं थे , इसकी नीयत ही नहीं थी या उतना नैतिक साहस नहीं था | जब कि ये उलटे सरकार  की नीयत पर प्रश्न चिन्ह उठा रहे हैं | जिस प्रकार जय प्रकाश नारायण  ने डाकुओं से आत्म समर्पण कराया था , ये अपनी संतई के बल पर जंतर मंतर या राम लीला मैदान में भ्रष्टाचारियों से भविष्य में कोई भ्रष्टाचार न करने का संकल्प दिला सकते थे | यह कार्य उनके स्तर [stature]  के सर्वथा अनुकूल होता और सरकार एवं राष्ट्र उन्हें भरपूर सम्मान देता , यद्यपि यह भी अंततः एक नाटक ,एक पाखण्ड ही साबित होता | लेकिन इससे संतों की नीयत और उनकी देश भक्ति का खुलासा तो होता | ऐसा नहीं हुआ ,क्योंकि ऐसा होना ही नहीं था |  ##
  • आज लखनऊ में फिर कोई अपनी मांगें मनवाने के लिए ऐशबाग की पानी की टंकी पर चढ़ गया | इस से यह विकल्प सूझा कि यदि सरकार [ रामदेव का तो अब एक दशक तक अनशन पर बैठने का सवाल ही नहीं उठता ]  अन्ना को दिल्ली में अनशन करने का कोई स्थान स्वीकृत न करे तो वह और वे किसी   पानी की टंकी पर चढ़ जायं , और माँग करें कि सरकार अभी-अभी , फ़ौरन  जन -लोकपाल कानून बना कर हमें दिखाए वरना हम पाँच के पाँचो इस टंकी से कूदकर जान दे देंगें | तब उनकी बात मान भी ली जायगी और कुछ अच्छा तमाशा भी हो जायगा | हैं भी इसी प्रकार की हवाई और उतनी ही हल्की और छिछली माँगें इन लोगों की | ##    

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