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14.6.11

भ्रष्टाचार के मूल में अनियंत्रित प्रजातंत्र ही

कल्याण बहुमत के शासन से नहीं बल्कि ज्ञान के शासन से ही संभव है ।
एक बार जब मैं नवीं कक्षा का क्षात्र था तो देहात से मेरे कुछ संबंधी एक लड़के को लेकर आये जो हैजे से संक्रमित था । वह पानी मांग रहा था पर लोग नहीं दे रहे थे , यह सोच कर कि न पेट में पानी रहेगा , न वह उल्टी करेगा । मेरी माँ भी लगभग अनपढ़ , पर मैंने पढ़ा था कि जल की कमी उसके लिए जानलेवा हो सकती थी । पिताजी ऑफिस गए थे और घर में फ़ोन भी नहीं , मोबाइल का तो नाम भी नहीं । मैंने उसे पानी पिलाया । उसने फिर उल्टी की । सब मिलकर मुझे डांटने लगे ।
मैंने कहा, 'इन्हें जल्दी डॉक्टर के पास ले जाइए । '
उनलोगों ने कहा , ' अपने पिताजी को आने दो । '
मैंने कहा ,' मेरे पिताजी डॉक्टर नहीं हैं और मैं नहीं चाहता कि ये मेरे घर पर मर जाएँ । '
कडवी बात सुनकर वे लोग भागे डॉक्टर के पास और वहां डॉक्टर से मेरी शिकायत की ।
डॉक्टर ने कहा , ' पानी पिलाया तभी तो यह जिन्दा आ गया मेरे पास । पानी कि ही तो कमी है , पानी तो चढ़ाया भी जाएगा । '
सब अवाक रह गए और धन्यवादपूर्ण नजरों से मुझे देखे भी ।
जब यह घटना मुझे याद आती है तो लगता है कि न तो उम्र न बहुमत , ज्ञान के शासन में ही कल्याण है आत्मविद्या एवं न्याय आदि का ज्ञान सर्वोपरि है तथा चिकित्सा , कृषि एवं अभियंत्रण आदि का ज्ञान सहयोगी , इन सबसे बना हुआ ज्ञान शरीर ही शासन के लिए उपयुक्त है । इसके बिना भ्रष्टाचार से मुक्ति संभव नहीं ।
क्या यह आवश्यक नहीं कि बहुमत की तानाशाही एवं लोकतंत्र में फर्क करना सीखा जाय ?

2 comments:

तेजवानी गिरधर said...

आपकी आत में दम है, असल में आम आदमी ही भ्रष्ट है और वह सरकार की आलोचना ऐसे करता है जैसे वह खुद तो अल्लाह की गाय है

तेजवानी गिरधर said...

आपकी आत में दम है, असल में आम आदमी ही भ्रष्ट है और वह सरकार की आलोचना ऐसे करता है जैसे वह खुद तो अल्लाह की गाय है