Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

23.7.11

अलसी हमारा एंटीना है जो सूर्य की असीम ऊर्जा को खींचता है

अलसी सर्वोत्तम भोजन


आवश्यक वसा अम्ल हमारे शरीर के लिए प्रकृति का वरदान है। डॉ. यॉहाना बुडविग ने कैंसर के उपचार में आवश्यक वसा अम्ल के चमत्कारी परिणाम प्राप्त किये हैं। उन्होंने अपनी पुस्तक “फलेक्स आयल – ए ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज” में लिखा है कि आवश्यक वसा अम्ल युक्त भोजन लेने से हमारी कोशिकाओं में पर्याप्त सक्रिय इलेक्ट्रोन्स रहते हैं। हमारे आधुनिक भोजन में संत्रप्त वसा और ट्रांस फैट की भरमार है। ये कोशिकाओं की झिल्लियों में असंत्रप्त वसा अम्लों के विद्युत आवेश को प्रभावित करते हैं और कोशिकाओं में सूर्य के फोटोन्स को आकर्षित तथा संचय करने की क्षमता कम करते हैं। विख्यात क्वाटम भौतिकशास्त्री डेसौर ने कहा है कि यदि हम मानव शरीर में सौर फोटोन्स की संख्या दस गुना कर दें तो मनुष्य की उम्र 10,000 वर्ष हो जायेगी।


सूर्य और चंद्र का रहस्यमय विवाह


बुडविग ने सूर्य के फोटोन्स और मानव शरीर में इलेक्ट्रोन्स के आकर्षण और अनुराग को क्वांटम भौतिकशास्त्र के परिपेक्ष में देवता सूर्य और देवी चन्द्रमा के रहस्यमय गन्धर्व विवाह की संज्ञा दी है। प्रकाश सबसे तेज चलता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सूर्य की किरणों के सबसे छोटे घटक या कण को क्वांटम या फोटोन कहते हैं जो अनंत हैं, शाश्वत हैं, सक्रिय हैं, सदैव हैं, ऊर्जावान हैं और गतिशील हैं। इन्हें कोई नहीं रोक सकता है। ये ऊर्जा का सबसे परिष्कृत रूप हैं, ये सबसे निर्मल लहर हैं। इनमें ब्रह्मांड के सारे रंग है। ये अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं।

जब दो फोटोन एक ही लय में स्पन्दन कर रहे हों तो कभी वे आपस में जुड़ कर क्षणिक काल के लिए पदार्थ का एक छोटा सा रूप जिसे π0 कण कहते हैं बन जाते हैं। यह कण पुनः टूट कर दो फोटोन में विभाजित भी हो जाता है। इस तरह ये फोटोन कभी किरण तो कभी पदार्थ के रूप में परिवर्तित होते रहते हैं।


इलेक्ट्रोन परमाणु का घटक है और न्यूक्लियस के चारों ओर अपने निश्चित कक्ष में निश्चित आवृत्ति में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, सदैव गतिशील रहते हैं। इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र अत्यन्त गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है। जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जब इलेक्ट्रोन और फोटोन के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो ये एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। फोटोन सूर्य से निकल कर, जो 9.3 अरब मील दूर है, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में निश्चित आवृत्ति पर सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह भौतिक, जीववैज्ञानिक और यहाँ तक कि दार्शनिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है।


हमें सूर्य से बहुत प्रेम है और यह मात्र कोई संयोग नहीं है। हमारे शरीर की लय और ताल सूर्य से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे ज्यादा अवशोषण करते हैं। इसलिए क्वाण्टम वैज्ञानिक कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्माण्ड सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा या फोटोन मनुष्य के शरीर में ही होते हैं। यह क्षमता और बढ़ जाती है जब हम इलेक्ट्रोन से भरपूर अत्यंत असंतृप्त वसा अम्ल (अलसी जिनका भरपूर स्रोत है) का सेवन करते हैं क्योंकि इलेक्ट्रोन्स का चुम्बकीय क्षेत्र फोटोन्स को आकर्षित करता है।


कई तेलीय बीजों में इलेक्ट्रोन्स से भरपूर अत्यंत असंत्रप्त वसा अम्ल होते हैं, जिनकी लय सूर्य से मिलती है। लेकिन जबसे बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने तेलों की शैल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए तेलों को अति परिष्कृत करना और हाइड्रोजनीकृत करना शुरू किया है तथा तेलों में विद्यमान अतिआवश्यक, ऊर्जावान और सूर्य के दीवाने इलेक्ट्रोन्स के बादलों के झुण्ड नष्ट हो गये हैं।


जब सूर्य की किरणों का आशीर्वाद पेड़ पौधों को मिलता है और वे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अवशोषित होती हैं तो पौधों में इलेक्ट्रोन्स की धारा प्रवाहित होती है। पौधों में इलेक्ट्रोन्स और जल के प्रवाह से चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। जब हम घने पेड़ों के पास से गुजरते हैं तो यह चुम्बकीय क्षेत्र हमारे शरीर में विद्यमान सौर फोटोन्स को विधुत आवेश से भर देता है। इसी तरह जब हमारे शरीर में रक्त प्रवाहित होता है, चुम्बकीय क्षेत्र से लाल रक्त कण गुजरते हैं तो इन कणों के बाहरी खोल पर स्थित असंत्रप्त वसा के अणु आवेशित हो जाते हैं। हर धड़कन के साथ इलेक्ट्रोन्स से भरपूर असंत्रप्त वसा युक्त लिम्फेटिक सिस्टम से लिम्फ रक्त प्रवाह में प्रवेश करता है। यह हृदय का विद्युत आवेश और संकुचन शक्ति बढ़ाता है।


शरीर में विद्युत आवेश और संदेशों के ट्रांसमीशन और ऐम्प्लीफिकेशन की प्रक्रिया शरीर में चलती रहती है। नाड़ियां बेलनाकार होती हैं, इसमें कई परतें तथा गुच्छिका (Ganglia) होते है और नाड़ी तथा (Dandride ) वृक्षिका के बीच विद्युत आवेश में अन्तर रहता हैं। इस तरह चुम्बकीय क्षेत्र में तीव्र विद्युत धारा प्रवाहित हो तो विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। जब हम किसी व्यक्ति के बारे में अच्छा सोचते हैं तो भी विद्युत चुम्बकीय तरंगें निकलती हैं। इनका अभिग्रहण वही कर पाता हैं जिसकी आवृत्ति इन तरंगों की आवृत्ति के समान हो। टैलीपेथी और सम्मोहन विद्या इन्ही सिद्धांतों पर आधारित है। प्राचीन काल में कुछ कबीलों की स्त्रियाँ पेड़ से लिपट कर जोर से आवाज लगाती थी और शहर गया उसका आदमी उसकी बात सुन लेता था और समझ जाता था कि उसकी पत्नि ने अमुक चीज मंगवाई है। क्योंकि पेड़ स्त्रियों की आवाज को एम्प्लिफाइ करके दूर शहर गये उसके आदमी तक पहुँचा देती थी। ये विद्युत चुम्बकीय तरंगें मेक्सवेल के गणितीय सूत्र के अनुसार व्यवहार करती हैं।


भौतिक विज्ञान में मानुष "human " तथा अमानुष "anti-human " की भी परिकल्पना की गई है। मानुष में फोटोन्स का भरपूर संचय होता है, वह भविष्य की ओर अग्रसर होता है और अपार सौर ऊर्जा से सराबोर रहता है। इसके विपरीत अमानुष में जीवन क्रियायें अवरुद्ध रहती हैं, ऊर्जा और सक्रियता का अभाव होता है क्योंकि उसमें सूर्य के फोटोन्स की लय में लय मिला कर आकर्षित करने वाले इलेक्ट्रोन्स बहुत ही कम होते हैं इसलिए वह भूतकाल की ओर गमन करता है।


भौतिकशास्त्र और गणित के दृष्टिकोंण से एक्स-रे, गामा-रेज, एटम-बम या कोबाल्ट रेडियेशन भी मानव स्वाथ्य के लिए घातक हैं, शरीर के सजीव इलेक्ट्रोन्स को नष्ट करती हैं और उसे अमानुष बनाती है यानि भूतकाल की ओर धकेलती हैं। जीवन रेखा और आधुनिक भौतिकशास्त्र के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार समय तथा बृह्माण्ड एक ही समीकरण पर आधारित है। अमानुष भूतकाल की ओर लौटता है। सूर्य के गतिशील फोटोन्स तथा इलेक्ट्रोन्स का अन्तर्सम्बंध मानव शरीर में विभिन्न कौशिकीय जीवन क्रियाओं को सम्पूर्ण करता है और मानव भविष्य की दिशा में बढ़ता है।


उपरोक्त सन्धर्भ में भोजन की व्याख्या करना बड़ा रोचक विषय है। भोजन में विद्यमान असंत्रप्त फैट्स में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं जो जीवनदायक प्राणवायु ऑक्सीजन को आकर्षित करते हैं। परन्तु तेल और वसा के निर्माता तेलों की शैल्फ-लाइफ बढ़ाने के लिए इलेक्ट्रोन्स युक्त असंत्रप्त फैट्स को सन्शोधित और हाइड्रोजिनेट करते हैं जिससे उनकी यह इलेक्ट्रोन्स की सजीवता व प्रचुरता नष्ट हो जाती है। ये फैट भविष्य की ओर अग्रसर जीवन्त मानुष को भूतकाल के गर्त में ले जाते हैं। ये शरीर में विद्युत प्रवाह को अवरुद्ध करते हैं और सम्पूर्ण शरीर में हो रही विभिन्न जैविक क्रियाओं को निष्क्रिय करते हैं। इसीलिए इन फैट्स को मृत या प्लास्टिक फैट कहते हैं।


जिस भोजन से उसके इलेक्ट्रोन्स की दौलत नष्ट कर दी गई हो वह हमें अमानुष बनाता है, भूतकाल की ओर ले जाता है और कैंसर का शिकार भी बनाता है। ठोस परिर्तित, परिष्कृत और हाइड्रोजिनेटेड वसा इस श्रेणी में आते हैं। दूसरी ओर इलेक्ट्रोन युक्त पोषण, इलेक्ट्रोन्स से भरपूर सजीव असंत्रप्त वसा और स्वादिष्ट फल शरीर में सौरऊर्जा का अवशोषण, संचय और उपयोगिता बढ़ाते हैं।


मेरा उपचार लेने के बाद जब रोगी धूप में लेटते थे तो वे नई ऊर्जा और ताजगी महसूस करते थे। दूसरी ओर आजकल हम देखते हैं कि धूप में लोगों के हार्ट फेल हो रहे हैं, हार्ट अटेक हो रहे हैं। स्वस्थ मानव में यकृत, अग्न्याशय, वृक्क, मूत्राशय आदि ग्रंथियों की स्रवण क्षमता पर सूर्य के चमत्कारी प्रभाव को हम महसूस कर सकते हैं। लेकिन यदि शरीर में सजीव, इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यंत असंत्रप्त वसा अम्लों का अभाव है तो उपरोक्त ग्रंथियों पर सूर्य प्रतिकूल प्रभाव डालेगा और ये सूखने लगेंगी। डॉक्टर कैंसर के रोगी को कहते हैं कि सीधी सूर्य की रोशनी से बचें। एक तरह से यह सही भी है। लेकिन वे डॉ. बुडविग का आवश्यक वसा से भरपूर आहार शुरू करते हैं, दो या तीन दिन बाद ही उनको धूप में बैठना सुहाना लगने लगता है, सूर्य जीवन की शक्तियों को जादू की तरह उत्प्रेरित करने लगता है और शरीर दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। - डॉ. योहाना बुडविग, द फैट सिन्ड्रोम एण्ड द फोटोन्स दि सोलर एनर्जी।


व्यापार के धनाड्य मसीहाओं द्वारा डॉ. बुडविज को प्रताड़ित करना -


डॉ. बुडविग ने अपने परीक्षणों से ये सिद्ध कर दिया था कि मार्जरीन, जिसे मछली या तेलीय बीजों से निकले असंत्रप्त तेलों को उच्च तापमान पर गर्म करके बनाया जाता है, घातक ट्रासंफैट से भरपूर होता है और हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। मार्जरीन हमें कैंसर, हृदय रोग, डायबिटीज, मोटापा, आर्थाइटिस आदि रोगों का शिकार बनाते हैं। वे अपने शोध-पत्र विभिन्न स्वास्थ्य पत्रिकाओं में प्रकाशित कर रही थी और लोगों को मार्जरीन के खतरों अवगत करवा रही थी। डॉ. बुडविग की निर्भीकता, स्पष्ट-वादिता और सच बोलने की आदत से व्यापार के धनाड्य मसीहा बड़े चिन्तित थे। उन्हें डर था कि बुडविज की शोध मार्जरीन की बिक्री को चौपट कर देगी। यहाँ मसीहा से मतलब स्वार्थ के लिए विज्ञान पर नियन्त्रित रखने वाले अमीर बहुराष्ट्रीय संस्थानों से है। मार्जरीन बनाने वाली कम्पनियों ने डॉ. बुडविग को रिश्वत में ढेर सारी दौलत और एक दवा की दूकान देने की कौशिश की, पर बुडविज ने रिश्वत लेने से स्पष्ट मना कर दिया।


डॉ. बुडविज को प्रताड़ित करने के लिए मार्जरीन बनाने वाली कम्पनियों ने बड़े बड़े षड़यंत्र रचे, उनकी प्रयोगशाला छीन ली गई और जरनल्स में उनके शोध-पत्रों के प्रकाशन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात थी, जबकि वह कई अस्पतालों से संलग्न थी और वह बहुत बड़े सरकारी ओहदे पर थी। उसका कार्य हमारे शरीर पर नई दवाओं और फैट्स के दुष्प्रभावों का अध्ययन करना और उन्हें प्रमाणित करना था। इसतरह बुडविग ने निडर होकर देश और दुनिया के प्रति अपना फर्ज़ निभाया। सन् 1953 में उन्होंने सरकारी पद छोड़ दिया और अपनी क्लीनिक खोल कर कैंसर के रोगियों का उपचार करना शुरू कर दिया। और इसके साथ ही फैट्स पर हो रही शोध पर लगभग लंबा विराम लग गया है।


जीवनशक्ति और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए) –


डॉ. बुडविग ने क्वाँटम बायॉलोजी का बहुत अध्ययन किया और फोटोन, इलेक्ट्रोन्स और आवश्यक वसा अम्लों के पारस्परिक आकर्षण और अनुराग को दुनिया के सामने रखा। पेड़ पौधों में कुछ विशेष एन्जाइम होते हैं जो वसा अम्ल के निर्माण के समय कार्बन की के बाद सिस डबल बॉन्ड लगाने में सक्षम होते हैं जबकि मानव के एन्जाइम छठे कार्बन के बाद ही सिस डबल बॉन्ड लगा सकते हैं। यदि फैटी एसिड में एक से ज्यादा डबल बॉन्ड हो तो उसे बहु असंत्रप्त वसा अम्ल या polyunsaturated Fatty Acid कहते हैं। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा सिरा कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा सिरा कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में 3 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–3 वसा अम्ल (N–3) कहते हैं। एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ होती है और 2 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध छठे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–6 वसा अम्ल (N–6) कहते हैं।


ए.एल.ए की कार्बन श्रंखला में जहां डबल बॉण्ड या द्वि-बंध बनता है वहाँ एक ही ओर के दो हाइड्रोजन के परमाणु अलग होते हैं और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है। बॉयोकेमिस्ट्री की भाषा में इसे सिस विन्यास कहते हैं। लड़ का यह मुड़ना इन अम्लों के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों को प्रभावित करते हैं। इससे ये अणु आपस में फिसलते हैं और घुलते नहीं हैं और सामान्य तापमान पर तरल रहते हैं, जब कि संत्रप्त वसाअम्लों के अणु आपस में चिपकते हैं तथा सामान्य तापमान पर ठोस रहते हैं। इनमें हल्का सा ऋणात्मक आवेश होता है और पतली सतही परत बनाते हैं। यह क्रिया सतह प्रतिक्रिया या सरफेस एक्किविटी कहलाती है जो टॉक्सिक पदार्थों को त्वचा, आँतों, गुर्दे या फेफड़ों की सतह पर ले आती है और वे बाहर निकल जाते हैं। यह क्रिया इन अम्लों में घुले हुऐ पदार्थों को भी बाहर कर देती है। आवश्यक सिस वसाअम्ल रक्त-वाहिकाओं में जमते नहीं हैं।


इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ती है, वहां इलेक्ट्रोनों का बडा झुंण्ड या बादल सा, जिसे “पाई–इलेक्ट्रोन्स” भी कहते हैं, बन जाता है। इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आनेवाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन को आकर्षित करते हैं, अवशोषण करते हैं। ये पाई–इलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक एन्टीना की तरह काम करते हैं। इन बादलों का विद्युत बल ऑक्सीजन को आकर्षित करने की क्षमता रखता है और प्रोटीन्स को झिल्लियों में पकड़े रहता है। ये पाई–इलेक्ट्रोन्स के कारण कोशिकाओं में (कोशिकाओं के अन्दर बाहर जलीय और कोशिका की झिल्ली में वसीय माध्यम होने की वजह से) अलग-अलग सतहों पर भिन्न भिन्न विद्युत आवेश रहता है। यह एक केपेसिटर की तरह काम करता है और नाड़ी, पेशी, हृदय और कोशिका की विभिन्न क्रियाओं हेतु विद्युत आवेश उपलब्ध कराता है। इस तरह आपने देखा कि शरीर में जीवन ऊर्जा के प्रवाह के लिए ये वसाअम्ल कितने महत्वपूर्ण हैं। इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इनका अभाव हमें अमानुष बनायेगा और भूतकाल के गड्डे में धकेलेगा।


एल.ए., ए.एल.ए और हमारे शरीर में इनसे निर्मित अन्य अत्यन्त असंत्रप्त वसाअम्ल (EPA और DHA) हमारे ऊतकों को भरपूर ऊर्जा, ऑक्सीजन उपलब्ध करवाते हैं और पूरे शरीर में जीवन शक्ति प्रवाहित करते हैं। यही है जीवनशक्ति जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, ऑखों, आंतरिक कर्ण, एड्रीनल ग्रन्थि, हृदय, मांसपेशियां, नाड़ीतंत्र, टेस्टीज, कोशिका की भित्तियों आदि को भरपूर ऊर्जा देती है।

2 comments:

Dr Om Prakash Pandey said...

informing and interesting !

Anonymous said...

मार्जरीन क्या होता हैं ?