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27.8.11

सावधान ! जंगल के गिद्ध ,सियार ,शेर और गिरगिट से .



सावधान ! जंगल के गिद्ध ,सियार ,शेर और गिरगिट से .

जब भी जंगल की सैर करने का मौका मिले तो वहां के पशुओ ,पक्षियों और जानवरों के स्वभाव पर नजर डालिये
.इतना बड़ा जंगल यदि चलता है तो वहां सामंजस्य और विद्रोह चलते रहने वाला होगा .जंगल के प्राणी विद्रोह 
करने वाले गिरगिट, सियार और गिद्ध से बचकर कैसे जीते हैं ?

गिद्ध मरे हुये और निर्बल छोटे जानवरों पर निगाह बना के जीता है पर कभी कभी वहां भी जटायु और गरुड़ देखने को मिलते हैं जो शुद्र स्वार्थो की लीक से  हटकर मानवता के हित के काम करते हैं.

हंस जैसे पक्षिराज भी जंगल में पाए जाते हैं जो दिव्य दृष्टी रखते हैं उन्हें सत्ता का मौह नहीं सताता है वे हमेशा आम पक्षी बने रहकर भी सदा कल्याण के मार्ग पर चलते हैं.

सियार जैसे धूर्त जीव सदा अपने स्वार्थ में लीन रहते हैं वे शेर की खाल ओढ़ कर धोखा करते हैं उनका मित्र बगुला होता है. सर्वदा शुद्रता की सोच में जीने वाले ये जीव जाल ,महाजाल बुनते रहते हैं

शेर भी जंगल का बलवान और क्रूर नेता होता है,सदैव हिंसा करना और सभी जीवों को सताना इसका मुख्य 
काम होता है, यह सभी कानून से ऊपर होता है इसके इर्दगिर्द चापलूस जानवरों का जमावड़ा रहता है.ये
चापलूस शेर की जूठन चाटते रहकर जीवन जीते हैं.

गिरगिट छोटा जंतु है लेकिन खुद के स्वार्थो के अनुसार रंग बदलता रहता है, इसके रंग पर कोई जानवर एक 
राय नहीं बना पाते की एक मिनिट में ये इतने रंग क्यों बदलता है.

फुंकारते और बेमतलब जहर उगलने वाले विषधर भी जंगल में जगह जगह मिलते रहते हैं.ये काले नाग चन्दन 
के पेड़ से लिपटे मिल सकते हैं मगर शीतलता इनके नजदीक नहीं रहती है.

आप जब जंगल की सैर पर हो तब इन जन्तुओ को पहचान ले और इनसे किस तरह प्रतिकार किया जाए की 
आपकी यात्रा सुख - शांति  से पूर्ण हो जाए . आप सभी नीतिओ पर विचार कर आगे बढ़े क्योकि युक्ति ,उपाय, 
विवेक ,निर्भयता और साहस से जंगल को मंगलमय बनाया जा सकता है.


1 comment:

रविकर said...

BHOG-विलासी दुनिया में जो जीव विचरते हैं
सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |

सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व

अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |


तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी

मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |


हक़ उनका है जग-सागर में, फेंके चाफन्दा*

जीव-निरीह फंसे जो आकर, आहें भरते हैं |


भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे

इस जल्पक* अज्ञानी के तो बोल तरसते हैं ||

जल्पक = बकवादी तूती =छोटी जाति का तोता

चाफन्दा = मछली पकड़ने का विशेष जाल

सुअर-घृणित वृत्ति लोमड़ी-मक्कारी कौआ-चालबाजी

पीपल-ध्यान तुलसी-पवित्रता बरगद-सृष्टि बिल्व-कल्याण